मेरा बयान बहस का मुद्दा

( रायपुर, 24 नवंबर 2008, दोपहर 12 बजे)
कुरूद के एक किसान परिवार में जन्में अजय चंद्राकर राज्य में सत्तासीन रमन सरकार में केबिनेट मंत्री हैं। वे इस सरकार के सबसे विवादास्पद मंत्री माने जाते हैं। उनके विभागों में भ्रष्टाचार के साथ-साथ उनके व्यवहार व बोलचाल के तरीकों पर विपक्ष बराबर हमले करते रहा है। उनके कई बयानों पर पूरे प्रदेश में हडक़ंप मच चुका है। श्री चंद्राकर विपक्ष के ऐसे हमलों को ज्यादा तवज्जों नहीं देते हैं। वे कहते हैं कि राजनीतिक जीवन में आरोप-प्रत्यारोप तो लगते रहते हैं, वर्किंग डिपार्टमेंट के मंत्रियों पर शुरू से आरोप लगते रहे हैं। लेकिन उनके खिलाफ जितने भी आरोप लगाए गए हैं उनमें से किसी को सही साबित करने के लिए विपक्ष के पास एक भी सबूत नहीं हैं। उन पर लगे सभी आरोप तथ्यहीन तथा भ्रामक प्रचार है। हां निजी जीवन पर की जाने वाली छींटाकशी उन्हें व्यथित जरूर करती है। वे कहते हैं कि मैं अपने आंदोलन, संघर्ष और पार्टी द्वारा दिए गए अवसरों की वजह से यहां तक पहुंचा हूं। रही बात मेरे बयानों की तो मैंने जो बातें कही वह बहस का विषय है। मेरा पूरा भाषण सुनने के बाद अगर कोई प्रतिक्रिया दे और मुझसे बहस करे तब मैं मानूंगा कि मेरी भावनाएं सही हैं या उनकी। उनका कहना है कि इन तथ्यहीन आरोपों से आने वाले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को कोई नुकसान नहीं होने वाला है। चुनाव भाजपा की ओर से सुशासन और विकास के मुद्दे पर लड़ा जाएगा। तमाम ठाट-बाट के बाद भी विशुद्ध ग्रामीण रहन-सहन वाले श्री चंद्राकर के मुताबिक डा. रमन सिंह के कार्यों के परिणाम कुछ दिनों में देखने को मिलेंगे तब लोग उन्हें प्रदेश के विकास के इतिहास पुरुष के रूप में याद करेंगे। वे कहते हैं कि अगर छत्तीसगढ़ को विकास के शिखर पर ले जाना है तो गरीबी उन्मूलन और प्रशिक्षित मानव संसाधन पर ध्यान देना होगा जो उनकी सरकार कर रही है। वे एक ही काम को कई विभागों द्वारा किए जाने को सिस्टम की कमी मानते हैं तथा अगली बार जनता और पार्टी द्वारा मौका दिए जाने पर इसे एक विभाग के अंतर्गत लाएंगे। लोगों की मदद करने के बाद मिले आशीर्वाद को ही सार्वजनिक जीवन की सफलता मानने वाले श्री चंद्राकर आबादी के उन 45 प्रतिशत लोगों को सम्मानजनक जिंदगी देने का सपना देखते हैं जो गरीबी रेखा के नीचे हैं। वे पिछली सरकारों से दस गुना ज्यादा काम करने का दावा करते हैं तथा अभी तक कभी विदेश यात्रा पर नहीं गए। कुरूद से दूसरी बार विधायक निर्वाचित तथा प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री अजय चंद्राकर से आज की जनधारा के लिए बबलू तिवारी ने गत बुधवार को उनकी महासमुंद यात्रा के दौरान लंबी चर्चा की। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश...
0 पिछले पांच साल से राज्य में भाजपा की सरकार है, पंचायत और ग्रामीण विकास जैसे महत्वपूर्ण विभाग के आप कैबिनेट मंत्री हैं। विधानसभा चुनाव में आप अपनी क्या उपलब्धियां बताना चाहेंगे?
00 सबसे महत्वपूर्ण काम हमारी सरकार का यह रहा कि हमने पंचायती राज संस्थाओं को अधिकार संपन्न बनाने के लिए पंचायती राज विधेयक में संशोधन किया। जिसके तहत महिलाओं का प्रतिशत बढ़ाया गया, साक्षरता को जोड़ा गया, स्वच्छता को जोड़ा गया, इनक्रोचमेंट को जोड़ा गया, खाद्यान्न सुरक्षा को जोड़ा गया, 1 क्विंटल अनाज रखने के लिए कानून बनाया गया। यह महत्वपूर्ण, ऐतिहासिक और क्रांतिकारी फैसले थे पंचायती राज संस्थाओं के लिए। ग्रामीण अधोसंरचना को मजबूत करने के लिए। महिलाओं के लिए निर्मला घाट बनना, सीसी रोड बनना, गौठान बनना, गार्डन बनना, कांजीहॉउस पूरे नोटिफिकेशन होना तथा सभी पंचायतों में बनना शुरू होना, उचित मूल्य की दुकान के लिए पंचायत भवन बनाना, जिला पंचायत-जनपद पंचायत भवन बनाना, खेल मैदान बनाना ये सारे विषय ऐसे रहे जिसने गांव को शहर की तरह विकसित करने के सपने का विश्वास गांव वालों के मन में पैदा किया। उन्हें लगा कि यह सरकार गांव वालों के उत्थान के लिए कुछ कर रही है। इससे महत्वपूर्ण बात गरीबी से लड़ाई। एक लाख लोगों के लिए नवा अंजोर योजना का संचालन कर उनको गरीबी रेखा से ऊपर उठाने का संकल्प, 53 हजार से ऊपर स्वयं सहायता समूहों को आर्थिक गतिविधियों से जोड़ऩे का एवं उनको स्थायी रोजगार प्रदान करने की योजनाएं बनाने और संचालित करने का काम ताकि छत्तीसगढ़ को गरीबीमुक्त बनाने की ओर कदम बढ़ सके। यह महत्वपूर्ण उपलब्धियां रही हैं।
0 पूरे रमन सरकार की इन पांच सालों में बड़ी उपलब्धियां क्या रहीं?
00 बड़ी उपलब्धियों में सबसे बड़ी है भयमुक्त शासन, कहीं और किसी आदमी के अंदर दहशत नहीं है कि सरकार परेशान करेगी बिना वजह और यह समाज के सभी वर्गों के लिए रहा। दूसरी जो महत्वपूर्ण बात है वो है बिजली पर आत्मनिर्भर होना। सुनिश्चित सिंचाई का प्रतिशत बढऩा। रूरल कनेक्टिविटी लगभग 40 प्रतिशत से ऊपर हो गई। इस साल के बाद हम राष्ट्रीय औसत के समीप पहुंच जाएंगे। निवेश बड़ी मात्रा में हुआ। रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी हुई। भर्तियों पर प्रतिबंध था। सवा लाख से ऊपर लोगों को हमने नौकरी दी। जो नीचे तबके के लोग हैं और जो जरूरतमंद थे, चाहे तेंदुपत्ता का बोनस हो, साल बीज के समर्थन मूल्य का मामला हो, चरणपादुका वितरण हो, चाहे नाई-धोबी समाज के लिए दुकानें बनाने का निर्णय हो, मुफ्त में किताबें देने की योजना हो, सरस्वती साइकिल योजना हो। इसके परिणाम बहुत अच्छे आएंगे। एक मजबूत अधोसंरचना की बुनियाद इस सरकार ने छत्तीसगढ़ में डाली हैं।
0 पिछली जो सरकारें थी अविभाजित मध्यप्रदेश में, उनके कार्यकाल में छत्तीसगढ़ के 16 जिलों में किए गए कार्यों तथा आपकी सरकार के कार्यकाल में क्या फर्क आप महसूस करते हैं?
00 निरपेक्ष रूप से कहूं तो इन 16 जिलों में कोई उल्लेखनीय काम नहीं हुआ। हर क्षेत्र में क्षेत्रीय असंतुलन व्याप्त था। 44 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति, जनजाति थीं यानी लगभग आधी आबादी अपने विकास के अवसरों से वंचित रहा। सबसे महत्वपूर्ण बात इस क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करना था। इसी असंतुलन के कारण छत्तीसगढ़ नक्सली आतंक के चपेट में आया। उसके लिए इस सरकार में प्रयास शुरू हुए। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण मैं शिक्षा के घटक को मानता हूं। हमने 6 यूनिवर्सिटी बनाई। 30 से ऊपर कॉलेज खोले, 30 से ऊपर आईटीआई खोले और लगभग ये सभी आदिवासी क्षेत्रों में खोले गए। जब वे शिक्षित होंगे तभी अपने लिए किसी भी तरह की सुविधा जो सरकार उन्हें देती है, आरक्षण में, रोजगार में उनका लाभ उठाने के लायक और अपनी समस्याओं को सुलझाने के लायक बन पाएंगे। इस दृष्टि से देखा जाए तो दो-तीन मुख्यमंत्री यहां से मप्र के समय बने पर छत्तीसगढ़ के मामले में वो पूरी तरह से असफल रहे।
0 पंचायत एवं ग्रामीण विकास, स्कूल शिक्षा और संसदीय कार्य मंत्री ये चार विभाग आपके पास हैं। इन विभागों में आपने कौन से ऐसा काम किया जिससे आपको बहुत संतोष मिला कि ये बहुत अच्छा काम हुआ जो पिछली सरकारें नहीं कर पाई?
00 पंचायत में जो हमने महत्वपूर्ण संशोधन किए, उसमें महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देना, खाद्यान्न की सुरक्षा, साक्षरता को शामिल करना, अवैध कब्जों को उम्मीददवारों के अर्हता में शामिल करना, स्वच्छता को जोडऩा, ये सभी मुझे व्यक्तिगत संतोष देते हैं। ग्रामीण विकास में जो सबसे महत्वपूर्ण बात हैं कि आज की तारीख में विशेष पिछड़ी संरक्षित जनजातियों के लिए राज्य सरकार के मद से 50 करोड़ रुपए दिए गए हैं ताकि उनको शत-प्रतिशत आवास से कवर करे। नवा अंजोर योजना से 1 लाख लोग लाभान्वित हुए। गरीबी उन्मूलन और पंचायत की अधोसंरचना ये ऐसी चीजें हैं जिसमें कोई सरकार बदलाव करने का साहस नहीं कर सकती। ये महत्वपूर्ण संतोष देने वाली बात रही। स्कूल शिक्षा की बात करें काम करते हुए मुझे थोड़ा समय हुआ है लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि मानव प्रबंधन नीति बनाने का हमने काम किया। सभी स्कूलों में इन्फ्रास्ट्रक्चर ठीक करने का काम किया मीडिल स्कूल तक को हम फर्नीचर देंगे, बिजली देंगे, पंखे देंगे, मुफ्त किताब देंगे, साइकिल देने से लड़कियों का शिक्षा का स्तर 60 प्रतिशत से 85 प्रतिशत तक आ गया। इसमें भी महत्वपूर्ण है सेटअप का स्वीकृत होना। आज तक शिक्षा विभाग का कोई सेटअप नहीं था। सारे पद रिक्त पड़े थे, पदोन्नतियां रुकी हुर्इं थीं। इससे रोजगार के अवसर लोगों के लिए निर्मित हुए। हमने इस अधोसंरचना को मजबूत किया। पद भरने के बाद, पदोन्नतियों के बाद, ट्रेनिंग के बाद, अच्छे स्कूल भवन के साथ छत्तीसगढ़ में क्वालिटी एजुकेशन बढ़ेगा। लगभग इन साढ़े चार सालों में सिर्फ स्कूल शिक्षा विभाग ने 400 से ऊपर नए स्कूल खोलें। पहले तो जनभागीदारी के नाम से दुकानें खोल दी गईं थी। ये सभी संतोष देने वाली बातें रहीं। संसदीय कार्य मंत्री के तौर पर हम देखें तो संसदीय कार्यमंत्री का दायित्व राज्य सरकार और विधानसभा के बीच सेतु का काम है पर एक भी विषय में सरकार को इन पांच सालों में कांग्रेस पार्टी नहीं घेर पाई है। यह फ्लोर मैनेजमेंट था। यदि कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे उठे और अध्यक्ष जी ने उनपर किसी जांच के लिए कहा भी तो ध्यान रखने वाली बात है कि ये मुद्दे भाजपा विधायकों ने उठाए थे। कांग्रेस का कोई भी विधायक जनहित के मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करने में विफल रहा।
0 आप उच्च शिक्षा विभाग के भी मंत्री रहे हैं उसमें आपकी क्या उपलब्धियां हैं जिन्हें आप बताना चाहेंगे?
00 उच्च शिक्षा में जो सबसे बड़ा मुद्दा था वह क्षेत्रीय असंतुलन का था। छत्तीसगढ़ में निवेश हो रहे हैं और उसके हिसाब से मानव संसाधन तैयार करने के लिए हमारी संस्थाएं सक्षम नहीं हैं। संस्थाओं को सक्षम बनाने के लिए काम किया गया। मैंने अपने कार्यकाल में तीन नई यूनिवर्सिटी बनाई। स्वतंत्र भारत के किसी भी राज्य में एक साथ एक दिन में तीन यूनिवर्सिटी नहीं बनी। एनआईटी हमनें बनाई। कोरबा व रायपुर में नए इंजीनियरिंग कॉलेज खोला। सब्जेक्ट की संख्या बढ़ी, कॉलेज, आईटीआई, रिजनल साइंस सेंटर जिनको आगे चलकर हम साइंस सिटी भी बनाएंगे। ये सभी ऐसे संस्थान हैं जिससे छत्तीसगढ़ में प्रशिक्षित मानव संसाधन बनेगा और इससे हम सामाजिक असंतुलन से लड़ पाने में सफल होंगे।
0 इन विभागों में ऐसा कौन सा काम है जो आप करना चाहते थे पर आप नहीं कर पाए। छत्तीसगढ़ की जनता यदि भाजपा को वापस लाती है और आप इन्हीं विभागों के मंत्री बने तो आप क्या करना चाहेंगे?
00 मैं शिक्षा विभाग में दो काम करना चाहता था। जिसमें पूरी शिक्षा नगर निगम, जिला पंचायत, आदिम जाति कल्याण विभाग, उच्च शिक्षा, स्कूल शिक्षा, तकनीकी शिक्षा को मिलाकर एक एचआरडी (ह्यूमन रिसोर्स डिपार्टमेंट) बनाने का सपना था। अगली सरकार आएगी तो मैं निश्चित रूप से ये काम करना चाहूंगा। ग्रामीण विकास में मेरी रूचि गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों में ज्यादा रही। 53 हजार सेल्फ हेल्प ग्रुप हैं उनको ट्रेनिंग देना, आर्थिक गतिविधियों से जोडऩा, मार्केटिंग से जोडऩा, टे्रनिंग के लिए अच्छे संस्थान उपलब्ध कराना, इन कामों को जिस गति से होना चाहिए था उन्हें मैं उस गति से नहीं कर पाया। लेकिन पिछली सरकार के मुकाबले इस क्षेत्र में भाजपा सरकार की उपलब्धियां दस गुना ज्यादा रही। गरीबी उन्मूलन को राज्य का प्रमुख एजेंडा बनाने की मेरी इच्छा है।
0 आपने दस गुना ज्यादा काम किया है फिर भी संतोष नहीं मिल पाया क्यों?
00 45 प्रतिशत गरीबी रेखा के लोगों को सम्मानजनक जिंदगी देना और उसे घटाकर 20 प्रतिशत करना। और आने वाले 10 सालों में इसे शून्य पर ले आना। यही सपना मैं देखता हूं यदि मैं यह विभाग संभालता हूं।
0 उच्च शिक्षा पर कुछ टिप्पणी करना चाहेंगे?
00 उच्च शिक्षा में प्रबंधन के संस्थान, इंजीनियरिंग कॉलेज, व्यावसायिक वोकेशनल कोर्स, मेडिकल क्षेत्र में स्पेशलाइजेशन के जो कोर्स के संस्थान हैं वो खुलें। मानव संसाधन हम जितना तैयार करेंगे राज्य भी उतना ही विकसित होगा। ये मेरा मानना है।
0 आपने विदेश यात्रा की हैं?
00 मैंने मंत्री के रूप और न पहले कभी भी विदेश यात्रा नहीं की है।
0 विदेश में क्या है जो छत्तीसगढ़ में होना चाहिए, ग्रामीण परिवेश और शहरी परिवेश में देखा जाए तो?
00 देखिए विदेश का मतलब अलग-अलग क्षेत्रों से है। अफ्रीका के देश अलग हैं, अरेबियन के देश अलग हैं। यूरोप अलग है, साउथ-नार्थ अमेरिका अलग है। छत्तीसगढ़ को तो अपना मॉडल अपनी जरुरतों के हिसाब से विकसित करना चाहिए। वो अपने देश, भूगोल, काल, परिस्थिति के अनुसार विकसित हुईं हैं, हमारे पास प्राकृतिक संसाधन है, मानव संसाधन है इससे हम बड़ी उपलब्धियां पा सकते हैं, थोड़ा सा समय लगेगा लेकिन छत्तीसगढ़ बुलंदियों पर होगा।
0 आगामी विधानसभा चुनाव किन-किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा?
00 हमारे तरफ से सिर्फ और सिर्फ सुशासन के मुद्दे पर, विकास के मुद्दे पर। छत्तीसगढ़ में जो तेजी के साथ विकास हुआ, जो आत्मविश्वास लोगों में पैदा हुआ और जो भयमुक्त शासन हमने लोगों को दिया। ये मुद्दा आगे भी चलेगा। और केंद्र सरकार की जो विफलताएं हैं उसमें भी छत्तीसगढ़ को जो सबसे ज्यादा प्रभावित कर रही हैं, वो हैं महंगाई, गरीबों के गेहूं-अनाज के कोटे को आबंटित नहीं करना, बिजली काट देना। इसको केवल अन्याय कहा जा सकता है नए राज्य के साथ। ये हमारे प्रमुख मुद्दे होंगे।
0 आपके हिसाब से कांग्रेस को इस चुनाव में क्या फायदा मिल सकता है?
00 कांग्रेस के बारे में कुछ भी कहना उचित नहीं लगता, क्योंकि सबकुछ वहां केंद्रीकृत है, आम जनता का तो कोई रोल ही नहीं है। एक व्यक्ति का रोल है, तो उसके बारे में क्या बोल सकता हूं।
0 कहते हैं कांग्रेस में गुटबाजी है, कांग्रेसी नेताओं में महत्वाकांक्षा की लड़ाई चल रही है, उससे भाजपा को क्या फायदा हो सकता है?
00 भाजपा खुद अपने दम पर सरकार बनाएगी। दूसरी पार्टियां क्या कर रही हैं, किसी अंतर्कलह से जूझ रही हैं ये उनका घरेलू मामला है। हम अपनी ताकत पर सरकार बनाएंगे।
