"सलवा जुड़ूम के कारण पार्टी में अलग-थलग पड़ जाता हूं"



( रायपुर, 12 अप्रैल 2008, दोपहर 11 बजे )

'बस्तर का शेर' कहे जाने वाले महेंद्र कर्मा नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे आंदोलन सलवा जुड़ूम के प्रबल समर्थक हैं। विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर होते हुए भी उन्होंने नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में सरकार को सहयोग दिया जिसके कारण  विरोधी उन्हें रमन सरकार के मंत्रियों में गिनते हैं। उनका मानना है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनेगी जिसका लक्ष्य भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देना होगा। जनता को ऐसी सरकार चाहिए जिसमें अंतिम व्यक्ति तक की बात सुनी जाती हो, जो कांग्रेस में ही संभव है। उनके मुताबिक रमन सरकार के पास नक्सल मुद्दे पर कोई स्पष्ट रणनीति नहीं है। राष्ट्रीय और प्रदेश के हित का मामला होने की वजह से वे इससे जुड़े हैं। अपने खुद के बारे में श्री कर्मा कहते हैं कि सत्ताधीश नेता राजधानी के वातानुकुलित कमरे में बैठकर नक्सलियों से लड़ने की बात करते हैं, जबकि मैं दंतेवाड़ा के नक्सल इलाकों में जाकर लोगों से नक्सलियों को उखाड़ फेंकने की बात करता हूं, हममें और इस सरकार में यही फर्क है। श्री कर्मा का मानना है कि प्रदेश कांग्रेस के भीतर गुटबाजी लगभग समाप्त हो चुकी है और जनता पर डॉ. रमन सिंह की अच्छी छबि का कोई असर नहीं होगा। जनता जानती है कि यहां पुरस्कार खरीदे गए हैं। 'नेशनल लुक' के लिए नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा से बबलू तिवारी ने लंबी चर्चा की। प्रस्तुत है चर्चा के मुख्य अंश- 

0. आगामी विधानसभा चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा?
00. हमारी कांग्रेस पार्टी केंद्र की कांग्रेस सरकार द्वारा किसानों की कर्जमाफी, दो रुपए किलो में चावल देने की हमारी घोषणा को लेकर जनता के बीच जाएगी। प्रदेश स्तर पर हम किसानों और गांवों के छोटे उद्यमियों को ब्याज मुक्त ऋण देने पर विचार कर रहे हैं। भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन, लोगों को सामाजिक समानता देना हमारा मुख्य लक्ष्य होगा। बाकी भाजपा सरकार का कामकाज तो जनता के सामने है ही, इसलिए हमें अपनी बात समझाने में कोई मुश्किल नहीं जाएगी। जनता ने भाजपा का शासन देख लिया है और अब उसे समझ में आ चुका है कि कौन उनके हित की बात और काम करता है।

0. भाजपा को डा. रमन सिंह की छवि का क्या फायदा चुनाव में मिल सकता है ? भाजपा सरकार के कामकाज के बारे में क्या कहेंगे?
00. मुख्यमंत्री की छवि का भाजपा को कोई फायदा नहीं मिलने वाला। जनता को पिछले साढ़े चार साल के भाजपा शासन में समझ आ चुका है कि किसी की छवि से उसका कोई भला नहीं होना, उसे प्रशासनिक तंत्र पर मजबूत पकड़ वाली सरकार चाहिए, उसे गरीबों और ग्रामीणों के हित के लिए काम करने वाली सरकार चाहिए, उसे प्रदेश को विकास के रास्ते पर ले जाने वाली सरकार चाहिए, उसे ऐसी सरकार चाहिए जिसमें अंतिम व्यक्ति तक की बात सुनती हो, उसे भ्रष्टाचार मुक्त सरकार चाहिए, उसे सिर्फ पेट भरने के लिए सरकार नहीं चाहिए, उसे सामाजिक समानता चाहिए, छोटे तबकों को मुख्य धारा में लाने के लिए काम करने वाली सरकार चाहिए। इस सरकार का प्रशासनिक तंत्र पर कोई पकड़ नही है, ये सिर्फ भाजपाइयों के फायदे के लिए प्रशासन पर दबाव डालते हैं। हमने देखा है कि एक सरपंच के मामले में भाजपाइयों को खुश करने के लिए कैसे सरकार ने प्रशासनिक तंत्र पर दबाव डाला था। जिसमें भाजपा सरकार नाकामरही है। मुझे नहीं लगता कि किसी की व्यक्तिगत छवि का लाभ भाजपा को मिलेगा।

0. आप कह रहे हैं कि जनता कि उम्मीदों पर यह सरकार खरी नहीं उतरी है, जबकि मुख्यमंत्री को लगातार कोई न कोई पुरस्कार मिल रहा है ?
00. यही तो विडंबना है इस सरकार की। एक बार मुख्यमंत्री को सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री का पुरस्कार क्या मिला, वे पूरे कार्यकाल तक उसे बचाने में ही लगे रहे। इसके लिए न जाने कौन-कौन से तरीके आजमाए गए। कहीं से पुरस्कार खरीदा गया तो कहीं किसी संगठन को फायदा पहुंचाकर पुरस्कार प्राप्त किया गया। आखिर किसी मुख्यमंत्री को ऐसे पुरस्कार की जरूरत ही क्या है जो कि खरीदकर प्राप्त किया गया हो? उसका पुरस्कार तो जनता के लिए किए गए अच्छे कार्य और उसे लाभ पहुंचाकर मिलने वाला सम्मान होना चाहिए ।