0 छत्तीसगढ़ के बारे में आपकी क्या कल्पनाएं हैं? किस दिशा में जा रहा है छत्तीसगढ़ ?
00 छत्तीसगढ़ में मैं जो प्रमुख रूप से सोचता हूं उसमें गरीबी उन्मूलन का कार्यक्रम प्रमुख रूप से चलना चाहिए, सिंचाई का प्रतिशत बढऩा चाहिए। मानव संसाधन तैयार करने की तरफ बढऩा चाहिए, संसाधनों के दोहन के बारे में दीर्घकालिक योजनाएं बननी चाहिए। कृषि का रकबा कम नहीं होना चाहिए। हर क्षेत्र में छत्तीसगढ़ आत्मनिर्भर बने इसके लिए हम अल्पकालिक, मध्यकालिक और दीर्घकालिक योजनाएं बनाएंगे।
0 डॉ.रमन सिंह की जो सरल वाली छवि है उसका भाजपा को चुनाव में क्या फायदा मिलेगा?
00 डॉ.रमन सिंह की सरल वाली छवि नहीं है वो असल में सरल आदमी ही हैं। उनकी यह छवि बनाई नहीं गई है बल्कि उनके व्यक्तित्व की यह विशेषता है। वो सरल-सहज आदमी हैं। वो पार्टी के नेता हैं और उनकी यह छवि सम्पत्ति है पार्टी के लिए। पार्टी को इसका फायदा अब तक मिला है और निश्चित रूप से आगे भी मिलेगा।
0 जाति के आधार पर जो राजनीति छत्तीसगढ़ में पनप रही है उसका क्या भविष्य देखते हैं आप?
00 भाजपा की विचारधारा में है सामाजिक समरसता। किसी भी जाति-समाज के नेता हों लंबे समय तक जाति की राजनीति नहीं चला सकते। विचारधारा की राजनीति ही हिन्दुस्तान को आगे बढ़ाएगी, छत्तीसगढ़ को आगे बढ़ाएगी और उसी से देश-प्रदेश में खुशहाली आएगी।
0 जिन राज्यों में जाति की राजनीति हो रही है उसे किस नजरिए से देखेंगे आप?
00 यूपी-बिहार का जो हाल है, पूरा देश जानता है। इसलिए वहां के लोग भी अच्छी सरकार और अच्छे विकास कार्यों के प्रति ललक दिखाते हैं। हम लोग चुनाव प्रचार में वहां गए हैं और इसे देखा है। वे लोग भी इस तरह की राजनीति से ऊब चुके हैं।
0 राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ के लोगों में क्या बदलाव पाते हैं आप?
00 छत्तीसढिय़ा का एक लाइन में मतलब है - जो छत्तीसगढ़ के लिए जीता है, मरता है, सोचता है वो छत्तीसगढिय़ा है। इसमें कुछ शोषक भी हो सकते हैं पर मूल छत्तीसगढ़ के जो लोग हैं स्वाभाविक रूप से सरल हैं। नए राज्य बनने के बाद जो अवसर पैदा हो रहे हैं उनमें उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना हम सबका दायित्व है।
0 पिछले आठ सालों की बात करें, तो आप क्या बदलाव देखते हैं?
00 सभी क्षेत्रों में लोगों की भागीदारी बढ़ी है, जागरुकता आई है।
0 आजकल जो लोग राजनीति में आ रहे हैं, वो कोई उद्देश्य लेकर आ रहे हैं या अपने भले के लिए आ रहे हैं? जो लोग आ रहे हैं उनका राजनीतिक शिक्षण हो पा रहा है, किस नजरिए से देखते हैं राजनीति की भावी पीढ़ी को?
00 अभी समाज-दुनिया में जो परिवर्तन आ रहा है, उसका प्रभाव सभी क्षेत्रों में पड़ रहा है। आज हर व्यक्ति सभी क्षेत्रों में तेजी के साथ उपलब्धि चाहता है। राजनीति तो संघर्ष, जनांदोलन से लोग जब संगठन में काम करते हैं, निखरते हैं और जनता के बीच जब जाते हैं तब उसका स्वरूप दूसरा होता है। परिवर्तन से आप अपने आप को अलग तो नहीं रख सकते।
0 आप कुरूद के विधायक हैं, पांच साल से मंत्री हैं, सामने चुनाव हैं, अगर पार्टी आपको कुरुद से चुनाव लड़वाती है तो आप अपनी क्या उपलब्धियां बताना चाहेंगे जो आपने कुरुद की जनता के लिए किया है?
00 मैं यही कहना चाहता हूं कि यह प्रश्न आपको कुरुद की जनता से पूछना चाहिए। कुरुद में मैं आजकल कहता हूं कि अब हम सेकंड रिफार्म की तरफ बढ़ेंगे। कुरुद में सभी बुनियादी आवश्यकताएं पूरी हो गई हैं। अब हम शिक्षा, रोजगार की ओर बढ़ेंगे। भावी पीढ़ी प्रदेश और राष्ट्र निर्माण में योगदान दे। गांव में अस्पताल नहीं है, स्कूल नहीं है, सडक़ नहीं है, बिजली नहीं है, जितनी सिंचाई हो सकती थी उतनी सिंचाई, इन सब समस्याओं से लगभग मुक्त है। छोटी-मोटी समस्याएं हैं जैसे कभी-कभी बाढ़ आ जाने की समस्या है, लेकिन मूलभूत समस्याएं नहीं हैं। मैं हमेशा आगे बढऩे का आह्वान करता हूं। हमारे रहते छोटी-मोटी समस्याओं की चिंता करने की जरुरत नहीं है।
0 कुछ उपलब्धियां आंकड़ों में बताना चाहेंगे हैं?
00 सिंचाई पंप के लिहाज से देखें तो भारत का सर्वाधिक सुनिश्चित सिंचाई वाला क्षेत्र है वह। कई गांव ऐसे मिलेंगे जहां तीन-चार सौ पंप हैं। चार बांध के काम शुरु हो गए हैं। छह नए प्राथमिक अस्पताल खुले हैं। स्नातकोत्तर कॉलेज खुले। आईटीआई सेक्टर ऑफ एक्सीलेंस बने। एक नई आईटीआई बनी, एक नया कॉलेज खुला। ये तमाम चीजें हैं। एकाध वन मार्गों को छोड़क़र लगभग सभी गांव सडक़ से जुड़े हैं। गिनती के कुछ गांवों को छोडक़र सभी गांवों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था हो गई। हायर सेकेण्डरी स्कूल हैं। सभी स्कूलों में कामर्स-साइंस के विषय हैं। निश्चित लक्ष्यों के साथ कुरुद के परिवर्तन के लिए कोशिश की गई।
0 राज्य को किन-किन मामलों में पिछड़ा हुआ पाते हैं?
00 मैं दो चीजों में पिछड़ा मानता हूं। गरीबी उन्मूलन और मानव संसाधन।
0 आप आम आदमी से उठकर राज्य के कैबिनेट मंत्री बने। राजनीति में कैसे आना हुआ?
00 सार्वजनिक जीवन में तो मैं शुरू से था। नौकरी करना मेरा उद्देश्य कभी था ही नहीं। जनता के बीच काम करना शुरु से उद्देश्य था। विद्यार्थी जीवन से ही मैं भाजपा की विचारधारा के निकट था। राजनीति में जब काम करने का अवसर मिला तो मैंने स्वाभाविक रूप से भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन की। जितनी संभावनाएं राजनीतिक क्षेत्र में जनता के लिए कार्य करने की है उतना किसी भी क्षेत्र में नहीं है। जनता के हितों के लिए जो कर सकते हैं, करते हैं। संघर्ष करना पड़े तो वो भी।
0 आप शुरू से सदस्य के रूप में भाजपा से जुड़े रहे या आपको एकाएक लाया गया?
00 नहीं, मैं शुरु से जुड़ा रहा हूं।
0 आप एक आम आदमी से कैबिनेट मंत्री तक पहुंचे। इतना लंबा समय, इतना लंबा संघर्ष। अब नौकर-चाकर हैं, बंगला है, गाड़ी-घोड़ा सब कुछ है। आम आदमी और मंत्री के बीच जो खाई है, उसे आप कैसे पाटते हैं?
00 आज आपने मेरे बंगले में देखा होगा कि मैं हर लोगों से मिला हूं उसके बाद आपसे मिला। सैंकड़ों की संख्या में लोग आते हैं। सबसे बड़ी खाई ये होती है कि लोगों में संवाद न हो पाए, मिलना मुश्किल हो, अपनी बात सत्ता के प्रतिष्ठानों तक नहीं पहुंचा पाए। कम से कम मेरे साथ तो ऐसा बिलकुल नहीं है। मैं सुबह के समय से जितने लोग मेरे घर से निकलने तक आते हैं उन सबसे निश्चय ही मिलता हूं। अपने क्षेत्र में भी भाषण की बजाय लोगों से बातचीत करना ज्यादा पसंद करता हूं, उनकी समस्याएं क्या हैं। जब अधिकारी साथ में होते हैं तो जो तत्काल हल करने वाले मुद्दे होते हैं तो उन्हें तत्काल हल भी करवाता हूं। ये सबसे महत्वपूर्ण बात है। लोगों की आवाज उस जगह तक पहुंचे जहां उनकी समस्याओं का निराकरण हो सकता है। इसका प्रयास मैं ईमानदारी के साथ करता हूं।
0 सुकून कहां से मिलता था। आम आदमी थे तब मिलता था या अब मंत्री हैं तब। मानसिक शांति कब मिलती है?
00 सुकून सबसे ज्यादा मिलता है कि लोग मेरे पास इलाज करवाने के लिए आते हैं, और जब कोई स्वस्थ होकर आकर बताता है कि मैं स्वस्थ हो गया हूं और आशीर्वाद देकर जाता है तब लगता है कि जो अवसर राजनीतिक जीवन में काम करने का मिला वो सफल हो गया।
0 आपने काफी नजदीक से आम जीवन और सरकार का काम और सिस्टम देखा है। सिस्टम में आपको क्या कमी दिखती है?
00 सिस्टम पर्याप्त है। सब लोगों ने सोच-विचारकर बनवाया है। लेकिन इसी सिस्टम में यदि निष्ठापूर्वक काम करें तो काफी काम किया जा सकता है। मैं सोचता हूं कि यदि किसी सरकार में यदि एक योजना चल रही है तो उसको कई विभाग न चलाएं। इन्टीग्रेटेड होना चाहिए। मान लीजिए गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रम हैं, महिला सहायता या स्व सहायता समूह बनाना है तो उसे चार विभाग देख रहा है। उसे एक विभाग को देखना चाहिए । इन्टीग्रेटेड होना चाहिए। शिक्षा को देखें तो नगर निगम के पास भी शिक्षा है, पंचायत के पास भी शिक्षा है, शिक्षा विभाग के पास भी शिक्षा है, आदिम जाति कल्याण विभाग के पास भी शिक्षा है तो इससे नीति बनाने में और उसको संचालित करने में तकलीफ होती है। इससे परिणाम जैसे आने चाहिए वैसे नहीं आ पाते। मैं कहता हूं वाटर कन्जर्वेशन का काम। फॉरेस्ट विभाग भी करता है, एग्रीकल्चर विभाग भी करता है। रूरल डेव्लपमेंट भी करता है। तो ओवरऑल कितना रिजल्ट आया। तो इस तरह से सिस्टम में सब काम सरकार कर रही है लेकिन यदि इन्टीग्रेटेड रहें तो परिणाम और अच्छे आएंगे।
0 तो क्या आप ऐसे कुछ सुझाव सरकार को देते हैं?
00 ये सारी चीजें इस बार सरकार बनने के बाद होंगी।
0 डॉ. रमन सिंह का नेतृत्व आपको कैसा लगता है? उनका व्यक्तित्व?
00 मैंने अभी बातचीत में कहा कि वे सरल हृदय के और जो 24 घंटे छत्तीसगढ़ के विकास के बारे में सोचता हो, जो भी नए आइडिया मिले उसके मन में यह तत्परता रहती है कि इसे कैसे छत्तीसगढ़ के हितों के लिए लागू किया जाए। कैसे हम छत्तीसगढ़ को आगे बढ़ाए, और वे निरंतर सोचते रहते हैं और काम करते रहते हैं। इसी कारण से छत्तीसगढ़ को आगे बढऩे के लिए आगे बढ़ाने के लिए ठोस बुनियाद डाली गई है और उनके द्वारा किए गए कामों का परिणाम कुछ वर्षों में दिखेगा। जो संस्थाएं बनी हैं, जो एमओयू हुए हैं, सडक़ के काम इस स्तर पर जो शुरु हुए हैं। ओवरब्रिज के काम शुरु हुए हैं। गरीबी उन्मूलन का काम शुरू हुआ है। इन सभी के परिणाम कुछ दिनों में देखने को मिलेंगे तब लोग उन्हें छत्तीसगढ़ के विकास के इतिहास पुरुष के रूप में याद करेंगे।
0आप जिन-जिन विभागों के मंत्री हैं: पंचायत, ग्रामीण विकास, स्कूल शिक्षा उसमें विपक्ष बराबर यह आरोप लगाता रहा है कि सरकार के जितने मंत्री हैं उनके विभागों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार आपके विभाग में है?
00 इसमें दो-तीन महत्वपूर्ण चीजें हैं। एक तो रोजगार गारंटी योजना हो या प्रधानमंत्री सडक़ योजना। ये दोनों विभाग मेरे पास हैं। वर्किंग डिपार्टमेंट के खिलाफ हमेशा आरोप लगे हैं कि ये काम नहीं हुए, इसमें गुणवत्ता नहीं है। जबसे लोकतंत्र बना है वर्किंग डिपार्टमेंट पर ये आरोप लगते रहे हैं। भ्रष्टाचार का जहां तक सवाल है एक दस्तावेज आज तक कांग्रेस या जो भी बोल रहे हैं वो उपलब्ध नहीं करा पाए हैं कि यहां पर भ्रष्टाचार हुआ है। पौने पांच साल तक विधानसभा में आज तक स्कूल शिक्षा, ग्रामीण विकास या पंचायती राज में ऐसा कोई मुद्दा प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं जिससे भ्रष्टाचार प्रमाणित होता हो। हवा में यदि कोई बात करे तो मैं समझता हूं कि इसका जवाब देना जरूरी नहीं। मैं चाहता हूं कि वे दस्तावेजों के साथ प्रमाणित करें कि इस तरह के भ्रष्टाचार हुए हैं और जहां भी अधिकारियों ने गड़बड़ी की वहां सबसे पहले हमने कार्रवाई की। कांकेर का घोटाला यदि वो बताते हैं तो सबसे पहले हमने कार्रवाई की और कांग्रेस ने उसको उद्घाटित नहीं किया बल्कि मैंने स्वयं संज्ञान लिया और कलेक्टर और सीईओ के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की और आगे की जांच चल रही है। मैंने विधानसभा में घोषणा की है कि जो सरकारी नियम प्रक्रियाओं में अधिकतम कार्रवाई हो सकती है वो होगी, चाहे आदमी कितना ही बड़ा क्यों न हो। कांग्रेस अपनी पीठ थपथपाती है कि वहां घोटाला हुआ। अगर वो ये बात जानते तो बात समझ में भी आती।
0 आपके स्वभाव, बोलचाल के तरीकों के बारे में लोग ऊंगली उठाते रहे हैं। इस बारे में आप कुछ कहना चाहेंगे ?
00 अभी तो मैं आपसे बातचीत कर रहा हूं, इसकी प्रतिक्रिया आपको छाप देनी चाहिए। आपने पूरी बातचीत में क्या महसूस किया। मैं आंदोलन से, संघर्ष से यहां तक आया हूं। मैं किसी की कृपा से यहां नहीं आया हूं। मेरे खिलाफ आज तक कोई आरोप नहीं मिला है। किसी तरह से लोग मुझे घेर नहीं पाए तो विरोधी लोग विभिन्न स्तरों में विभिन्न अवसरों पर निहायत व्यक्तिगत हमले करते रहते हैं। स्तरहीन, जिसमें दूर-दूर तक कोई सच्चाई नहीं है और मेरे राजनीतिक स्वभाव में व्यक्तिगत तौर पर हमले करना, विधानसभा में बिना सबूत के आरोप लगाना शामिल नहीं है। ये सब तथ्यहीन बाते हैं, भ्रामक प्रचार है। आरोप लगाना चाहिए हमेशा मुद्दों पर।
0 ऐसे क्यों करते हैं लोग ? आप पर ही आरोप क्यों लगाए जाते हैं?
00 आज तक उनको कोई मुद्दा नहीं मिल पाया इसलिए।
0 आपके कई बयानों पर बहुत बवाल मचा है, आपका एक बयान था कि सरकार बच्चे पैदा नहीं करती। इस बारे में क्या कहना चाहेंगे? इस तरह के बयान आप बोलना चाहते हैं या अनजाने में निकल जाते हैं या लोग इसका दूसरा अर्थ निकाल लेते हैं?
00 ये कुछ लोगों की मेरे खिलाफ साजिश है। मैं यहां परंपरागत बात नहीं बोलूंगा। मैं ये कहूंगा कि मेरे पूरे भाषण को जो बुद्धिजीवी हैं, उनको सुनना चाहिए जहां पर मैंने ये बात कही या नहीं कही है और उसके बाद प्रतिक्रिया दें और उसके बाद मुझसे बहस करें। तब मैं मानूंगा कि मेरी भावनाएं उचित हैं या प्रतिक्रिया व्यक्त करने वालों की भावनाएं उचित हैं। ये महत्वपूर्ण है। वो बहस का विषय है जो मैंने बात कही हैं।
0 इतना सब कुछ आपके स्वभाव, आपके विभाग के ऊपर आरोप लगते रहते हैं। आपके बोलचाल, बयानों पर हल्ला हो जाता है। आपकी वजह से भाजपा को चुनाव में कुछ नुकसान हो सकता है। इस बारे में आपका क्या सोचना है?
00 मैं यह हमेशा कहता हूं कि कांग्रेस पार्टी अचानक नींद से जागी है और उसको कुछ हाथ नहीं लगा तो बिना तथ्यों के हवाई हमले शुरु कर दी है। बिना सिर-पैर की बातों से किसी का नुकसान नहीं होता। लोग समझदार हैं, उनकी पांच साल की सक्रियता उन्होंने देखी है जनहित के मुद्दों पर। मैं यही कहता हूं कि ऐसी पूरी तरह असफल पार्टी अगर तथ्यहीन बात करेगी तो आज के समय में चलने वाली नहीं है। व्यक्तिगत जीवन, व्यक्तिगत बातों पर हमलों को तो कोई भी सभ्य समाज पसंद नहीं करता। इससे भाजपा को क्षति होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।
0सीएम बनने की तमन्ना है क्या आपकी?
00 मै कोई भी महत्वकांक्षा नहीं पालता। पार्टी का जो निर्देश होता है। पार्टी जो ड्यूटी लगा दे, उसी को पूरी ईमानदारी से करने की कोशिश करता हूं।

"भाजपा के लोगों को मालामाल किया जा रहा"


(रायपुर, 24 अप्रैल 2008, दोपहर 11.30 बजे)

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री और मंदिर हसौद के विधायक सत्यनारायण शर्मा मानते हैं कि भाजपा का भ्रष्टाचार आने वाले चुनाव में एक बड़ा मुद्दा होगा। ऊंची दरों पर अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए योजनाबध्द ढंग से काम किया जा रहा है। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में भयमुक्त प्रशासन का वादा किया लेकिन इसके कार्यकर्ता गांवों में लोगों को डराते-धमकाते हैं, झूठे मामलों में फंसाते हैं। जनता चुपचाप यह सब देख रही है और उसकी खामोशी का खामियाजा भाजपा को चुनाव में उठाना पड़ेगा। श्री शर्मा का कहना है कि भाजपा के शासनकाल में छत्तीसगढ़ की संस्कृति का नुकसान हुआ है। बाहरी लोगों को बुला बुला कर मालामाल किया जा रहा है। छत्तीसगढ़िया लोगों की हालत खस्ता है। छत्तीसगढ़ में गुजरात के दोहराव की वे संभावना नहीं देखते। उनका मानना है कि छत्तीसगढ़ की जनता की जागरूकता और भाईचारा किसी सांप्रदायिक इरादे को सफल नहीं होने देगा। बबलू तिवारी ने संजय  शुक्ला  के साथ उनसे आगामी विधानसभा चुनाव के संदर्भ में बात की-

0 आगामी विधानसभा चुनाव में आपकी पार्टी किन मुद्दों के साथ जनता के बीच जा रही है?
00 कांग्रेस शासनकाल में जनभावना के अनुरूप जो व्यवस्था थी, उसे लोग आज भी याद करते हैं। भाजपा के शासनकाल में सर्वाधिक भ्रष्टाचार हुआ जो किसी से छुपा नहीं है। चाहे वह रतनजोत की आड़ में किया गया भ्रष्टाचार हो, मोवा धान घोटाला हो, चावल की अफरातफरी हो, जिस गोदाम की क्षमता 10 हजार मीट्रिक टन नहीं है वहां ये उससे कई गुना यादा स्टोरेज बताते हैं। कुल मिलाकर भाजपा का सारा काम कागजी ही रहा है। कांग्रेस का मुख्य मुद्दा भाजपा का भ्रष्टाचार रहेगा। इन्होंने भय, भूख और भ्रष्टाचार मिटाने की बात अपने घोषणापत्र में कही थी, लेकिन इनके कार्यकाल में भय बढ़ा है, गांवों में भाजपा के कार्यकर्ता लोगों को डराते-धमकाते हैं, झूठे मामलों में फंसाते हैं। इन्होंने सैकड़ों समस्या समाधान शिविर लगाए पर लोगों को कोई राहत नहीं मिली। अभी ग्राम सुराज में भी वही किया जा रहा जिससे कोई हल निकलने वाला नहीं है। गर्मी में जनता पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रही है। वह सारी बात जानती-समझती है, पर इस समय खामोश है और यही खामोशी भाजपा के लिए खतरा है। भाजपा के शासन में अफसरशाही बढ़ी है, निरंकुशता बढ़ी है, नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाकर अपने ढंग से इसने काम किया है। भाजपा के लोग पूरे समय अपनी जेबें भरने में लगे रहे, मालामाल हो गए और जनता गरीब होती जा रही है। इन मुद्दों के साथ ही केंद्र की यूपीए सरकार द्वारा किसानों का कर्ज माफ करना, रोजगार गांरटी योजना के माध्यम से बेरोजगारों को रोजगार देना आदि हमारी पार्टी के मुद्दे रहेंगे।

0. भाजपा के लोग कहते हैं कि आपकी पार्टी में गुटबाजी हावी है जिसका उन्हें लाभ मिलेगा?

00. यह भाजपा का सपना है। हमारी पार्टी विशाल है, इसका इतिहास 125 वर्ष पुराना है। बड़ी होने के नाते ये बातें हो सकती हैं। लेकिन समय आने पर हमारे सभी लोग एकजुट होकर चुनौतियों का सामना करते हैं। समय का इंतजार कीजिए हमारे सभी नेता एकजुट होकर भाजपा के मंसूबों को नाकाम कर देंगे।

0. कांग्रेस के कई नेताओं की महत्वाकांक्षाएं टकराने की बाते सामने आती रहती हैं, कुछ लोग अभी से अपने आप को सीएम के रूप में प्रोजेक्ट करने लगे हैं?

00. कोई भी व्यक्ति हमारी पार्टी में दावा नहीं कर सकता कि मैं सीएम बनूंगा। पहले चुनाव होता है, लोकतंत्र में चुनकर आए विधायक और हाईकमान के प्रतिनिधि बैठकर इसका फैसला करते हैं। हमारे यहां ऐसी परंपरा नहीं है। हमारे यहां भाजपा जैसा नहीं है कि सब अपने को सीएम बताने लगें। रही बात महत्वाकांक्षा की तो मैं इसे गलत नहीं मानता। लेकिन महत्वाकांक्षा अपनी जगह है और हाईकमान के निर्देश का पालन करना अपनी जगह। और जब हाईकमान का निर्देश मिलता है तो सभी लोग एकजुट होकर काम करते हैं।

0. आप मंदिरहसौद सीट से पांच बार विधायक चुने गए हैं। यहीं से चुनकर अविभाजित मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे हैं। आपकी सीट परिसीमन में विलोपित हो रही है। अब कौन सा नया इलाका आपके सामने है? वहां अपनी क्या उपलब्धि लेकर जनता के बीच जाएंगे?

00 मंदिरहसौद विधानसभा सीट पर मेरा यह पांचवां कार्यकाल है। मेरी सेवा भावना और विकास कार्यों की वजह से ही मुझे वहां की जनता ने बार-बार मौका दिया है। लोगों को पता है कि मैं अपने क्षेत्र के काम के लिए चौबीसों घंटे तैयार रहता हूं। मंदिरहसौद में एजुकेशन में सबसे अधिक काम हुआ है। 77 गांवों में 16 हायर सेकेंडरी स्कूल हैं। कोई ऐसा गांव नहीं है जहां सड़क, बिजली, प्राथमिक स्वास्थ्य का इंतजाम न हो। मेरे विधानसभा क्षेत्र में तीन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। पीने के पानी के मामले में कोई ऐसा गांव नहीं है जहां 20 हैंडपंप से कम हों। जिस भी नये विधानसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी पार्टी मुझे देगी वहां निर्वाचित होने के बाद जनता की आशाओं के अनुरूप मैं काम करूंगा।

0. आपकी पसंद वाली कोई विधानसभा सीट है क्या?

00. पसंद का सवाल नहीं है। चार विधानसभा सीटें बनी हैं, पार्टी उनमें से जो भी सीट देगी मैं उस पर चुनाव लड़ूंगा।

0. भाजपा की तीन रुपए चावल योजना के बाद आपकी पार्टी ने भी सत्ता में आने पर 2 रुपए किलो चावल देने की घोषणा की है। भाजपा के लोग कहते हैं कि अगर कांग्रेस का ऐसा मन है तो वह दूसरे रायों में जहां कांग्रेस की सरकार है वहां इसे क्यों नहीं शुरू करती?

00. हमारे महामंत्री वी नारायण सामी ने कहा है कि हमारी सरकार बनेगी तो हम दो रुपए किलो में चावल देंगे। इसमें कोई दिक्कत नहीं है। मेरा व्यक्तिगत मानना है कि हम लोगों को भरपेट भोजन देंगे। भाजपा को अपने स्टेट की बात और तुलना करनी चाहिए। दूसरे स्टेट में भाजपा की सरकारें भी हैं, वे वहां इसे क्यों नहीं लागू कर रहे हैं। आवश्यकता पड़ने पर इस पर भी विचार किया जाएगा।

0. आप कह रहे हैं कि भाजपा में बहुत ज्यादा भ्रष्टाचार है, लेकिन जनता को तो विकास के काम होते हुए दिख रहे हैं?

00. आप कहीं से भी वैल्यूएशन करा लीजिए जो एस्टीमेट बन रहे हैं वह दस गुना यादा कीमत के हैं। सामान्य से ऊंची कीमत पर ठेके दिए जा रहे हैं। लोवेस्ट रेट आता है तो उसे कैंसिल कर देते हैं, अपने-अपने लोगों को देने के लिए फिर से बढ़ी कीमत पर टेंडर बुलाए जाते हैं। जनता सब समझती है, उसे पता है कि कौन काम कितने का है, उसे कितने में किया गया है। काम किस गुणवत्ता का है। जनता को नासमझ समझने वालों के होश चुनाव के बाद उड़ जाते हैं।

0. मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की जो छवि है उसका भाजपा को कितना फायदा मिलेगा?

00. जनता जानती है कि मुख्यमंत्री के अकेले के बस की बात नहीं है। मुख्यमंत्री भले आदमी हैं इसको हम मान सकते हैं। लेकिन मुख्यमंत्री की टीम करप्ट है। भाजपा के दूसरे लोग भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। मुख्यमंत्री का कोई नियंत्रण भाजपा के लोगों और अपनी टीम पर नहीं है।

0. नक्सलवाद के मुद्दे पर आपका क्या कहना है?

00. नक्सलवाद के मुद्दे पर हमारी पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा को बोलने का अधिकार दिया है। इसलिए इस पर जो भी कहना होगा वे ही कहेंगे।

0. बिजली विखंडन के मामले में कर्मचारियों का कहना है कि यहां के स्थानीय नेता इसका विरोध नहीं कर रहे हैं। आपकी पार्टी का क्या कहना है?

00. बिजली बोर्ड के अधिकारियों ने नेता प्रतिपक्ष को इस संबंध में ज्ञापन दिया था। हमारी पार्टी ने तो कहा था कि सरकार संकल्प ले आए हम लोग उसका समर्थन करेंगे। संकल्प लाना सरकार का दायित्व है। सरकार क्या करना चाहती है समझ में नहीं आता।

0. चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को किस-किस चीज का फायदा मिल सकता है?

00. भाजपा को नकारात्मक वोट के चलते सबसे यादा नुकसान होगा और कांग्रेस को इसी का फायदा मिलेगा।

0. महिलाओं को चुनाव में तैंतीस प्रतिशत आरक्षण देने पर आपकी पार्टी का क्या स्टैंड है? भाजपा ने अपने राष्ट्रीय संगठन में महिलाओं को बड़ी संख्या में स्थान देकर इसकी शुरुआत कर दी है।

00. सबसे पहले कांग्रेस सरकार ने महिलाओं को पंचायत के चुनाव में 33 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी। भाजपा ने जो महिलाओं को स्थान दिया है वह अपने निजी संगठन में दिया है। वे वहां 100 प्रतिशत महिलाओं को स्थान दे सकते हैं। विधानसभा और लोकसभा में आरक्षण दे कर दिखाएं तो उनकी कथनी-करनी एक होगी।

0. अभी जो वेदांती का मामला सामने आया है उससे आपको नहीं लगता कि भाजपा चुनाव के समय गुजरात पैटर्न इस्तेमाल कर सकती है?

00. छत्तीसगढ़ सात्विक राय है। यहां सांप्रदायिकता जैसी जनता में कोई भावना नहीं है और न ही इसका जनता पर कोई असर होता है। लोगों में आपसी भाईचारा, सदभाव है। इसलिए चाहे वेदांतीजी हों या दूसरे लोग इसका कोई असर होने वाला नहीं है। भाजपा धार्मिक उन्माद उभारने का हर जगह प्रयास करती है, लेकिन छत्तीसगढ़ की जनता समझदार है। इसलिए ये यहां सफल नहीं होंगे।

0. राहुल गांधी का दौरा अभी छत्तीसगढ़ में हो रहा है, उसका कांग्रेस को क्या फायदा मिलेगा?

00. राहुल गांधी जी का दौरा प्रदेश के विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों में हो रहा है, जिसमें वे समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। उसका राय और पार्टी को बहुत फायदा मिलने वाला है। राहुल जी का जो आकर्षण है उससे युवा तबके पर विशेष प्रभाव पड़ेगा और उमंग का संचार होगा। उनके मन में आदिवासियों विशेषकर महिलाओं के लिए जो सम्मान है यही उनकी पहचान है। बगैर पूर्व सूचना दिए वे लोगों से मिलते हैं और जानने का प्रयास करते हैं कि जनता क्या सोचती है, क्या चाहती है, उसका शोषण तो नहीं हो रहा, उसके साथ अन्याय तो नही हो रहा।

0. साढ़े चार साल के भाजपा के शासनकाल में आप छत्तीसगढ़ की संस्कृति को कहां पाते हैं?

00. भाजपा के शासनकाल में संस्कृति के बारे में किए गए कार्यों की प्रगति मुझे डिस्प्ले बोर्ड और विज्ञापनों में ही दिखाई पड़ती है। यही हाल पर्यटन का भी है। हर योजना के झूठे प्रचार और आंकड़ों के लिए करोड़ों रुपए पब्लिसिटी पर बर्बाद कर दिए गए। कुछ लोगों का चेहरा बोर्डों में बार-बार देखकर जनता परेशान हो गई है। उन बोर्डों पर जनता नजर तक डालना नहीं चाहती। इन्होंने यहां के कल्चर का सत्यानाश किया है। छत्तीसगढ़ियों की हालत खस्ता है, बाहरी लोगों को बुला-बुलाकर उन्हें मालामाल किया जा रहा है। इस पार्टी ने संस्कृति के नाम पर सिर्फ धार्मिक उन्माद को उभारने का काम किया है। धार्मिक होना एक अच्छी बात है हम इससे इंकार नहीं करते। लेकिन धर्मान्ध होना खतरनाक है। कट्टरपंथी चाहे हिन्दू हों या मुसलमान सभी देश के लिए घातक हैं। मैं एक ही बात कहना चाहता हूं कि हम सबकी संस्कृति भाईचारे में समाहित है।

"डा. रमन की छवि अच्छी मगर सरकार की नही"


( रायपुर, 23 अप्रैल 2008, दोपहर 12 बजे)

कांग्रेस से कसडोल के विधायक राजकमल सिंघानिया छत्तीसगढ़ में अफसरशाही को भी एक मुद्दा मानते हैं। वे कहते हैं कि सरकार की गर्दन अधिकारियों के सामने झुकी हुई है। उनका कहना है कि डा. रमन सिंह की छवि बहुत अच्छी है, लेकिन उनकी सरकार भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। वे यह भी कहते हैं कि सरगुजा की लड़कियों को महानगरों में बेचा जा रहा है जो छत्तीसगढ़ की अस्मत बिकने के समान है इसलिए इस सरकार को एक दिन भी बने रहने का हक नही है। सिंघानिया मानते हैं कि कांग्रेस के भीतर मतभेद हैं पर मनभेद नहीं। नेशनल लुक के लिए बबलू तिवारी ने उनसे चर्चा की-

0. आगामी विधानसभा चुनाव में आपकी पार्टी क्या-क्या मुद्दे लेकर जनता के बीच जाएगी ?
00
. किसी भी चुनाव में दो बातें होती हैं। एक तो हमने क्या किया और दूसरी विपक्ष की विफलताएं। हमने क्या किया में हमारे पास राय गठन के बाद तीन साल की कांग्रेस सरकार का कामकाज हमारे पास है। जिसमें गुणवत्ता, पारदर्शिता के साथ वाजिब कीमत में विकास के अनेकों काम हुए। कांग्रेस सरकार की हर नीति समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने को लेकर बनाई गई थी। लोगों को उनके गांव में ही रोजगार मिले इसके लिए हर जगह राहत कार्य खोले गए थे। आज भी दौरे के समय ग्रामीण कहते हैं कि जोगी के राज में उनके घर में 2-3 क्विंटल चावल रहता था। हर क्षेत्र में विकास का काम हुआ था। उसके उलट भाजपा सरकार में भी विकास के कार्य हो रहे हैं, क्योंकि केंद्र से इस समय 10 हजार करोड़ रुए से अधिक पैसा प्रतिवर्ष पैसा आ रहा है। लेकिन यहां हर काम में भ्रष्टाचार हो रहा है। एक तो एक रुपए का काम यह सरकार चार रुपए में कर रही है। ऊपर से किसी काम में गुणवत्ता और पारदर्शिता नही है। सारे काम भाजपा के लोगों को नियम-कानून को ताक में रखकर दिए जा रहे हैं। पूरा प्रदेश जानता है कि जोगी के समय गिरौदपुरी में कुतुबमीनार से उंचा जैतखाम बनाने की घोषणा की गई थी। इसके लिए बजट में 10-12 करोड़ रुपए का प्रावधान भी किया गया था। तीन साल तक सोए रहने के बाद चुनाव नजदीक आने पर इनके ऊपर दबाव बढ़ा। सरकार को सतनामी समाज और अनुसुचित जाति की याद आई। इन्होंने भी 17 करोड़ रुपए में जैतखाम बनाने की घोषणा की, इसके लिए गुपचुप तरीके से टेंडर बुलाए। तीन में से दो टेंडर को डिसक्वालीफाई कर दिया गया और रातोंरात एक टेंडर की राशि 17 करोड़ से बढ़ाकर 52.5 करोड़ कर दी। जबकि नियमत: सिंगल टेंडर को काम नहीं दिया जा सकता। काम देना तो छोड़िए इन्होंने रकम भी बढ़ा दी। एनयूटी में भी यही किया गया 1500 किमी की सड़क बनाने के लिए पहले 7-8 हजार करोड़ का बजट रखा गया था उसे रातोंरात बढ़ाकर 17 हजार करोड़ कर दिया गया। विधानसभा में जब हमारी पार्टी ने इस मुद्दे को उठाया तो मंत्री का जवाब था कि टंकण की त्रृटि की वजह से 7 से 17 हजार करोड़ रुपए हो गया। जबकि10 हजार करोड़ रुपए के यादा का एग्रीमेंट कर लिया गया और 15 सौ किमी से उसे बढाकर 25 सौ किमी कर दिया गया। तब यह टंकण त्रृटि कैसे हो सकता है। लेकिन सरकार ने विधानसभा में टंकण त्रृटि बताकर सिे सुधार लिया। इस तरह यह सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त है। गांव, गरीब, किसान की बात करने वाली भाजपा सरकार में किसी की सुनवाई नही है। केंद्र सरकार की रोजगार गारंटी योजना लागू होने से पहले बताएं कि कहां किस विधानसभा और किस ग्राम पंचायत में मजदूरों के लिए काम शुरू किया गया। मजदूरों को बंद लारी में भरकर भाजपा नेता पलायन करवा रहे हैं। किसानों को पानी, खाद के लिए भटकना पड़ रहा है। जिस प्रदेश का श्रम बिक रहा है, जिस प्रदेश की अस्मत बिक रही है, सौ से अधिक लड़किया सरगुजा से गायब हो गई, हमने विधानसभा में सवाल पूछा तो मंत्री कहते हैं कि यह तो होते रहता है। माइनिंग का अधिकार फर्जी कंपनियों को बेचा गया है और उन्हें बचाने का उपाय यह सरकार कर रही है। जो सरकार जिस प्रदेश का राजस्व, अस्मिता बेच जा रही है उसे सत्ता में एक दिन भी रहने का हक नही है। हम इन्हीं सब मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाएंगे।