0. नक्सलवाद के मुद्दे पर रमन सरकार को कहां खड़ा पाते हैं और अपने आप को भी ?
00. रमन सरकार के पास नक्सल मुद्दे पर कोई रणनीति नहीं है। राष्ट्रीय और प्रदेश के हित का मामला होने की वजह से मैं भी इससे जुड़ा हूं। अभी जो कामयाबी मिल रही है उसके पीछे जवानों और अफसरों का हौसला है, जिसे की यह सरकार लगातार कम कर रही है। इन्होंने जंगलों में सर्चिंग का काम बंद करा दिया है। इन्हें डर लगता है कि कहीं कोई बड़ी वारदात हो जाएगी तो इनके वोट बैंक पर प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने चुनाव तक वोट की खातिर नक्सल अभियानों को बंद कर दिया है। ये राजधानी के वातानुकूलित कमरे में बैठकर नक्सलियों से लड़ने की बात करते हैं, जबकि महेंद्र कर्मा दंतेवाड़ा के नक्सल इलाके में जाकर लोगों से नक्सलियों को उखाड़ फेंकने की बात करता है, हममें और इस सरकार में यही फर्क है। सलवा जुड़ूम अभियान जिसे यह सरकार अपनी उपलब्धि बताकर श्रेय लेने की कोशिश करती है, उसे वहां की जनता ने शुरू किया। इसके पीछे सरकार का कोई रोल नहीं है। ये सिर्फ उसे पीछे से मदद कर रहे हैं। लेकिन हम सलवा जुड़ूम के साथ उनके इलाके में खड़े रहते हैं। मैं इस मुद्दे की वजह से अपनी पार्टी में कई जगह अलग-थलग पड़ जाता हूं, लेकिन मैं दंतेवाड़ा से आता हूं, जो कि घोर नक्सल प्रभावित है, इसलिए मैं जानता हूं कि नक्सलियों की वजह से वहां का आदिवासी और जनता पूरे देश की अपेक्षा कितनी पीछे चली जा रही है। लोगों की जिंदगी दूभर हो गई है। वहां की जनता इससे छुटकारा चाहती है, मैं दूसरों की अपेक्षा इस दर्द को ज्यादा अच्छे से महसूस करता हूं, यहीं कारण है कि मैं सलवा जूड़ूम के साथ अपनी अंतिम सांस तक खड़ा रहूंगा। चाहे इसके लिए मुझे कोई भी कुर्बानी क्यों न देनी पड़ी।

0. क्या राहत शिविरों में रहने वाले लोगों का इस्तेमाल वोट बैंक के रूप में
किया जा सकता है ?

00. इस सरकार की जो रीति और नीति है उससे मुझे पूरी आशंका है कि
भाजपा प्रशासनिक और पुलिस द्वारा दबाव डालकर राहत शिविरों में रहने वाले लोगों को मतदान के समय प्रभावित कर सकती है। हालांकि कांग्रेस इसे रोकने का पूरा प्रयास करेगी। ये अलग बात है कि राहत शिविरों में रह रहे लोग भी इस सरकार की नीयत को पहचान चुके हैं।

0. जाति की राजनीति का छत्तीसगढ़ में क्या भविष्य है?
00. छत्तीसगढ़ इससे ऊपर उठ गया है। यहां जनता और राजनीतिज्ञों में इसके प्रति बड़ा स्पष्ट नजरिया है। मुझे नहीं लगता कि यहां ऐसी राजनीति सफल हो सकती है।

0. कांग्रेसी नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और गुटबाजी का भाजपा को क्या लाभ मिल सकता है? कुछ कांगेस नेता अपने को अगला मुख्यमंत्री बताने की कोशिश करने लगे हैं?
00. देखिए बड़ी और राष्ट्रीय पार्टियों में मुख्यमंत्री का फैसला हाईकमान करता है, किसी के यहां अपने आप को मुख्यमंत्री कहने से कुछ नहीं होता। जहां तक मेरी बात है, मैंने सोनिया जी को स्पष्ट कह दिया है कि आप हमें काम करने दीजिए, हम कांग्रेस की सरकार छत्तीसगढ़ में बनाकर देंगे फिर आप जिसे योग्य मानिएगा उसे मुख्यमंत्री बनाइएगा। हमारा इसमें कोई टकराव नहीं होगा। लेकिन पिछली बार की गल्तियों का दोहराव इस बार मत होने दीजिए। पार्टी किसी नेता की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से ऊपर होती है। इस बार कांग्रेस पिछली बार की अपेक्षा और मजबूत हुई है। गुटबाजी लगभग समाप्त हो चुकी है। हम सब मिलकर इस बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं।