0. आप बोल रहे हैं कि हर विकास के काम में केंद्र के पैसे का दुरूपयोग और भ्रष्टाचार हो रहा है, लेकिन जनता को तो बहुत सारे विकास कार्य होते दिख रहे हैं। जनता को यह कैसे समझाएंगे?
00. देखिए अगर केंद्र से एक हजार करोड़ रुपए सर्वशिक्षा अभियान के लिए आ रहे हैं तो कुछ काम तो दिखोगा ही। सड़क के लिए एक हजार करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं तो कुछ काम तो दिखेगा ही। लेकिन जनता देख रही हैं कि सड़कों की गुणवत्ता कैसी है। ठेकेदार कौन है, सब भाजपा के हैं। कितने यादा कीमत पर सड़क बनाई जा रही है। केंद्र से 10.5 हजार करोड़ का बजट इस साल दिया गया है। उसे इन्हें खच4 करना है। इसके लिए काम तो करना ही पड़ेगा। इससे विकास भी दिखेगा, लेकिन इसमें जो भ्रष्टाचार किया जा रहा है ुसे जनता देख, जान रही है। पूरी सरकार अधिकारी चला रहे हैं, ये उन्हें कस नहीं सकते क्योंकि उन्हीं के माध्यम से ये सारे भ्रष्टाचार कर रहे हैं। ये दबाव कैसे डालेंगे। अधिकारियों के सामने इनकी गरदन झुकी रहती है। जनता को सब पता है।

0. आप व्यक्तिगत रूप से पलायन का मुद्दा विधानसभा और अन्य मंचों पर लगातार उठाते रहे हैं। भाजपा सरकार को इसमें कहां खड़ा पाते हैं?
00. केंद्र की रोजगार गारंटी योजना एक ऐसा माध्यम है कि अगर इसका सफल क्रियांवयन हो तो किसी भी गांव से किसी भी घर से पलायन नहीं होगा। पलायन का मतलब सिर्फ लोगों का पैसे के लिए बाहर जाना नही हैं। बल्कि उसके साथ उसका पूरा परिवार, महिला, जवान बच्चे, बच्चिया सब बाहर जाते हैं। जहां पैसे के साथ ही बाहर इनका शारीरिक और मानसिक शोषण तो होता ही है। इनकी अस्मत का भी शोषण होता है। छत्तीसगढ़ी अस्मिता का शोषण होता है। रोजगार गारंटी में कम से कम 100 दिन का काम दिए जाने की बात कही गई है।अधिकतम में आपको 365 दिन तक काम दिया जा सकता है। लेकिन हमारे यहां राय शासन उन कामों को खोल नहीं रही है। जितने रजिस्ट्रेशन हो रहे हैं उन्हें काम नहीं दिया आड़ लगाया जा रहा कि जहां से काम मांगा जाएगा वहां काम खोला जाएगा। जबकि हर एक ब्लाक और ग्राम पंचायत से 5-10 काम का प्रस्ताव जमा है। लेकिन सरकार कहती है कि बेरोजगार कलेक्टर को पत्र लिखकर काम मागेगा तो काम खोला जाएगा। अब हमारे यहां के गरीब मजदूर जिनका की पंजीयन हुआ है उन्हें न तो इतनी जानकारी है और न समझ है कि वह कलेक्टर पत्र लिखे। अब आप कहते हैं कि आपके यहां से काम मांगा नहीं गया इसलिए 100 दिन का मुआवजा नहीं देंगे। जबकि ग्राम पंचायतों के माध्यम से काम मांगे गए हैं। यह सरासर अन्याय है। इसी के चलते लोग पलायन करते हैं, आखिर गरीब परिवार को दो जून खाने के लिए तो चाहिए ही? फिर उनका बंधन-शोषण होता है। इसे तो हम जानते हैं। मैने अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल में कम से कम 20 टीमें भेजकर जम्मू-कश्मीर, कलकत्ता, यूपी, नागपुर, महाराष्ट्र आदि से लोगों को छुड़ाया। एक-एक जगह से 20-40 लोगों को छुड़ाया गया। कोई जानबुझकर अपना शोषण कराने थोड़ी जाएगा। अगर आपको अपने घर में 500 रुपए का काम मिलेगा तो आप बाहर 2000 हजार का काम करने नहीं जाएंगे। यहां सरकार जानबूझकर काम नहीं खोल रही है। जबकि केंद्र से पूरा पैसा मिल रहा है। रोजगार में परावधान है कि हर हफ्ते काम का भुगतान किया जाएगा। मैं पूरी चुनौती से कहता हूं कि सभी जगह लोगों को 2-3 महीने हो गए हैं काम किए हुए किसी को भुगतान नहीं मिला है। मैंने प्रमाण के साथ कलेक्टर, प्रभारी मंत्री, सीओ जिला पंचायत को इस बारे में लिखा है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। अब जब भुगतान नहीं होगा तो वैल्युवेशन नहीं होगा तब तक काम की समाप्ति नहीं घोषित की जा सकती और जब तक काम की समाप्ति नहीं होगी, नया काम नहीं खोला नहीं जा सकता। इसे जानबूझकर भाजपा कर रही है। क्योंकि उसे डर है कि केंद्र सरकार की इस योजना का फायदा अगर जनता को मिला तो उसका परिणाम चुनाव में उलटा हो सकता है। भ्रष्टाचार के लिए ये लोग बोगस मस्टररोल भरा जा रहा है, इसे मैं दिखा सकता हूं। इसमें मशीनों और ठेकेदारी प्रथा से काम नहीं करवाया जा सकता, लेकिन मैं दिखा सकता हूं कि कहां-कहां यह हो रहा है। दस लाख के काम के लिए 30-30 लाख का एस्टीमेटबनाया गया है। बचे 20 लाख तो भ्रष्टाचार में ही जाएगा ना।

0. कांग्रेस में गुटबाजी की  बात  सामने आती रहती हैं। इसका चुनाव में क्या प्रभाव पड़ सकता है?
00. कांग्रेस बहुत बड़ा परिवार है। बड़े परिवार में मतविभिन्नताएं तो रहती ही हैं। कांग्रेस में मनभेद नही है यहां मतभेद है। चुनाव में वोट जनता को देना है और वह सोनिया जी का काम देख रही है, केंद्र की यूपीए सरकार का काम देख रही है, साथ ही राय सरकार का काम भी देख रही है। वह आपना आंकलन कर चुकी है क्योंकि वह भाजपा सरकार की अकर्मण्यता, निष्क्रियता,भ्रष्टाचार देख रही है। कांग्रेस में थोड़ा बहुत वादविवाद है, मतविभिन्नता है इससे जनता को फर्क नहीं पड़ता वह अपना मन बना चुकी है।

0. डा. रमन की जो छवि है, उसका चुनाव में भाजपा को कोई लाभ मिल सकता है क्या ?
00. डा. रमन की व्यक्तिगत छबि बहुत अच्छी है। सहज, सरल आदमी हैं। राजनीति से अलग हटकर काम करने की सोच रखते हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से उनकी इस स्वभाव का प्रशंसक हूं। पर पांच साल के कार्यकाल में जनता को क्या मिला? गरीब को क्या मिला? चुनाव में जनता इस बात का आंकलन करती है। उसे डा. रमन की छबि से कोई लेना-देना नही है। आज जनता यह देखती है कि उसके गांव में कितनी सड़क बनी, सिंचाई की क्या व्यवस्था हुई, राशन दुकान में सामान मिल रहा है कि नहीं। वह किसी का व्यक्तित्व देखकर वोट नहीं देती।

0. अभी जो वेदांती वाला मामला सामने आया है, उससे क्या नहीं लगता कि भाजपा गुजरात पैटर्न यहां लागू करना चाहती है?
00. निश्चित रूप से वह ऐसा प्रयास कर रही है, वह धार्मिक उन्माद उभारना चाहती है। जो कि छत्तीसगढ़ की फिजा और सदभावना के लिए बहुत गलत होगा। राजिम जो कुंभ का मेला एक धार्मिक मेला है। वह न किसी पार्टी का है और न किसी सरकार का। सरकार की जिम्मेदारी वहां व्यवस्था की है। उसे इन्होंने भाजपा का मंच बना दिया। छत्तीसगढ़ में जो प्रचलित धर्म है उसमें बाबा घासीदास, गुरू कबीरदास आदि धर्मों के बहुत सारे अनुयायी हैं। वहां सिर्फ एक धर्म और भाजपा से जुड़े धर्माचार्यों को ही बुलाया गया। वेदांती तो शुध्द रूप से भाजपाई हैं। जिन्हें रिश्वत के मामले में हटाया गया। वे ऐसे लोगों को बुला रहे हैं जिन्हें शर्म के मारे कहीं आना-जाना नहीं चाहिए और ऐसे लोग मंच से नैतिकता की बात करते हैं।हालांकि छत्तीसगढ़ की जो संस्कृति है उसमें इसे कहीं से भी प्रश्रय नहीं मिलता है। जनता के सामने भाजपा का यह प्रयास खुल गया है और उसे बहुत निंदनीय करार दिया है। इसका खामियाजा भाजपा को चुनाव में पता चलेगा। गुजरात जैसा पैटर्न यहां नहीं चल सकता।

0. आप कसडोल के विधायक हैं। अगले चुनाव में कसडोल की जनता के बीच अपनी क्या उपलब्धि लेकर जाएंगे? साढ़े चार साल के कार्यकाल में अपनी क्या उपलब्धि मानते हैं? लोगों कहते हैं राजकमल बड़े आदमी हैं, जमीन के व्यापारी हैं, जनता के लिए समय कैसे निकालते हैं?
00. मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि कसडोल की जनता से मिले भरपूर प्यार, सहयोग, आर्शीवाद को मानता हूं। मैंने अपनी विधानसभा के सभी 325 गांवों में जाने का प्रयास किया। हर गांव में मैं दो से लेकर दस-दस बार तक जा चुका हूं। मेरा प्रायस रहता है कि सभी से लोगों से मिलूं। रही बात कार्यों की तो एक विधायक का जो अधिकार और दायित्व होता है उसे मैंने पूरा निभाने का प्रयास किया। अपने इलाके में केंद्र की सभी योजनाओं को लागू करवाने के लिए प्रशासन पर दबाव बनाया। रही बात बड़े आदमी की तो मैंने 15 साल से व्यापार छोड़ दिया है, मैंने 7-8 साल से कोी जमीन नहीं खरीदी है। मैं अपना पूरा समय समाजसेवा और अपने क्षेत्र की जनता को देता हूं। लोगों को शहर में मेरी जमीन देखकर ऐसा लगता है, लेकनि वह मेरी पुश्तैनी जमीन है। उसकी हिफाजत तो मैं करूंगा ही। मैंने जब तक धंधे में सक्रिय रहा तब तक कोई अनैतिक काम करके और गरीब का शोषण करके धन नहीं कमाया। कसडोल की जनता को भी पहले लगा था कि सिंघानिया जी बड़े आदमी हैं, चुनाव जीतने के बाद लौटकर आएंगे की नहीं। अगले चुनाव में मेरा काम जनता बताएगी। मेरी उपलब्धियों में कसडोल में सौ बिस्तर का अस्पताल, प्रत्येक वर्ष करीब सौ करोड़ रुपए की सड़कों का निर्माण, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, स्कूलों की बिल्डिंग समेत लगभग सभी विभागों से पूरा काम करवाया। मैं दावे से बोल सकता हूं कि जितना एक भाजपा का विधायक अपने क्षेत्र में काम करवाया होगा मैंने उससे यादा काम करवाया है। हालांकि भाजपा सरकार ने काम रोकने और पेंडिंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन मैं अपने व्यक्तिगत संबंधों और काम के पीछे पड़कर उसे पूरा करवाया।


0. भाजपा शासन में छत्तीसगढ़ की संस्कृति के लिए क्या काम हुए हैं? छ्तीसगढ़िया के साथ क्या दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है?
00. संस्कृति और पर्यटन में काम तो हो रहा है, लेकिन भ्रष्टाचार यहां भी हावी है। जहां तक छत्तीसगढ़िया की स्थिति की बात है, मैंने 15 साल पहले इस बात को उठाया था कि यहां जो उद्योग या संस्था हैं उनमें स्थानीय लोगों को नौकरी देने का प्रावधान होना चाहिए। रही बात संस्कृति रक्षा की तो जनता ने राजिम मेले में देख लिया है। भाजपा शासन में छत्तीसगढ़ियों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा इसमें कोई शक नही है।





"पिछला चुनाव कांग्रेस अपनी गलतियों से हारी"


( रायपुर, 5 अप्रैल 2008, दोपहर 11.30 बजे )

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. चरणदास महंत का मानना है कि पिछला चुनाव कांग्रेस अपनी गलतियों से हारी थी। इस बार अगर वह मिलकर लड़ी तो अगली सरकार उसी की बनेगी। सोनिया गांधी के नेतृत्व में उन्हें पार्टी एक होती दिख भी रही है। वे बताते हैं- हमारे किसी के मन में मुख्यमंत्री बनने का लालच नहीं है। मैंने और विशेषकर कर्मा जी ने एआईसीसी की मीटिंग में हमारे वरिष्ठ नेताओं को साफतौर पर कह दिया है कि हमको आप काम करने दीजिए। सरकार हम बनाकर आपको दे रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने की हमारी कोई मंशा नहीं है। आप जिसको भी चाहें मुख्यमंत्री बनाएं हमारा इसमें कोई टकराव नहीं है। डा. महंत को लगता है कि भाजपा ने घोषणापत्र में जो वादे किए थे वे पूरे नहीं हुए। इससे जनता नाराज है और इसका फायदा कांग्रेस को मिलेगा। वे छत्तीसगढ में गुजरात दोहराए जाने की गुंजाइश नहीं देखते। उन्हें लगता है कि यहां की जमीन सांप्रदायिकता को बर्दाश्त नहीं करती। राज्य में आम छत्तीसगढ़िया की स्थिति उन्हें पीड़ादायक लगती है। उनका कहना है कि छत्तीसगढ़िया को दोयम दर्जा दिया गया है, उसके आगे बढ़ने की संभावनाएं नहीं हैं। पिछली सरकार के समय जरूर स्थितियां अलग थीं। आगामी चुनाव की संभावनाओं पर नेशनल लुक के लिए बबलू तिवारी ने उनसे चर्चा की। पेश हैं उसके प्रमुख अंश-


0- आनेवाला विधानसभा चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा ?
00- हम लोग जिन मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगे उसमें पहला होगा कि भाजपा ने अपने घोषणापत्र में जनता से जो वादा किया था उसका 90 प्रतिशत पालन नहीं किया। विकास के नाम पर भाजपा ने पूरे प्रदेश में भ्रष्टाचार को बढ़ाया है। आज उनका हर सरपंच और कार्यकर्ता भ्रष्टाचार की चपेट में है तथा विकास के नाम पर मिलने वाले पैसे का आधा खुद खा रहा है। हमारे पास हमारी केंद्र की यूपीए सरकार की उपलब्धियां हैं। किसानों का 60 हजार करोड़ रुपए की कर्जमाफी का मुद्दा लेकर जनता के पास जाएंगे। साथ ही हमने कहा है कि किसानों और गरीबों को दो रुपए में चावल देंगे, धान का मूल्य कुछ भी हो उस पर दो सौ रुपए बोनस देंगे, किसानों को सिंचाई के लिए बिजली का कनेक्शन मुफ्त में देंगे और प्रयास करेंगे कि छोटे और कृषि ऋण पर किसानों को ब्याज न देना पड़े। हमारा मुख्य उद्देश्य किसानों, ग्रामीणों, गांव के छोटे-छोटे बढ़ई, लोहार आदि को बढ़ावा देने का है।

0- आप कहते हैं कि भाजपा ने अपने घोषणापत्र का 90 प्रतिशत काम नहीं किया, लेकिन भाजपा के शासनकाल में विकास के कार्य तो होते दिख रहे हैं ..
00- भाजपा ने जो मूल घोषणाएं गरीबों-आदिवासियों के लिए की थीं जैसे गाय बांटने का वादा किया था, बेरोजगारी भत्ता बांटने की बात कही थी, किसानों के लिए जो कहा था उसे पूरा नहीं किया। भाजपा के प्रति ग्रामीणों और किसानों में रोष हम देख रहे हैं। वे इनके व्यवहार, रवैए और भ्रष्टाचार से आक्रोशित हैं। उस आक्रोश का कांग्रेस को निश्चित ही फायदा मिलेगा ऐसा मैं मानता हूं। मुझे विश्वास है कि इस सरकार के प्रति लोगों में जो निराशा है हमें उसका लाभ मिलेगा। हमे यह मालूम है कि भाजपा हमारी गल्तियों की वजह से जीती है। भाजपा को 1998 में 39 प्रतिशत वोट मिले थे और उसमें इन्हें 36 सीटें मिली थीं और अभी इन्होंने 39 प्रतिशत वोट में 50 सीटें जीतीं। इसके पीछे कांग्रेस के बिखराव की भूमिका थी। इसलिए हमारा पहला प्रयास कांग्रेस के बिखराव को समाप्त करना है जिसमें हम लगभग कामयाब हो रहे हैं और चुनाव के समय तक हम पूरी तरह से इस बिखराव को समाप्त करेंगे। कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ेगी तो आनेवाली सरकार कांग्रेस की होगी।

0- राजनीति में महत्वाकांक्षाओं को किस तरह से देखते हैं? उनका टकराव ही तो कांग्रेस के बिखराव का कारण है...
00- महत्वाकांक्षाओं का टकराव तो राजनीति में होते ही रहता है। लेकिन आज की तारीख में सोनिया जी के निर्देश पर दिल्ली में जो बैठकें एआईसीसी में हुई हैं, उसमें सबने अपना मतभेद भुलाने का प्रयास किया है और हम लोग कांग्रेस के लिए सरकार बनाना चाहते हैं, सोनिया जी के लिए सरकार बनाना चाहते हैं। हमारे किसी के मन में मुख्यमंत्री बनने का लालच नहीं है। मैंने और विशेषकर कर्मा जी ने एआईसीसी की मीटिंग में हमारे वरिष्ठ नेताओं को साफतौर पर कह दिया है कि हमको आप काम करने दीजिए। सरकार हम बनाकर आपको दे रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने की हमारी कोई मंशा नहीं है। आप जिसको भी चाहें मुख्यमंत्री बनाएं हमारा इसमें कोई टकराव नहीं है।

0- दो रुपए किलो चावल की जो बात कांग्रेस कर रही है उसे कांग्रेस शासित रायों से क्यों नहीं शुरू किया जाता, यह सवाल विरोधी पूछ रहे हैं...
00- हमारा कांग्रेस शासित राय छत्तीसगढ़ से लगा हुआ आंध्र प्रदेश है। वहां हम दो रुपए किलो में चावल दे ही रहे हैं। ऐसा नहीं है कि भाजपा के तीन रुपए चावल की घोषणा के बाद हमने सोचा। मैं भाजपा से पूछना चाहूंगा कि उनकी किन-किन रायों में सरकार है और वे किन-किन रायों में तीन रुपए में चावल दे रहे हैं।

0- कांग्रेस गुजरात चुनाव परिणाम का किस तरह से विश्लेषण करती है? भाजपा उसे छत्तीसगढ़ में दोहराने का अगर प्रयास करती है तो ऐसी स्थिति में कांग्रेस क्या करेगी ?
00- गुजरात में भाजपा ने सांप्रदायिकता फैलाकर और लोगों को बांटकर चुनाव लड़ा था। छत्तीसगढ़ की जो जमीन है वह इन चीजों को सहन नहीं करती है। यहां वैसे हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई के बीच झगड़े नहीं हैं जैसे गुजरात में हैं। यहां लोगों में एका है, सामाजिक समरसता है इसलिए गुजरात का कोई प्रयोग यहां सफल नहीं हो पाएगा।

0- चुनावों में इतना ज्यादा खर्च क्या जरूरी है? इसका कोई विकल्प नहीं है क्या?
00- आजकल समाचारपत्रों, इलेक्ट्रानिक मीडिया का जमाना है और सब लोग चाहते हैं कि समाचारपत्रों और इलेक्ट्रानिक मीडिया के जरिए चुनाव का प्रचार हो। इन कारणों से कुछ चुनाव खर्च तो बढ़ जाते हैं। फिर भी कांग्रेस पार्टी कम से कम खर्च में चुनाव लड़ते आई है और धन-बल का यहां यादा उपयोग नहीं रहा है।

0- रमन सरकार के कामकाज बारे में क्या कहना चाहेंगे?
00- मैं ऐसा मानता हूं कि रमन सरकार में जितने भी मंत्री बने हैं उनमें एकाध को छोड़कर किसी को भी अनुभव नहीं है। इसलिए राजकाज क्या होता है उनको समझ में नहीं आता है। इतने हल्के ढंग से किसी बात को कह जाते हैं जैसा कि अजय चंद्राकर जी ने कहा कि सरकार बच्चे पैदा नहीं करती। ये कोई छोटी-मोटी बात नही है कि एक सरकार का जिम्मेदार शिक्षामंत्री जिसकी प्राथमिक जिम्मेदारी लोगों को शिक्षित करने की है वो इस तरह की अनर्गल और अलोकतांत्रिक बात करे, जिसे दिमाग का दिवालियापन कहा जा सकता है। इस प्रकार के कई मंत्री हैं जिन्हें इस बात का होश ही नहीं है कि मुख्यमंत्री का, मंत्री का और सरकार का क्या दायित्व है। उन्होंने लालबत्ती ले ली, जितना पैसा आ रहा और जितनी व्यवस्था हो रही है सब भ्रष्टाचार में लगा रहे हैं मगर कर कुछ नहीं रहे हैं।

0- राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़िया की क्या स्थिति है और यहां की संस्कृति के साथ क्या हो रहा है?
00- राय बनने के बाद छत्तीसगढ़ियों की जो स्थिति है वह पूरी तरह से दोयम दर्जे की है। मैं इस बात को विस्तार से नहीं कहना चाहूंगा लेकिन यह सौ प्रतिशत कह सकता हूं कि राय बनने के बाद ं कांग्रेस सरकार में छत्तीसगढ़िया लोगों को आगे बढ़ने का अवसर मिल रहा था पर उसके बाद जबसे रमन सरकार आई है तब से छत्तीसगढ़ का कोई मंत्री न तो पनप सका और न बढ़ सका है। यहां के मंत्रियों को दोयम दर्जे में रखा गया। छत्तीसगढ़ियों को दोयम दर्जे पर रखा गया। भाजपा सरकार में जो लोग बाहर से आकर छत्तीसगढ़ में काम और व्यापार कर रहे हैं उन्हीं के यहां पौ-बारह हुए हैं। मैं यह कह सकता हूं और इस बात को आगे भी कहूंगा। छत्तीसगढ़ में एक कहावत है कि पेट में भात और छाती में लात। छत्तीसगढ़ियों के सम्मान के साथ भाजपा ने खिलवाड़ किया, हमारे सम्मान को तवाो नहीं दी। छत्तीसगढ़ की जो परंपरा-संस्कृति रही है आपस में मिलना, भेंट करना। यहां संत कबीर, बाबा घासीदास की जो सामाजिक शिक्षा है और प्रेम का संदेश था जिसके कारण हम लोगों में आपस में एकता और प्रेम था उसे इन्होंने खत्म करने और तहस नहस करने का प्रयास किया है।

0- डा. रमन सिंह की छवि आगामी विधानसभा चुनाव में क्या प्रभाव डालेगी?
00- डा. रमन सिंह की छवि चुनाव में कोई प्रभाव नहीं डालेगी।आखिर सभी मंत्रियों के नेता वही हैं। जो भी भ्रष्टाचार हुआ है वे उसके बराबर के भागीदार हैं। भाजपा सरकार ने यहां के किसानों, गरीबों, ग्रामीणों और छत्तीसगढ़ियों के साथ जो भी अन्याय किया है उसके प्रथमत: जिम्मेदार डा. रमन हैं। मैं नहीं मानता कि उनकी सरलता वाली जो छवि है वह किसी काम आनेवाली है।

"सलवा जुड़ूम के कारण पार्टी में अलग-थलग पड़ जाता हूं"



( रायपुर, 12 अप्रैल 2008, दोपहर 11 बजे )

'बस्तर का शेर' कहे जाने वाले महेंद्र कर्मा नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे आंदोलन सलवा जुड़ूम के प्रबल समर्थक हैं। विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर होते हुए भी उन्होंने नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में सरकार को सहयोग दिया जिसके कारण  विरोधी उन्हें रमन सरकार के मंत्रियों में गिनते हैं। उनका मानना है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनेगी जिसका लक्ष्य भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देना होगा। जनता को ऐसी सरकार चाहिए जिसमें अंतिम व्यक्ति तक की बात सुनी जाती हो, जो कांग्रेस में ही संभव है। उनके मुताबिक रमन सरकार के पास नक्सल मुद्दे पर कोई स्पष्ट रणनीति नहीं है। राष्ट्रीय और प्रदेश के हित का मामला होने की वजह से वे इससे जुड़े हैं। अपने खुद के बारे में श्री कर्मा कहते हैं कि सत्ताधीश नेता राजधानी के वातानुकुलित कमरे में बैठकर नक्सलियों से लड़ने की बात करते हैं, जबकि मैं दंतेवाड़ा के नक्सल इलाकों में जाकर लोगों से नक्सलियों को उखाड़ फेंकने की बात करता हूं, हममें और इस सरकार में यही फर्क है। श्री कर्मा का मानना है कि प्रदेश कांग्रेस के भीतर गुटबाजी लगभग समाप्त हो चुकी है और जनता पर डॉ. रमन सिंह की अच्छी छबि का कोई असर नहीं होगा। जनता जानती है कि यहां पुरस्कार खरीदे गए हैं। 'नेशनल लुक' के लिए नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा से बबलू तिवारी ने लंबी चर्चा की। प्रस्तुत है चर्चा के मुख्य अंश- 

0. आगामी विधानसभा चुनाव किन मुद्दों पर लड़ा जाएगा?
00. हमारी कांग्रेस पार्टी केंद्र की कांग्रेस सरकार द्वारा किसानों की कर्जमाफी, दो रुपए किलो में चावल देने की हमारी घोषणा को लेकर जनता के बीच जाएगी। प्रदेश स्तर पर हम किसानों और गांवों के छोटे उद्यमियों को ब्याज मुक्त ऋण देने पर विचार कर रहे हैं। भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन, लोगों को सामाजिक समानता देना हमारा मुख्य लक्ष्य होगा। बाकी भाजपा सरकार का कामकाज तो जनता के सामने है ही, इसलिए हमें अपनी बात समझाने में कोई मुश्किल नहीं जाएगी। जनता ने भाजपा का शासन देख लिया है और अब उसे समझ में आ चुका है कि कौन उनके हित की बात और काम करता है।

0. भाजपा को डा. रमन सिंह की छवि का क्या फायदा चुनाव में मिल सकता है ? भाजपा सरकार के कामकाज के बारे में क्या कहेंगे?
00. मुख्यमंत्री की छवि का भाजपा को कोई फायदा नहीं मिलने वाला। जनता को पिछले साढ़े चार साल के भाजपा शासन में समझ आ चुका है कि किसी की छवि से उसका कोई भला नहीं होना, उसे प्रशासनिक तंत्र पर मजबूत पकड़ वाली सरकार चाहिए, उसे गरीबों और ग्रामीणों के हित के लिए काम करने वाली सरकार चाहिए, उसे प्रदेश को विकास के रास्ते पर ले जाने वाली सरकार चाहिए, उसे ऐसी सरकार चाहिए जिसमें अंतिम व्यक्ति तक की बात सुनती हो, उसे भ्रष्टाचार मुक्त सरकार चाहिए, उसे सिर्फ पेट भरने के लिए सरकार नहीं चाहिए, उसे सामाजिक समानता चाहिए, छोटे तबकों को मुख्य धारा में लाने के लिए काम करने वाली सरकार चाहिए। इस सरकार का प्रशासनिक तंत्र पर कोई पकड़ नही है, ये सिर्फ भाजपाइयों के फायदे के लिए प्रशासन पर दबाव डालते हैं। हमने देखा है कि एक सरपंच के मामले में भाजपाइयों को खुश करने के लिए कैसे सरकार ने प्रशासनिक तंत्र पर दबाव डाला था। जिसमें भाजपा सरकार नाकामरही है। मुझे नहीं लगता कि किसी की व्यक्तिगत छवि का लाभ भाजपा को मिलेगा।

0. आप कह रहे हैं कि जनता कि उम्मीदों पर यह सरकार खरी नहीं उतरी है, जबकि मुख्यमंत्री को लगातार कोई न कोई पुरस्कार मिल रहा है ?
00. यही तो विडंबना है इस सरकार की। एक बार मुख्यमंत्री को सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री का पुरस्कार क्या मिला, वे पूरे कार्यकाल तक उसे बचाने में ही लगे रहे। इसके लिए न जाने कौन-कौन से तरीके आजमाए गए। कहीं से पुरस्कार खरीदा गया तो कहीं किसी संगठन को फायदा पहुंचाकर पुरस्कार प्राप्त किया गया। आखिर किसी मुख्यमंत्री को ऐसे पुरस्कार की जरूरत ही क्या है जो कि खरीदकर प्राप्त किया गया हो? उसका पुरस्कार तो जनता के लिए किए गए अच्छे कार्य और उसे लाभ पहुंचाकर मिलने वाला सम्मान होना चाहिए ।

0. नक्सलवाद के मुद्दे पर रमन सरकार को कहां खड़ा पाते हैं और अपने आप को भी ?
00. रमन सरकार के पास नक्सल मुद्दे पर कोई रणनीति नहीं है। राष्ट्रीय और प्रदेश के हित का मामला होने की वजह से मैं भी इससे जुड़ा हूं। अभी जो कामयाबी मिल रही है उसके पीछे जवानों और अफसरों का हौसला है, जिसे की यह सरकार लगातार कम कर रही है। इन्होंने जंगलों में सर्चिंग का काम बंद करा दिया है। इन्हें डर लगता है कि कहीं कोई बड़ी वारदात हो जाएगी तो इनके वोट बैंक पर प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने चुनाव तक वोट की खातिर नक्सल अभियानों को बंद कर दिया है। ये राजधानी के वातानुकूलित कमरे में बैठकर नक्सलियों से लड़ने की बात करते हैं, जबकि महेंद्र कर्मा दंतेवाड़ा के नक्सल इलाके में जाकर लोगों से नक्सलियों को उखाड़ फेंकने की बात करता है, हममें और इस सरकार में यही फर्क है। सलवा जुड़ूम अभियान जिसे यह सरकार अपनी उपलब्धि बताकर श्रेय लेने की कोशिश करती है, उसे वहां की जनता ने शुरू किया। इसके पीछे सरकार का कोई रोल नहीं है। ये सिर्फ उसे पीछे से मदद कर रहे हैं। लेकिन हम सलवा जुड़ूम के साथ उनके इलाके में खड़े रहते हैं। मैं इस मुद्दे की वजह से अपनी पार्टी में कई जगह अलग-थलग पड़ जाता हूं, लेकिन मैं दंतेवाड़ा से आता हूं, जो कि घोर नक्सल प्रभावित है, इसलिए मैं जानता हूं कि नक्सलियों की वजह से वहां का आदिवासी और जनता पूरे देश की अपेक्षा कितनी पीछे चली जा रही है। लोगों की जिंदगी दूभर हो गई है। वहां की जनता इससे छुटकारा चाहती है, मैं दूसरों की अपेक्षा इस दर्द को ज्यादा अच्छे से महसूस करता हूं, यहीं कारण है कि मैं सलवा जूड़ूम के साथ अपनी अंतिम सांस तक खड़ा रहूंगा। चाहे इसके लिए मुझे कोई भी कुर्बानी क्यों न देनी पड़ी।

0. क्या राहत शिविरों में रहने वाले लोगों का इस्तेमाल वोट बैंक के रूप में
किया जा सकता है ?

00. इस सरकार की जो रीति और नीति है उससे मुझे पूरी आशंका है कि
भाजपा प्रशासनिक और पुलिस द्वारा दबाव डालकर राहत शिविरों में रहने वाले लोगों को मतदान के समय प्रभावित कर सकती है। हालांकि कांग्रेस इसे रोकने का पूरा प्रयास करेगी। ये अलग बात है कि राहत शिविरों में रह रहे लोग भी इस सरकार की नीयत को पहचान चुके हैं।

0. जाति की राजनीति का छत्तीसगढ़ में क्या भविष्य है?
00. छत्तीसगढ़ इससे ऊपर उठ गया है। यहां जनता और राजनीतिज्ञों में इसके प्रति बड़ा स्पष्ट नजरिया है। मुझे नहीं लगता कि यहां ऐसी राजनीति सफल हो सकती है।

0. कांग्रेसी नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और गुटबाजी का भाजपा को क्या लाभ मिल सकता है? कुछ कांगेस नेता अपने को अगला मुख्यमंत्री बताने की कोशिश करने लगे हैं?
00. देखिए बड़ी और राष्ट्रीय पार्टियों में मुख्यमंत्री का फैसला हाईकमान करता है, किसी के यहां अपने आप को मुख्यमंत्री कहने से कुछ नहीं होता। जहां तक मेरी बात है, मैंने सोनिया जी को स्पष्ट कह दिया है कि आप हमें काम करने दीजिए, हम कांग्रेस की सरकार छत्तीसगढ़ में बनाकर देंगे फिर आप जिसे योग्य मानिएगा उसे मुख्यमंत्री बनाइएगा। हमारा इसमें कोई टकराव नहीं होगा। लेकिन पिछली बार की गल्तियों का दोहराव इस बार मत होने दीजिए। पार्टी किसी नेता की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से ऊपर होती है। इस बार कांग्रेस पिछली बार की अपेक्षा और मजबूत हुई है। गुटबाजी लगभग समाप्त हो चुकी है। हम सब मिलकर इस बार चुनाव लड़ने जा रहे हैं।

0. क्या भाजपा गुजरात चुनाव की सीख यहां दोहरा सकती है?
00. दोहरा सकती नहीं, दोहराना शुरू कर दिया है, वेदांती का मामला इसी से जुड़ा हुआ है। चूंकि भाजपा धर्म की राजनीति ही करती रही है, इसलिए वह इससे पीछे नहीं हटने वाली। छत्तीसगढ़ की जनता बहुत समझदार है। यहां के लोगों में आपसी भाईचारा है, मिलनसार हैं। यहां कि संस्कृति भी इसकी इजाजत नहीं देती है। इसलिए भाजपा का यह तुरुप यहां नहीं चलने वाला है। हालांकि वह इसका प्रयोग करने की पूरी कोशिश कर रही है।

0. राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ी संस्कृति में क्या बदलाव हुए हैं, यह मजबूत हुई है या कमजोर?
00. राज्य बनने के बाद तो नहीं लेकिन जब से भाजपा सत्ता में आई है तब से इसे नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। यह मड़ई-मेलों का प्रदेश है। यहां कि एक लोक संस्कृति है। बस्तर के रहन सहन और संस्कृति को जानने और सीखने के लिए पूरा विश्व लगा हुआ है। विदेशी विश्वविद्यालयों के छात्र इस कल्चर का अध्ययन करने के लिए यहां आते हैं। लेकिन भाजपा सरकार इसे तहस नहस करने में लगी है। धर्म की राजनीति करने वाली भाजपा सरकार वेद-पुराणों से परे काम कर रही है। जिस धर्म संस्कृति में कुंभ 12 साल और अर्धकुंभ 6 साल में होते हैं और जिसे सदियों से यह देश मानता रहा है उसे ये लोग हर साल मना रहे हैं। जो लोग भारतीय संस्कृति से खेल सकते हैं, वे छत्तीसगढ़ी संस्कृति से तो खेलेंगे ही। इनका हर एक धार्मिक आयोजन वोट बैंक के लिए होता है। धर्म- संस्कृति से इनका कोई लेना-देना नही है।

0. कल दिग्विजय सिंह ने बयान दिया है कि उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डा. महंत से कहा है कि वे महेंद्र कर्मा को सलवा जूड़ूम से अलग होने के लिए मनाएं?
00. मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है, मैं इस बारे में अभी कुछ नहीं कह सकता।

0. प्रदेश में इतने एमओयू हुए, इससे आपको नहीं लगता कि प्रदेश में विकास का काम हो रहा है?
00
. अरे भाई एमओयू करना अलग बात है, विकास होना अलग बात। आप कहते हैं कि हमने करोड़ों का एमओयू किया। एमओयू एक कमरे के भीतर होता है। आप किसके साथ, कहां एमओयू करते हैं इसे आप छुपा सकते हैं और जनता को कुछ भी बता सकते हैं, लेकिन एमओयू का क्रियांवयन नहीं छुपा सकते वह तो फील्ड में होना है। आप कहते तो हैं कि करोड़ों का एमओयू हुआ पर उसका क्रियांवयन कहां हुआ। मैं बस्तर के बारे में बता सकता हूं कि अभी तक वहां एस्सार और टाटा ने कोई भी काम शुरू नहीं किया है। जब तक क्रियांवयन नहीं होगा तब तक विकास कैसे हो सकता है। एमओयू भर कर लेने से विकास हो गया। कोई अगर ऐसा सोचता है तो हमें कोई दिक्कत नहीं है। जनता सब देख रही है, सब जान रही है।