0. क्या भाजपा गुजरात चुनाव की सीख यहां दोहरा सकती है?
00. दोहरा सकती नहीं, दोहराना शुरू कर दिया है, वेदांती का मामला इसी से जुड़ा हुआ है। चूंकि भाजपा धर्म की राजनीति ही करती रही है, इसलिए वह इससे पीछे नहीं हटने वाली। छत्तीसगढ़ की जनता बहुत समझदार है। यहां के लोगों में आपसी भाईचारा है, मिलनसार हैं। यहां कि संस्कृति भी इसकी इजाजत नहीं देती है। इसलिए भाजपा का यह तुरुप यहां नहीं चलने वाला है। हालांकि वह इसका प्रयोग करने की पूरी कोशिश कर रही है।

0. राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ी संस्कृति में क्या बदलाव हुए हैं, यह मजबूत हुई है या कमजोर?
00. राज्य बनने के बाद तो नहीं लेकिन जब से भाजपा सत्ता में आई है तब से इसे नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। यह मड़ई-मेलों का प्रदेश है। यहां कि एक लोक संस्कृति है। बस्तर के रहन सहन और संस्कृति को जानने और सीखने के लिए पूरा विश्व लगा हुआ है। विदेशी विश्वविद्यालयों के छात्र इस कल्चर का अध्ययन करने के लिए यहां आते हैं। लेकिन भाजपा सरकार इसे तहस नहस करने में लगी है। धर्म की राजनीति करने वाली भाजपा सरकार वेद-पुराणों से परे काम कर रही है। जिस धर्म संस्कृति में कुंभ 12 साल और अर्धकुंभ 6 साल में होते हैं और जिसे सदियों से यह देश मानता रहा है उसे ये लोग हर साल मना रहे हैं। जो लोग भारतीय संस्कृति से खेल सकते हैं, वे छत्तीसगढ़ी संस्कृति से तो खेलेंगे ही। इनका हर एक धार्मिक आयोजन वोट बैंक के लिए होता है। धर्म- संस्कृति से इनका कोई लेना-देना नही है।

0. कल दिग्विजय सिंह ने बयान दिया है कि उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. महंत से कहा है कि वे महेंद्र कर्मा को सलवा जूड़ूम से अलग होने के लिए मनाएं?
00. मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है, मैं इस बारे में अभी कुछ नहीं कह सकता।

0. प्रदेश में इतने एमओयू हुए, इससे आपको नहीं लगता कि प्रदेश में विकास का काम हो रहा है?
00
. अरे भाई एमओयू करना अलग बात है, विकास होना अलग बात। आप कहते हैं कि हमने करोड़ों का एमओयू किया। एमओयू एक कमरे के भीतर होता है। आप किसके साथ, कहां एमओयू करते हैं इसे आप छुपा सकते हैं और जनता को कुछ भी बता सकते हैं, लेकिन एमओयू का क्रियांवयन नहीं छुपा सकते वह तो फील्ड में होना है। आप कहते तो हैं कि करोड़ों का एमओयू हुआ पर उसका क्रियांवयन कहां हुआ। मैं बस्तर के बारे में बता सकता हूं कि अभी तक वहां एस्सार और टाटा ने कोई भी काम शुरू नहीं किया है। जब तक क्रियांवयन नहीं होगा तब तक विकास कैसे हो सकता है। एमओयू भर कर लेने से विकास हो गया। कोई अगर ऐसा सोचता है तो हमें कोई दिक्कत नहीं है। जनता सब देख रही है, सब जान रही है।

0. आपको क्या लगता है भाजपा के तीन रुपए किलो चावल का उसे कोई प्रतिफल मिलेगा? सरकार की माने तो जनता बहुत खुश है?
00. देखिए यह बात सत्ता में बैठे लोगों को कभी भी समझ में नहीं आती है। उसे जनता खुश ही दीखती है। इससे पहले प्रदेश में हमारी सरकार थी। किसी क्या मालूम था कि सरगुजा से लेकर बस्तर तक जनता अपना फैसला ले चुकी है? इससे पहले केंद्र में एनडीए की सरकार थी उसे भी इंडिया शाइन, भारत उदय दिखने लगा था, लेकिन क्या किसी को मालूम था कि देश की जनता कश्मीर से कन्याकुमारी तक अपना फैसला ले चुकी है ? जनता मतदान के समय अपना फैसला सुनाती है। वह सरकार के कार्यकाल के दौरान सारी गतिविधियों को देखते रहती है और अपना फैसला सुरक्षित रखते जाती है। जनता ने भाजपा की कथनी और करनी में फर्क देखा है। उसने देखा है कि किस संकल्प और वादों के साथ भाजपा सत्ता में आई और कैसे उसे अलग रख दिया गया। कर्जमाफी, बेरोजगारों को भत्ता देने का वादा अभी जनता भूली नहीं है। मैं आजतक किसी कर्जमाफी वाले किसान-ग्रामीण से नहीं मिल पाया। अपने हर सम्मेलन में ऐसे लोगों को ढूढंता हूं जिसे कर्जमाफी मिली हो। अगर भाजपा को ऐसा लगता है तो यह हमारे लिए अच्छा ही है।

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