0. आपको क्या लगता है भाजपा के तीन रुपए किलो चावल का उसे कोई प्रतिफल मिलेगा? सरकार की माने तो जनता बहुत खुश है?
00. देखिए यह बात सत्ता में बैठे लोगों को कभी भी समझ में नहीं आती है। उसे जनता खुश ही दीखती है। इससे पहले प्रदेश में हमारी सरकार थी। किसी क्या मालूम था कि सरगुजा से लेकर बस्तर तक जनता अपना फैसला ले चुकी है? इससे पहले केंद्र में एनडीए की सरकार थी उसे भी इंडिया शाइन, भारत उदय दिखने लगा था, लेकिन क्या किसी को मालूम था कि देश की जनता कश्मीर से कन्याकुमारी तक अपना फैसला ले चुकी है ? जनता मतदान के समय अपना फैसला सुनाती है। वह सरकार के कार्यकाल के दौरान सारी गतिविधियों को देखते रहती है और अपना फैसला सुरक्षित रखते जाती है। जनता ने भाजपा की कथनी और करनी में फर्क देखा है। उसने देखा है कि किस संकल्प और वादों के साथ भाजपा सत्ता में आई और कैसे उसे अलग रख दिया गया। कर्जमाफी, बेरोजगारों को भत्ता देने का वादा अभी जनता भूली नहीं है। मैं आजतक किसी कर्जमाफी वाले किसान-ग्रामीण से नहीं मिल पाया। अपने हर सम्मेलन में ऐसे लोगों को ढूढंता हूं जिसे कर्जमाफी मिली हो। अगर भाजपा को ऐसा लगता है तो यह हमारे लिए अच्छा ही है।

" नेता-अफसर भी अंधविश्वास का साथ देते हैं "



( रायपुर,  9 फरवरी 2008, रात 10.30 बजे  ) 
अंधविश्वास दूर करने और लोगों को चमत्कारों की असलियत बताने में बरसों से लगे डा. दिनेश मिश्रा को लगता है कि टोनही प्रताड़ना के खिलाफ बने कानून को और अधिक सख्त बनाने की जरूरत है। दोषियों पर जुर्माने की रकम बढ़ाई जानी चाहिए और वह रकम पीड़ित महिला को दी जानी चाहिए। वे मानते हैं कि गांव गांव में जागरूकता फैलाने के इस सफर में उन्हें अभी मीलों चलना है लेकिन इस बात का संतोष है कि लोग उनसे जुड़ते जा रहे हैं और पहले से कहीं अधिक सूचनाएं उन तक पहुंच रही हैं। उन्हें इस बात का दुख है कि पढ़े लिखे लोगों में से भी बहुत से लोग अंधविश्वासी हैं। बहुत से नेता-अफसर भी सार्वजनिक तौर पर अंधविश्वास के साथ खड़े नजर आते हैं। कुछ वोट बैंक के कारण इनके खिलाफ बोलने से बचते हैं। अंधविश्वास से लड़ने के लिए शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार को डा. मिश्र महत्वपूर्ण मानते हैं। मुख्यमंत्री को वे हर जिले में एक एक मेडिकल कॉलेज खोलने का सुझाव भी दे चुके हैं। नेशनल लुक के लिए बबलू तिवारी ने उनसे अंधविश्वास और विज्ञान को लेकर ढेर सारे सवालों के साथ लंबी चर्चा की।

कैसे शुरू हुआ यह सफर...
बात शायद 1992 के आसपास की है। शहर के एक युवा डाक्टर ने अपनी नेत्र चिकित्सा की नई-नई क्लीनिक खोली थी। व्यवसाय के रूप में उसने डाक्टरी तो शुरू कर दी लेकिन उसके अंदर का मन उसे समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति हरदम कुरेदते रहता था। मीडिया के माध्यम से इन कुरीतियों और अंधविश्वास की आड़ में स्वार्थी और अशिक्षित जनता द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार हनन को लेकर उसका मन हमेशा कचोटते रहता था। इस बीच गांवों से आने वाले मरीज भी अपने-अपने इलाकों में धर्म, ज्योतिष, जादू-टोना की आड़ में होने वाले अत्याचारों से उसे परिचित कराते रहते थे। युवा डाक्टर में इसके लिए कुछ करने का दीया तो जल रहा था, लेकिन वह उसी के अंदर ही था। धीरे-धीरे करीब तीन साल बीत गए, लेकिन उसने अपने दीए को बुझने नहीं दिया। फिर 1995 के आसपास का वह समय आया जब उसने छत्तीसगढ़ में जादू-टोना और झाड़ फूंक के प्रति लोगों मे फैले अंधविश्वास को अपने दोस्तों-परिचितों के साथ एक संगठन के माध्यम से दूर करना शुरू किया। पिछले बारह साल से यह अभियान लगातार चल रहा है। इस बीच कई बैगाओं-ज्योतिषियों की पोल खुलने के बाद उसे 1 सप्ताह के भीतर अकाल मौत होने का डर भी दिखाया, लेकिन सालों-सालों बीत जाने के बाद भी आज तक वह दिन नहीं आया। अब जिस बैगा-तांत्रिक के सामने भूत-प्रेत थर-थर कांपते थे, वे अब इस युवा डाक्टर का नाम सुनकर कांपते हैं, और आने की खबर मिलने पर अपना बोरिया-बिस्तर लेकर गायब हो जाते हैं। शुरू में डाक्टर के दोस्तों, रिश्तेदारों ने इसे एक डाक्टर का पागलपन करार दिया। कइयों जगह से पत्र आए, जिसमें उन्हें अपनी डाक्टरी पर ध्यान देने का सुझाव दिया गया। लेकिन इससे वह विचलित नहीं हुआ और अपने साथियों के साथ इस अभियान में जुटे रहा। इसका खामियाजा भी डाक्टर अपने क्लीनिक की आमदनी में कमी और परिवार के दिए जाने वाले समय में कटौती के रूप में देना पड़ा। लेकिन उसने अपने मन के दीए को आजतक बुझने नहीं दिया। अब यही दीया पूरे समाज को रोशन कर रहा है। इस दीए के जीवन के लिए उनके संगठन ने कभी भी सरकारी तेल-बाती का सहारा भी नहीं लिया। अब इस युवा डाक्टर- डा. दिनेश मिश्र को छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि पूरे देश में एक निस्वार्थ समाजसेवी और वैज्ञानिक जागरूकता फैलाने वाले डाक्टर के रूप में देखता है।

0. आपके हिसाब से वैज्ञानिक जागरूकता को लेकर छत्तीसगढ़ की क्या स्थिति रही है?
00. वैज्ञानिक जागरूकता के प्रति यहां की स्थिति बहुत खराब है। यहां के लोग बहुत जल्दी किसी भी अफवाह पर विश्वास कर लेते हैं। समय-समय पर यह देखने को मिलते रहा है, जैसे गांवों में चुड़ैल की अफवाह की वजह से सैकड़ों गावों में घर के बाहर ओम नम: शिवाय लिखे हुए मिलता था। अभी एक बच्चे की मां वाली अफवाह में भी यही हुआ। मूर्ति के दूध पीने की घटना होती है तो पूरे प्रदेश में इसका असर देखने को मिलता है। यहां के लोग सीधे-साधे हैं, जागरूकता की कमी के कारण वे अफवाहों पर तुरंत भरोसा कर लेते हैं।

0. यहां ऐसी कौन-कौन सी धारणाएं चलन में हैं, जिन्हें विज्ञान नहीं मानता?
00. यहां सबसे ज्यादा मान्यता टोनही की है। हम लोगों को करीब 150 महिलाओं के नाम मालूम हैं, जिन्हें जादू-टोना करने के आरोप में टोनही करार देकर मौत के घाट उतार दिया गया। हम लोगों की इनमें से बहुत सारी महिलाओं के परिजनों, गांववालों तथा इन्हें मारने वालों से बात हुई है, जिसमें उन्होंने माना है कि महिालओं को अंधविश्वास के कारण मारा गया है। अभी मैं तर्रा गांव गया था। जहां गांव वालों ने फुलवंतिन बाई नाम की एक महिला को टोनही के नाम पर मार डाला था। हमारी गांववालों, जिस बच्चे की वजह से फुलवंतिन को टोनही करार दिया उससे (अब वह बड़ा हो गया है), उसके मां-बाप तथा सरंपच आदि से बात की। आज की स्थिति जिस परिवार की वजह महिला को टोनही करार देकर गांववालों ने मार डाला था, वह ठीक-ठाक और सुखी है, लेकिन फुलवंतिन का तो पूरा परिवार उजड़ गया। गांववाले अब मानते हैं कि उन्होंने अंधविश्वास की वजह से महिला को मार डाला था। कई सारी बीमारियों को लेकर भी यहां अंधविश्वास है, लोग मानते हैं कि इसके पीछे जादू-टोने का हाथ हाथ है। किसी ने नजर लगा दिया है। कई मामलों में जिसका हमें पता चल जाता है, हम मरीज को शहर लेकर आते हैं और इलाज कराते हैं।

0. इस मामले में आप शिक्षा की क्या भूमिका पाते हैं?
00. शिक्षा तो बहुत आवश्यक है, इसी से लोगों में वैज्ञानिक जागरूकता बढ़ेगी। अभी भी हम जब बहुत सारी जगहों पर जाते हैं तो लोग बताते हैं कि उनके यहां प्रायमरी और 8 वीं के बाद शिक्षा के लिए स्कूल नहीं हैं। बच्चों को साइकिल से 10-15 किमी दूर पढ़ने के लिए जाना पड़ता है। कुछ लोग लड़कों को तो भेज देते हैं, लेकिन लड़कियों को भेजने से परहेज करते हैं। ग्रामीण इलाकों में 10-20 किमी तक स्कूल नहीं, ऊपर से हमारे प्रदेश का कई हिस्सा नक्सलवाद से प्रभावित है, जिसके वजह से वहां के लोग अपने बच्चों की पढ़ाईको लेकर ज्यादा उत्सुकता नहीं दिखाते हैं। ज्यादातर लोग 5-8 वीं के बाद अपने बच्चों की शिक्षा रोक देते हैं और उन्हें रोजगार आदि में लगा देते हैं।

0. ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं को इन बुराइयों से निपटने में आप कितना सक्षम पाते हैं?
00. शिक्षा जैसी स्थिति ग्रामीण इलाकों की स्वास्थ्य सुविधाओं का भी है। दूर-दूर तक अस्पताल नहीं हैं, अगर हैं भी तो वहां डाक्टर-दवाईयां नहीं हैं। अस्पताल में इलाज का इंतजाम नहीं होता। शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा धीरे-धीरे सुधर रही हैं, लेकिन अभी इसे दुरूस्त होने में बहुत लंबा समय लगेगा। मैंने कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री से कहा भी था कि हर जिले में एक-एक मेडिकल कालेज खोला जाए। इससे शिक्षा और चिकित्सा की ढेर सारी समस्या खतम हो जाएगी। लोग शहरों में नौकरी करना चाहते हैं तो उन्हें इन कालेजों में ही नौकरी करने दो। इससे उन लोगों को भी फायदा होगा जो मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेश या दूसरे प्रांत जाते हैं। यहां जब पढ़ाई की अच्छी सुविधा हो जाएगी तो छात्र बाहर क्यों जाएंगे?

0. कुछ पढ़े-लिखे लोग भी अंध विश्वास करते हैं, इसका अनपढ़ लोगों पर कैसा असर पड़ता है ? कुछ घटनाएं बताएं जो आप को याद हों।
00. बहुत सारे पढ़े-लिखे लोग अंधविश्वास पर भरोसा करते हैं। ये वे लोग होते हैं, जो चमत्कारिक रूप से सफल होने या बहुत जल्द सफल होने का ख्याल रखते हैं। वे चाहते हैं कि कोई ताबीज मिल जाए या अंगूठी मिल जाए जो उन्हें जल्द से सफल बना दे। एक पूर्व केंद्रीयमंत्री हैं जिन्होंने सार्वजनिक मंच से माना था कि वे अंधविश्वास को मानते हैं। प्रदेश के एक दिग्गज नेता के बारे में भी कहा जाता रहा है कि उनकी जो सड़क दुर्घटना हुई थी वह जादू-टोने के कारण हुई थी। राजनेता भी अंधविश्वास को बाते और प्रश्रय देते हैं। लोगों को लगता है कि इतना बड़ा पढ़ा-लिखा आदमी जिसके पास सारी सुविधाएं हैं जब वह इसे मान रहा है तो हम क्यों नहीं। हमारे पास तो न कोई सुख-सुविधा का साधन हैं और न ही पढ़ाई और चिकित्सा का। लेकिन इन लोगों को यह भी देखना चाहिए कि जब ये बीमार होते हैं तो अपना इलाज बैगा-ज्योतिष से कराने के बदले एस्कार्ट, अपोलो आदि में क्यों कराते हैं। बड़े-बड़े अफसर भी अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं, छग के एक पुलिस अफसर को तो हम सभी लोग जानते हैं जिसने एक बाबा की शरण ले ली थी और उनका भक्त हो गया। यूपी के आईजी श्री पांडा का उदाहरण हैं यो लोग सब कुछ जानते हुए भी अंधविश्वास को आत्मसात करते हैं। जिसका दूसरों पर असर पड़ता।

0.यूपी के आईजी से मिलते जुलते मामलों को मानसिक बीमारी के नजरिए से भी क्या देखा जा सकता है, किन राजनेताओं को आप अंधविश्वास के खिलाफ खड़ा हुआ पाते हैं?
00. यूपी के आईजी वाले मामले में तो डाक्टरों ने कहा ही था कि उन्हें बाईकूलर सिंड्रोम नामक मानसिक बीमारी हो गई है। इसमें आदमी कुछ समय के लिए अपने को कुछ दूसरा ही समझने लगता है। गावों में भूत-प्रेत लोगों के आने वाले मामले में भी यही रहता है। लेकिन भूत-प्रेत में लोगों को मार पड़ती है पर जब वहीं कोई इसे भगवान का नाम दे देता है तो उसके पास लोगों का तांता लग जाता है। उसकी पूजा होने लगती है। इसे हम अभी आई भूल-भूलैया और लगे रहो मुन्नाबाई जैसी फिल्मों से अच्छी तरह समझ सकते हैं। जिसमें इस बीमारी के बारे में अच्छे से समझाया गया है।

0. टोनही की धारणा के बारे में कुछ बताएं ?
00. इसके मूल में तो अशिक्षा है। पहले जब लोगों को बीमारियों के बारे में जानकारी नही होती थी और कोई बीमार हो जाता था तो इसके पीछे वे जादू-टोने को कारण मानते थे। इसमें सबसे सरल शिकार वे महिलाएं होती हैं, जो विधवा हो, जिनके बच्चें या पति मर गए हों, शारीरिक रूप से कमजोर रहती हैं, जिनकी हरकतें संदिग्ध होती हैं और सबसे बड़ी बात जो गरीब होती थीं। इन्हें लोग टोनही का नाम दे देते थे और किसी के बीमार होने पर उन्हें ही दोषी माना जाता है। जिसके लिए उनकी सार्वजनिक रूप से पिटाई के साथ मार दिया भी दिया जाता था। यह कुप्रथा सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं है बल्कि उड़ीसा, असम, बिहार, राजस्थान, हरियाणा आदि जगहों पर भी यह व्याप्त हैं। वहां इसे डायन के रूप में जाना जाता है। कई जगह तो ऐसी घटना में उन्हें गड़ासे से काट दिया जाता है। कभी-कभी यह भी देखा गया है कि अगर ऐसी महिला ने किसी को खाने को दे दिया, या किसी को छू लिया भले वह महिला किसी संक्रमण का शिकार हो जिसकेो वजह से उसके संपर्क में आने वाला बीमार हो गया हो । उसके बाद अगर वह बीमार पड़ गया तो लोग उस महिला को ही टोनही करार दे देते हैं। इसमें यह भी है कि अभी तक की एक घटना में भी किसी संपन्न घर की महिला पर यह आरोप नहीं लगया गया है और न ही किसी पुरूष को। क्योंकि संपन्न घर की महिला के परिवार वाले इसका प्रतिरोध करते हैं और पुरूष विरोध करता ही है। हम जहां भी जाते हैं लोगों को यही बताते हैं कि अगर महिला में ऐसी कोई शक्ति होती तो वह गरीब क्यों रहती? वह अपने को बचा क्यों नहीं पाई? वह लोगों से मुकाबला कर सकती थी। शारीरिक रूप से ठीक हो सकती थी। लोगों के पास इसका जवाब नहीं होता। ऐसी महिलाएं ही प्रताड़ित की जाती हैं, जिनकी मदद करने वाला कोई नहीं होता। हमें आज तक एक भी संपन्न महिला ऐसी नहीं मिली जिस पर टोनही होने का आरोप लगा हो।

0. टोनही कानून बनाने में आपके संगठन की क्या भूमिका रही ?
00. हमने इसके लिए अपने स्तर पर पूरा प्रयास किया। मानवाधिकार आयोग से मिले, राज्य मानवाधिकार आयोग में भी इसके लिए मांग की। मुख्यमंत्री से मिले, विधायकों को पत्र लिखा कि इस मामले को उठाया जाए। धीरे-धीरे यह कानून तो बन गया। लेकिन अभी भी गावों में इस कानून के प्रति जागरूकता नहीं हुई है। हम लोग हरेली आदि अवसरों पर गावों में जाकर इसका प्रचार-प्रसार करते रहते हैं। हम गांववालों को बताते हैं कि जिस चीज से आप डर रहे हो वह सारा सामान तो आपके आसपास मौजूद है। गांव गंदगी फैली हुई है, लोगों में शारीरिक साफ-सफाई का अभाव है। जिसकी वजह से मलेरिया, दस्त आदि बीमारी हो रही है। कोी महिला आपको थोड़ी ना बीमार कर रही है। कोई बैगा आप को बोल देगा कि इसके लिए कोई महिला जिम्मेदार तो आप उसके खिलाफ खड़े हो जाते हो। बैगा को बीमारी के इलाज के लिए बुलाना ही नहीं चाहिए। कई बार देखा गया है कि घर में बैगा झाड़-फूंक के दौरान कह देता है कि बाहर जो महिला घूम रही है उसी ने टोना किया है। होता यह है कि गांवों में घर में शौचालय का इंतजाम होता नहीं है, महिलाओं को बाहर जान पड़ता है। उसी समय बैगा की बात मानकर लोग महिला ढूंढ़ना शुरू कर देते हैं। नित्यक्रिया के लिए बाहर गई महिला अगर उन्हें मिल जाती है तो वे उसी को टोनही मान लेते हैं। हमने कई मामलों के पीछे ऐसा कारण पाया है। हम लोग हरेली समय गावों, श्मशान घाट, तालाबों पर जाकर वहां झाड़-फूंक कर रहे लोगों को यही समझाते हैं।

0. टोनही के अंधविश्वास की वजह से क्या नुकसान समाज-देश को होता है ?
00. देखिए आप जब किसी को टोनही के नाम पर मार डालते हो या उसे सार्वजनिक रूप से मारते-पीटते हो तो यह उसके मानवाधिकार का हनन होता है। कई बार ऐसी महिलाओं का गांव से बहिष्कार हो जाता है। लोग उनसे कोई संबंध नहीं रखते हैं, बात नहीं करते हैं। यह चीज बिल्कुल गलत है। इससे देश को समाज को नकसान निसंदेह रूप से होता है।

0. इन प्रकरणों में कुछ स्वार्थी लोगों द्वारा अपने फायदा के लिए किसी महिला टोनही घोषित करने की घटनाएं भी क्या देखने को मिलती हैं? आप लोगों ऐसी महिलाओं के पुनर्वास के लिए भी कुछ करते हैं?
00. कहीं-कहीं किसी स्वार्थी व्यक्ति का हाथ होने का मामला पाया जाता है, लेकिन इसकी संख्या न के ही बराबर होती हैं। क्योंकि ज्यादातर मामलों में समूह द्वारा महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है। पुनर्वास के लिए हम सरकार से ऐसी महिलाओं की पहचान करके उन्हें राहत दिलाने का काम करते रहते हैं। ऐसी महिलाओं को रहने के लिए राज्य सरकार से आवास भी उपलब्ध कराने के लिए हम लगातार मांग करते रहते हैं। हम लोग सरकार से यह भी मांग कर रहे हैं कि ऐसी घटनाओं की शिकार महिलाओं के पुनर्वास के लिए एक नीति बनाई जाए। हम लोग चूंकि आज तक सरकार से पैसा लेकर कोई काम नहीं किया है। हमारा संगठन आपस में जुटाए गए धन से ही प्रचार प्रसार का काम करता है। हमने एकाध बार ऐसा कोई प्रोजेक्ट बनाने की कोशिश भी करनी चाही तो पता चला कि प्रोजेक्ट को पास कराने के लिए इतना प्रसेंट कमीशन देना होगा। फिर हमने इससे अपना हाथ खींच लिय॥ क्योंकि हम अपने उद्देश्य से भटकना नहीं चाहते थे।

0. टोनही और अंधविश्वास की कुछ बड़ी और वीभत्स घटनाएं ?
00. एक घटना लचकेरा की थी, जिसमें तीन महिलाओं को गांववालों ने पहले करेंट लगाया। फिर उन्हें नंगा करके जुलूस निकाला था। राजनांदगांव के तारनटोला में फुलवती को रात में घर से निकालकर पीटा गया। इस बीच वह किसी तरह भागने में सफल हो गई तो उसे दोबारा पकड़कर लाया गया और पीटा गया। फिर उसे तालाब में फेंक दिया। महिला तैरकर बाहर आ गई। फिर उसे बांधकर मारा गया। जिसमें वह मर गई। गांववाले उसकी लाश को नाले के पास लाकर जला दिया। इस प्रकरण में पूरा गांव जेल चले गया था। कवर्धा में फूलवंतिन वाले मामले में रात में गांववाले उसके घर पहुंचे और भौजी-भौजी की आवाज लगाई। उसका पति 3-4 साल पहले मर गया था, दो बच्चे थे उसके। जब उसने दरवाजा खोल दिया तो उन्होंने एक बच्चे का नाम लेकर कहा कि उसे तुमने बीमार किया, उसे ठीक करो। जब उसने इससे अज्ञानता जताई तो उसे पीटना शुरू कर दिया गया। वह भाग न सके इसके लिए उसके कपड़े उतारकर जला दिया गया। पिटाई से जब वह बेहोश हो गई तो उसे रस्सी में बांधकर दो किमी तक साइकिल के पीछे खींचा गया। जिसके बाद उसकी मौत हो गई। फिर उसे एक कुएं में पत्थर बांधकर डाल दिया गया। जिसमें पत्थर के अलग हो जाने के बाद उसकी लाश ऊपर आ गई। इस बीच रातभर उसके दोनों बच्चे गांव में अकेले घूमते रहे। अभी हम लोग बीच में वहां गए थे तो पता चला कि बच्चे अपने मामा के गांव चले गए हैं।

0. नए कानून को कितना कारगर पाते हैं, इसमें आपके हिसाब से क्या चीजें और होनी चाहिए?
00. हम लोग मांग करते रहे हैं कि इसमें जो जुर्माने की राशि है उसे और बढ़ाया जाए। वह इतना हो कि उससे उस महिला का पुनर्वास हो सके। इस राशि को सरकारी खाते में जमा करने की बजाए पीड़ित को दिया जाना चाहिए। ऐसी घटनाएं होने पर वहां के सरपंच आदि जनता के नुमाइंदों को जिम्मेदार माना चाहिए और उन्हें भी सजा होनी चाहिए। घटना के बाद पुलिस को कड़ाई से दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। कई बार पुलिस के ढीले-ढाले रवैए से भी एएसी घटनाओं को बढ़ावा मिलता। पुलिस को ऐसी सूचना मिलने पर पीड़िता की तुरंत मदद के लिए सामने आना चाहिए। जबकि होता यह है कि प्रशासन जब तक किसी की मौत न हो जाए और जब तक बड़ी प्रताड़ना नही होती, वह सक्रिय नहीं होता। ऐसा करके ऐसी घटनाओं की संख्या में कमी लाई जा सकती है।

0. इस अंधविश्वास के खिलाफ आप लोग किस तरह से प्रचार-प्रसार करते हैं?
00. हम लोग ऐसी घटनाओं के बाद गांव में जाकर वैज्ञानिक जागरूकता बढ़ाने का काम तो करते ही हैं, साथ ही गांव-गांव जाकर लोगों की बैठक लेते हैं। हम लोगों से पूछते हैं कि वहां कौन-कौन सा अंधविश्वास फैला है। हम लोगों को बताते हैं कि जब आपकी साइकिल, टीवी, ट्रैक्टर खराब होती है तो आप क्या करते हैं, आप उसे मिस्त्री के पास ले जाकर बनवाते हैं। लेकिन जब आप खुद बीमार होते हैं तो बैगा से झाड़-फूंक कराने लगते हैं। हम लोग स्कूलों, एनएसएस के कैंपों में जाकर वैज्ञानिक जागरूकता बढ़ाते हैं। कई बार जब हमें पता चलता है कि कोई बैगा लोगों को वेवकूफ बना रहा तो हम वहां जाकर उसका फंडाफोड़ करते हैं। उनसे पूछते हैं कि बताओ तुम्हारे साथ अगले 20 मिनट में क्या होने वाला है। वह बोलता है कि कुछ नही, उसे हम बताते हैं कि आप जेल जाने वाले हैं। बैगाओं द्वारा किए जाने वाले कई जादू हम उसे करके दिखाते हैं। कई बैगा जब हमें हड्डी निकालने या अन्य चीजें निकालने का दावा करते हैं, तो हम उन्हें कहते हैं कि हमारे साथ नक्सली इलाकों में चलो और यब बताओ कि कहां-कहां लैंड माइंस लगे हुए हैं। फिर क्या बैगा भाग खड़े होते हैं। गांवों में इकट्ठा लोगों को बताते हैं कि जब बाबा को अपने भविष्य के बारे में नहीं पता है तो यह आपके दुख कैसे दूर कर सकता है। पीलिया के फर्जी उपचार करने वालों का भी फंडाफोड़ करते हैं। समाचार पत्रों में लेख आधि के माध्यम से लोगों के बीच सही बात पहुंचाने की कोशिश करते रहते हैं। गांव में लोगों को इससे संबंधित पर्चे पुस्तकें भी बांटते हैं। जहां-जहां जाते हैं वहां मीटिंग के बाद निशुल्क नेत्र चेकअप का शिविर भी लगाते हैं, कई बार होता है कि मीटिंग 1 घंटे ही चलती है, लेकिन शिविर 4-5 घंटे तक लगाना पड़ता है। क्योंकि लोग बड़ी संख्या मेें आए हुए रहते हैं। हम लोगों को अपने से जोड़ने के लिए सभी को अपना नंबर-पता देकर किसी भी केस में सूचना देने का अनुरोध करते हैं। अब 12 साल बाद हमारे पास सूचनाएं आने लगी हैं।

0.कुछ और रोचक घटनाएं ?
00. राजानांदगांव की एक घटना हैं वहां पुराने चीरघर में कहा जाता कि यहां भूत रहते हैं। लोगों में काफी भय व्याप्त हो गया था। हम लोग वहां गए और रात में चीरघर में घुसे। वहां शराब, सिगरेट, नमकीन के पैकेट पड़े हुए थे। हमने लोगों से पूछा कि क्या यहां का भूत सराब, सिगरेट पीता है, फिर लोगों के समझ में आया कि उन्हें कोई वेवकूफ बना रहा था। बाद में उस चीरघर को तुड़वा दिया गया। बस्तर में पिछले साल हल्ला हो गया कि रात में एक प्रकाश पूंज घूमता है और जो उसे देख लेता है बेहोश हो जाता है। हम लोगों ने वहां कई रात इसकी खोज की तो पता चला कि एक आदमी कुत्ते के शरीर में टार्च बांधकर छोड़ देता है। बाद में लोगों ने उस कुत्ते को मार दिया।

0. इसके पीछे क्या कोई वैज्ञानिक आधार पाते हैं?
00. यह सभी अंधविश्वास की वजह से लोग करते हैं। जहां तक लोगों में भूत-भगवान के आने की बात है तो वह मानसिक बीमारी हो सकती है। ज्योतिष को बी मैं गलत मानता हूं। आपको याद होगा कि जब अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बने थे तो किसी राजनेता ने उन्हें शपथग्रहण के लिए मुहूर्त निकालने का सुझाव दिया था। तब उन्होंने कहा था कि सूरज चमक रहा है। पृथ्वी घूम रही है, दिन-रात हो रहे हैं। तब तक मुझे किसी मुहुर्त की जरूरत नहीं है। मेरे लिए हर घड़ी, हर दिन शुभ है। जवाहरलाल नेहरू जी भी अंधविश्वासों के घोर विरोधी थे।

0. आपके अंदर इसके प्रति रूचि कैसे जागी ?
00. मुझे शुरू से यह सबी चीजें कचोटती थी। मन में सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति कुछ करने की इच्छा रहती थी। शुरू में अपने डाक्टर तथा और क्षेत्रों के दोस्तों से इसके लिए बात की। सभी ने साथ देने के तैयार हो गए और काम शुरू हो गया। शुरू में हम रायपुर के आसपास ही काम कर पाते थे। धीरे-धीरे संपर्क बढ़े तो हम पूरे छत्तीसगढ़ में जाने लगे हैं। हमारी संस्था में इस समय अलग-अलग फील्ड के करीब 50 लोग हैं। हमने कबी भी किसी तरह का सरकारी अनुदान नहीं लिया। इसके लिए शुरू में ही तय कर लिया गया ता। क्योंकि लोगों का कहना था कि लोग ऐसी संस्था कमाई के लिए बनाते हैं।

0. डाक्टरी के पेशे को कैसे समय देते हैं, कभी किसी को चैलेंज किया है?
00. समय तो उतना ही होता है, लेकिन मैं उसे किसी तरह मैनेज करता हूं। कुछ नुकसान तो जरूर होता है, लेकिन लोक हित में यह न के बराबर है। हम लोगों ने एमपी चुनाव के समय ज्योतिषियों को चैलेंज किया था कि बताएं कौन चुनाव जीतेगा। उसमें बहुत सारे ज्योतिषियों के पत्र आए, लेकिन कोई भी सही भविष्यवाणी नहीं कर सका।

"नक्सलवाद, मीडिया और जनसुरक्षा कानून "

नेशनल लुक समाचार समाचार पत्र में  आदरणीय संपादक निकष परमार जी के निर्देश पर "नक्सलवाद,  मीडिया और जनसुरक्षा कानून " विषय पर एक परिचर्चा शुरू की गई थी। जिसकी जिम्मेदारी निकष जी ने मुझे सौंपी थी। एक फरवरी 2008 से शुरू हुई श्रृंखला में से यहां प्रस्तुत है चुनिंदा लोगों के विचार ।



हमारे सवाल

>>
जन सुरक्षा अधिनियम के मुख्य बिंदु क्या हैं, खासतौर पर मीडिया के संदर्भ में? आम आदमी की जुबान में अगर हम समझना चाहें तो अखबार क्या छापे तो ठीक है, क्या छापे तो गुनाह?
>> नक्सली प्रवक्ता का पत्र छापना इस अधिनियम के तहत गैर कानूनी क्यों नहीं है? छत्तीसगढ़ के अनेक अखबारों में ऐसे पत्र छपते रहे हैं।
>>समाचार पत्र का संपादक कैसे तय करता है कि भेजा गया पत्र नक्सली प्रवक्ता का ही है, किसी और का नहीं? क्या वह नक्सली प्रवक्ता के हस्ताक्षर पहचानता है?
>>समाचार पत्रों में नक्सलियों के पत्र जिस जरिए से आते हैं, उनके जरिए क्या नक्सलियों को ट्रेस नहीं किया जा सकता? जैसे क्लोज सर्किट टीवी लगाकर या ई मेल का स्रोत पता लगाकर?
>>पत्रकार नक्सलियों के बीच रहकर आते हैं, उनका समाचार लाते हैं। यह गतिविधि जन सुरक्षा अधिनियम के तहत क्यों अपराध नहीं है?
>> पत्रकारिता में नैतिकता की परिभाषा क्या है? सूत्रों के हवाले से कोई बात लिखना और सूत्र का नाम न बताना इस नैतिकता के हिसाब से कितना सही है? अगर नक्सलियों का कोई क्लू है तो उसे पुलिस को न बताना, क्या यह समाज विरोधी काम नहीं, क्या यह पुलिस से असहयोग नहीं? नक्सलियों के बयान छापना पत्रकारिता की नैतिकता के हिसाब से कितना सही है?
>>राजधानी रायपुर में नक्सली गतिविधियों के तार एक मीडियाकर्मी से जुड़े पाए गए हैं। इसे किस तरह देखते हैं?
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(कुशाभाऊ ठाकरे जनसंचार एवं
पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति
डा. सच्चिदानंद जोशी के विचार)


"आजादी का समाज पर असर भी देखना चाहिए"

अभी मेरे पास इस कानून की प्रति तो नहींहै, इसलिए उसके ऊपर सीधा-सीधा बोलना ठीक नहीं होगा। समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के लिए हम लोग पूरे देश अपने मूल अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करते हैं। यह समाचार पत्र का विवेक रहता है कि वह क्या समाज और देश के लिए उचित समझता है जिसे वह छापना चाहता है। लेकिन यह बात दूसरे तरीके से भी लागू होती है कि हम जब भी कोई चीज छापें तो इस विवेक का जरूर इस्तेमाल करें कि समाज पर इसका कैसा असर पड़ने वाला है, या समाज के मनोबल पर कहीं इसका विपरीत असर न पड़े।
जो अखबार इस तरह के पत्र छापते हैं यह उनके विवेक पर निर्भर करता है। जहां तक मैं समझता हूं कि जब हम नक्सलवाद को छत्तीसगढ़ राज्य के संदर्भ में एक सामाजिक अभिशाप के रूप में देख रहे हैं, तो कहीं न कहीं इस चीज को भी कानून के दायरे में लाना चाहिए। आपका सवाल है कि संपादक नक्सली बयानों की विश्वसनीयता किस तरह तय करता है? इसलिए वह संपादक होता है कि किसी भी समाचार के स्रोत की विश्वसनीयता तय कर पाता है। यह बात सिर्फ नक्सली प्रवक्ता के लिए ही लागू नहीं होती, जब कोई दूसरा समाचार भी किसी सोर्स से आता है, तब भी संपादक ही अपने विवेक से यह तय करता है कि सोर्स विशवसनीय है कि नहीं, अगर वह सोर्स अथेंटिक है तो ही उस समाचार को छापें। वैसे तो समाचार पत्र के संपादक के पास दिन में हजारों चीजें-खबरें आती होंगी। इसी तरह की संवेदनशीलता नक्सली प्रवक्ताओं के पत्र को संदर्भ में संपादक, रखते होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है।
इन खबरों के जरिए नक्सलियों को ट्रेस करने का सवाल है हममें से कई तथा साधारण लोगों के मन में उठता भी होगा कि ऐसा क्यों नहीं होता। मुझे लगता है कि इसके लिए पुलिस व प्रशासन के पास बेहतर रणनीति होगी। क्योंकि यह बात सोचना कि हम लोग बहुत चिंतित हैं और प्रशासन उतना चिंतित और संवेदनशील नहीं है यह गलत होगा। निश्चित रूप से वे इस बात पर सोचते होंगे कि जिन स्रोत से ये पत्र आते हैं उन्हें ट्रेस किया जा सकता है कि नहीं। यह एक तकनीकी बिंदु है, इसलिए इस पर ले-मैन के जरिए टिप्पणी नहीं की जा सकती। नक्सलियों के बीच जाकर उनके समाचार लाने का जहां तक सवाल है, यहां फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात आती है। वे उनके बीच रहकर आते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानो उनके लिए वहां आना-जाना बहुत सहज और सुगम है, दरअसल ऐसा नहीं है। जो भी पत्रकार वहां रहकर आते हैं, अगर उनसे बात करें तो आप यह भी जान पाएंगे कि वे कैसे जाते हैं और कैसे आते हैं। इसको दूसरे नजरिए से नहीं लेना चाहिए। कम से कम इसी बहाने ही वे वहां कुछ समाचार तो देते ही हैं। आपने नैतिकता का सवाल उठाया है। फिर वही बात आती है कि हमारी नैतिकता कौन नापेगा।हम अपनी दृष्टि से किसी चीज को नैतिक-अनैतिक मानते हैं, उसी दृष्टि से कोई अन्य विचार वाला भी उसे मान सकता है। जब हम अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करते हैं, तब खासकर इस बात को हमें देखना चाहिए कि क्या हमारी यह स्वतंत्रता समाज व उसके मनोबल पर कोई विपरीत प्रभाव तो नहीं डाल रही। जैसा कि हम देख रहे हैं कि नक्सलवादी गतिविधियों में निर्दोष व्यक्ति मारा जा रहा है, अनेकों लोग का जीवन अनिश्चय की स्थिति में झूल रहा है। जन सामान्य के मन में इस तरह की धारणा है कि इस नक्सलवादी गतिविधि से किसी का भी फायदा नही हो रहा है। जब हमारे देश में किसी भी समस्या को सुलझाने के लिए बहुत बेहतर रास्ते हैं तो कोई भी हिंसा का रास्ता क्यों अपनाए? यह प्रश्न जब तक हम सबके मन में नहीं उभरेगा, तब तक चाहे वे उनको कवर करने वाले पत्रकार ही क्यों न हो, तबतक इस बात का सार्थक समाधान नहीं होगा। हमारी नैतिकता के सबसे बड़े न्यायाधीश हम स्वयं है, इस चीज को हम सभी मीडिया में काम करने वालों को भी देखना चाहिए। राजधानी में नक्सलियों के शहरी सहयोगियों की जहां तक बात है, यह बहुत आश्चर्यजनक और चेतावनी देने वाला है। यह बात हमें पता चलती रहती थी कि नक्सलियों का शहरों में भी नेटवर्क है, कुछ लोग काम करते है, उनके समर्थक है, कुछ लोग उनसे सद्भावना रखते हैं। उसके बाद जब इस तरह के प्रकरण सामने आते हैं तो निसंदेह आश्चर्य होता है। हम सभी को अपनी नागरिक जिम्मेदारी समझते हुए और अधिक सचेत होकर काम करने की जरूरत है।
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(वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर के विचार)

"पत्रकारों को जिम्मेदारी समझनी होगी"

अखबार और पत्रकार को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। एक पत्रकार के रूप में मेरा यह कहना है कि जो सच है उसे छापना और जो असत्य है उसे नहीं छापना चाहिए। सच के सारे पहलुओं को भी हमें देखना चाहिए। अधूरा सच कभी नहीं छापना चाहिए। पत्रकार के रूप में हमने इसे अगर आजीविका का आधार बनाया है, तो समाज और देश के प्रति भी हमारी जिम्मेदारी बनती है। दूसरे धंधे-नौकरी वालों से हम इसीलिए अलग हैं। हमारी सबसे ज्यादा प्रतिबध्दता उस कमजोर आदमी के लिए होनी चाहिए, जिसके साथ न्याय नहीं होता। अगर इन बातों को ध्यान में रखकर हम कोई चीज छापते हैं, तो मुझे नहीं लगता कि हम किसी आपत्ति को न्योता देते हैं। नक्सली जो हैं वे आजकल नक्सली भी नहीं रहे। लेनिनवादी-माओवादी नक्सली थे, उनके जो मूल विचारक थे वे भी अब इनका साथ नहीं दे रहे। ये हिंसक रूप ले चुके हैं। उनका पक्ष अगर छापते भी हैं तो उसके ऊपर अपनी भी राय देनी चाहिए। समाज और देश के प्रति अपने दायित्वबोध को देखते हुए हमें उसके साथ अपनी टिप्पणी भी देनी चाहिए। नक्सलियाें के पत्र की पहचान का जहां तक सवाल है, वे लोग जिन माध्यमों का इस्तेमाल करके पत्र अखबारों के दफ्तरों तक भेजते हैं, उनमें बहुत कम संभावना रहती है कि यह उनका पत्र ना हो। अगर किसी ने गलत भेजा है तो वे तत्काल उसका खंडन भी करते हैं। इस मामले में वे बड़े सतर्क हैं। नक्सलियों को ट्रेस करने का काम पुलिस का है, पत्रकारों का नहीं। पत्रकार तथ्य और सच को सामने रखता है, विचारों को भी सामने रखते समय वह यह सावधानी अवश्य बरतता है, परंपरागत रूप से, कि वह व्यापक राष्ट्र व समाज हित के विरुध्द न जाय। मैं पंजाब में 6 साल रहा वहां हर रोज आतंकवादियों की ही खबरें छपतीं और पत्रकार-संपादक अपनी जान नहीं गंवाते, उनका विरोध करके। हमें यह समझना चाहिए कि जो मालिक हैं वह धंधा चलाने के लिए और पत्रकार नौकरी करने के लिए इस क्षेत्र में नहीं आया है। आज भी अगर समाज को जो थोड़ी सी उम्मीद बची है तो वह पत्रकारों से है। इसलिए उन्हें सतर्क तो रहना चाहिए। ये प्रशासन को पता करना चाहिए कि कहां से आया, किसने लाया। बहुत ज्यादा हो तो सरकार पत्र की फोटोकॉपी ले सकती है, हालांकि इसे देना भी आवश्यक नहीं है। अपने स्रोत को बताना आवश्यक नहीं है। नक्सली प्रचार चाहते हैं, और आजकल उनके पास बहुत साधन हैं। उनके पास करोड़ों का बजट होता है। जिसमें प्रचार के लिए भी लाखों रुपयों का प्रावधान रहता है। चूंकि हम पत्रकार हैं तो ऐसी अनुशंसा नहीं करेंगे कि ऐसा करने वाले पत्रकारों के विरुध्द जनसुरक्षा अधिनियम लगाया जाए, लेकिन पत्रकारों को स्वयं यह विचार करना चाहिए कि वे आखिर जवाबदेह किसके प्रति है, वे किसके साथ खड़े हो रहे हैं, किसकी क्या राजनीति है, कौन उनको किस रूप में इस्तेमाल कर रहा है।
इसके प्रति अगर वे सतर्क नहीं होंगे तो समाज में वे अपना सम्मान खो देंगे। जो समाज से तिरस्कृत हो जाएगा तो उसके लिखे का भी कोई प्रभाव नहीं होगा।
नक्सलियों को अधिक प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। जब ये प्रमाणित हो चुका है कि वे लोग हत्यारे-अपराधी अधिक हैं, आर्थिक अपराधों में लिप्त हैं, देश विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं इसके संकेत मिलने लगे हैं। कुछ दिन पहले गणपति ने, जो इनका महासचिव है, कहा कि उसे अलकायदा से भी हाथ मिलाने में ऐतराज नहीं है क्योंकि वह भी अमेरिका का विरोधी है। ऐसे में पत्रकारों को यह भी सोचना चाहिए कि वह जिस देश और धरती में रहता है, सर्वोपरि उसका हित है उसके लिए।
जिसे गिरफ्तार किया गया, वह स्वतंत्र पत्रकार नहीं क्रिमिनल था। एक आदमी का उसने मकान हड़पने की कोशिश की थी यह प्रमाणित हो चुका है। स्वतंत्र पत्रकार बहुत से लोग अपने को बताते हैं क्योंकि पत्रकारों की पहुंच मंत्रियों तक, पुलिस मुख्यालय तक, सचिवालय-मंत्रालय तक हो जाती है, इसलिए बहुत सारे अपराधी भी अपने आप को पत्रकार कहने लगे हैं, पत्रकारिता का लबादा ओढ़ने लगे हैं। जब वे कहीं नहीं होते तो अपने आप को स्वतंत्र पत्रकार कहने लगते हैं। यह वैसे ही है जैसे आजकल राजनीति में निर्दलीयों की बाढ़ आ गई है।

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(व्यंग्यकार व पत्रकारिता के प्राध्यापक
रहे विनोद शंकर शुक्ल के विचार)


"सच छापना नहीं, छिपाना गुनाह है"

हमारे देश में कानून और उसकी धाराओं की जानकारी के लिए वकीलों को ही अधिकृत कर दिया गया है, पढ़ा लिखा वर्ग भी जरूरत पड़ने पर ही कानून की किताबों में झांकता है। जनता की जान-माल की सुरक्षा के पर्याप्त कानून संविधान में हैं। संभवत: आतंकवादी और विघटनकारी शक्तियों से बचाव के प्रयोजन से ही जनसुरक्षा अधिनियम को अवतरित होना पड़ा है। पिछले कई दशकों से विभिन्न राज्यों में इन शक्तियों ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है। कभी संसद-परिसर में विस्फोट होते हैं तो कभी मंदिर और बाजारों में। हिंसक शक्तियों ने कितनी निर्दोष जानें ली हैं, बताना मुश्किल है। मीडिया को वह छापने का पूरा अधिकार है, जो जनहित में है। अपनी कमजोरी छिपाने और आम लोगों को भ्रमित करने सरकार और उसकी नौकरशाही किसम-किसम के नाटक रचती है, जैसे नक्सालियों का फर्जी आत्मसमर्पण और फर्जी इनकाउन्टर। सलवा जुडूम के राहत शिविरों में आदिवासियों को राहत कितनी है और आफत कितनी, सबका बेबाकी से उद्धाटन होना चाहिए। सच छापना गुनाह नहीं है। दबाब और प्रलोभन में सच्चाई छिपाना गुनाह है। चौथा स्तम्भ कहलाने की सार्थकता भी तभी है। अभिव्यक्ति का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है, जेल में बंद कैदी भी पत्रकारों से अपनी बात कहने का अधिकार रखता है। नक्सलवादी यदि आम लोगों तक अपनी कोई बात पहुंचाना चाहते हैं तो यह हक उन्हें है। प्रेस को प्रकाशन से पूर्व यह जरूर देखना चाहिए कि प्रकाशन से शांति-व्यवस्था को खतरा तो नहीं है। एकता और अखण्डता को तोड़ने जैसी बात तो उसमें नहीं कही गई है?
नक्सलियों के पत्र की पहचान का कोई यंत्र अभी तक आविष्कृत नहीं हुआ है। सम्पादक सामान्यत: सील और भाषा से ही पत्र की पहचान करता है। सब कुछ संपादक के विवेक पर निर्भर है। नकली या विवादास्पद पत्र की कोई घटना अभी तक नहीं घटी है। सामान्यत: नक्सली गोपनीय तरीकों के बहुत एक्सपर्ट होते हैं। वे उन साधनों के प्रयोग से बचते हैं, जिनसे उन्हें पहचाना जा सकता है। फिर भी अतिरिक्त सतर्कता बरती जाए तो पत्रवाहक या साधन पकड़ में आ सकता है।
पत्रकारों का उनसे मिलना और बात करना गैरकानूनी नहीं माना गया है। क्योंकि नक्सलियों के उद्देश्य, उनकी मांगें इसी माध्यम से जनता और सरकार तक पहुंचती हैं। इससे उनके संघर्ष और इरादों को समझना आसान हो जाता है। सरकार को भी समाधान का कोई रास्ता निकालने में सुविधा हो सकती है।
पता या सूत्र बताना पत्रकारिता की आचरण संहिता का उल्लंघन होगा। पत्रकारिता बहुत कुछ पत्रकार और स्रोत के विश्वास की बुनियाद पर खड़ी है। विश्वास भंग होने पर समाचार के महत्वपूर्ण स्रोत बंद हो जाएंगे। नैतिकता का कोई पक्का सांचा नहीं है। अपने देश के लिए दूसरे देश की जासूसी करना, किसी की प्राण रक्षा के लिए झूठ बोलना, पागल जानवर को गोली मार देना आदि स्थितियों में नैतिकता के मानदण्ड बदल जाते हैं। सामान्यत: यह माना जाता है कि नक्सलवाद के मूल में गैरबराबरी, अशिक्षा, शोषण और अन्याय का हाथ है। यह बहुत कुछ सही भी है। इसलिए नक्सलियों के बयानों को महत्व मिला। लेकिन निर्दोषों की हत्या का जो निर्बाध सिलसिला उन्होंने शुरू किया है, उससे उनका नया हिंसक चेहरा सामने आया है। आन्दोलन अपने मार्ग से भटक गया लगता है। किसी ने ठीक कहा है कि पुलिस गोली चलाती है तब भी आदिवासी ही मरता है और नक्सली गोली चलाते हैं, तब भी। एक कटु सत्य यह भी है कि नक्सलवाद के खात्में के नाम पर आने वाला बेशुमार पैसा भी समस्या के हल में बाधक है। समाधान से आवक बंद होने के भय से स्वार्थी तत्व इसे बनाए रखना चाहते हैं।
नक्सलियों को मिलने वाले हथियार और पैसों के स्रोत का पता लगाने में पुलिस नाकामयाब रही है। एक स्वतंत्र पत्रकार कुछ सफेदपोश महिलाएं और कुछ दर्जियों की कलई खुलने से शहरों में उनके नेटवर्क का पता अब चला है। वर्षों से यह सिलसिला चल रहा होगा, जहां तक स्वतंत्र पत्रकार का प्रश्न है, धन और सुविधाओं के प्रलोभन ने उसे आपराधिक मार्ग पर डाल दिया होगा।
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(वरिष्ठ पत्रकार संजय द्विवेदी के विचार)

"नक्सलियों की बात भी सामने आनी चाहिए"

सरकार ने जिस भी मंशा से अधिनियम बनाया हो, प्रकट तो यही होता है कि वह नक्सलवाद पर नियंत्रण करना चाहती है। छग की परिस्थितियां साधारण नहीं हैं, जब परिस्थितियां साधारण ना हों तो सरकार को ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं, लेकिन सरकार का जो काम करने वाला तंत्र होता है, उसके काम करने का अपना तरीका होता है, जिसमें कई बार कानूनों का दुरुपयोग होता है। कानून का दुरुपयोग ना हो यह सावधानी सरकार के राजनीतिक तंत्र और कार्यकर्ताओं को रखनी होगी। पुलिस और प्रशासन का जो मौजूदा तंत्र है, वह किसी भी चीज में गड़बड़ी का रास्ता तलाश ही लेता है। अगर सरकार इसे काबू में कर ले तो कोई समस्या नहीं है। हम एक डेमोक्रेटिक सेटअप में रहते हैं और उसमें कोई अखबार दूसरे पक्ष को छापता है तो वह गलत नहीं है। वामपंथी विचारधारा वाले लोगों की सहानुभूति उनके साथ होती है, इस तरह के जो राजनैतिक कार्यकर्ता हैं वो अपनी बात कहते हैं, उनकी बात छपती भी है। इसको छापने और न छापने को लेकर तो मैं बात नहीं कर सकता क्योंकि सबको अपनी बात कहने का हक है। अगर किसी को हक दे रहा है अपनी बात कहने का तो इसमें कोई बुराई नहीं है। आपने देखा होगा कि टेलीविजन चैनलों पर बड़े-बड़े माफियाओं, दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील-बड़ा शकील सबसे बात की जाती है। उस तरह से नक्सली बात कह रहे हैं। बात कहने में कोई बुराई नहीं, वे बात कह सकते हैं और उनकी बात सामने आनी ही चाहिए।
नक्सली बयानों की प्रामाणिकता के बारे में हमें जरूर विचार करना चाहिए। हम लोग इस बात की सावधानी रखते हैं कि जो लोग प्रकट रूप में सामने नहीं आते उनकी बात का क्या औचित्य और कितना आधार है। मुझे नहीं लगता कि अखबार वाले इसे लेकर कोई गंभीर रवैया अपनाते हैं क्योंकि इतना समय नहीं होता कि हर चीज की जांच की जा सके। जो लोग समाज में हैं ही नहीं और भूमिगत तरीके से अपना आंदोलन चला रहे हैं, उनके बारे में जांच करना कठिन हो जाता है। उसका तरीका यही है कि हम इस तरह की चीजों को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं देते। कम से कम मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि मैं इन चीजों को अपने अखबार में ज्यादा तवाो नहीं देता। नक्सलियों को ट्रेस करने का काम सरकार का है, इसमें कोई मदद मांगेगा तो की जाएगी। दरअसल यह अखबार वाले का काम नहीं है कि वह नक्सलियों के पीछे लगे और उसकी जांच करे। यह सरकार का काम है कि वह अपने तरीके से इन चीजों की जांच करे और पता लगाए।
इस मामले में मैं अपने आप को असहाय महसूस करता हूं। क्योंकि मेरे सामने कोई प्रकट रूप में आता तो नहीं है, और न यह कहकर आता है कि मैं नक्सली हूं। दिनभर में बहुत सारे लोग अखबार के दफ्तरों में विज्ञप्ति देकर जाते हैं, इसमें एक-एक को वॉच तो नहीं किया जा सकता है और हमारे यहां क्लोज सर्किट का इंतजाम भी नहीं है। आप कैसे वॉच करेंगे कि वह कौन सी विज्ञप्ति देकर गया है, पता चला किसी धार्मिक आयोजन की विज्ञप्ति देने वाला अंदर हो गया क्योंकि उसकी पुलिसवाले से दुश्मनी थी। इस तरह के प्रयोगों के बहुत सारे खतरे हैं।
अधिनियम तो सरकार ने बनाया है, उसे जो बिंदु शामिल करने थे उसने शामिल कि ए हैं। ये तो कानून बनाने वालों से ही पूछा जाना चाहिए कि वे इन चीजों को क्यों कर रहे हैं। दूसरी बात मैं नक्सलियों से बातचीत करने, संवाद करने को गलत नहीं मानता। क्योंकि सरकार भी कहीं न कहीं ये कहती रही है कि हम नक्सलियों से बात करेंगे, आंध्र जैसे कई राज्यों में नक्सलियों से चर्चा की भी गई। वे टेबल पर आए और सरकार ने इनसे बात की।
अनेक जगहों पर जहां हिंसक आंदोलनों या आतंकवादी आंदोलनों में जो लोग रहे उनसे बात की गई। बात की भी जाती है, क्योंकि हम जिस गणतंत्र में रहते हैं, जिस लोकतंत्र की बात कहते हैं , उसमें अंतत: बातचीत से ही चीजें हल होंगी। समस्या यही है ना कि नक्सली बंदूक लेकर आ रहा है, कहा उससे यह जा रहा है कि हथियार रखकर आइए और बात कीजिए। अगर वह हथियार रखकर बातचीत करता है या संवाद का रास्ता अपनाता है तो लोकतंत्र में बातचीत के अलावा समाधान क्या है। लोकतंत्र में तो बातचीत करने का स्पेस है ही और यह अकेली व्यवस्था है कि सबको बातचीत के आधार पर अपनी समस्या का समाधान खोजने का हक है। और मुझे लगता है कि अगर नक्सली इस प्लेटफार्म पर आते हैं तो यह बहुत अच्छी बात है। उनसे बातचीत हो जाए विमर्श हो जाए तो इससे अच्छी क्या बात हो सकती है, अगर ऐसी परिस्थिति पैदा हो जाए तो मुझे लगता है कि पूरे देश को इससे राहत मिलेगी, छत्तीसगढ़ को भी फौरी तौर पर फायदा होगा।
लेकिन बातचीत का जो इस्तेमाल है, या बातचीत के समय का जो इस्तेमाल है, नक्सली इसे अपनी रणनीति बनाने, अपनी तैयारी करने और विश्रामकाल के लिए करते हैं कि बातचीत करके सरकार को गुमराह करते हैं, ताकि सरकार थोड़े समय के लिए आपरेशन बंद कर दे। ये जो चालाकियां हैं वह ठीक नहीं हैं और मुझे लगता है कि इसमें सरकार जो है-जैसी है वो तो ठीक है पर नक्सलियों का इरादा भी बहुत बातचीत करके समाधान निकालने का नही है।
सूचनाएं देना नैतिकता और अनैतिकता का प्रश्न नही है। हमारा काम सूचना देना है, हम इसके चक्कर में फंसेंगे तो बहुत सारी सूचनाओं से अपने पाठकों को वंचित कर देंगे। हम बहुत सारे ऐसे लोगों की खबर छापते हैं, तमाम ऐसे राजनेता हैं जो बहुत गलत कामों में लिप्त हैं, बड़े-बड़े अपराधों में शामिल लोगों की भी चीजें छपती हैं तो नक्सली भी अगर कोई अपनी बात कह रहा है या किसी विचार के तहत अपनी बात कहना चाह रहा है तो उसकी बात और चीजें छपेंगी। कोई बड़ी घटना हो गई जिस पर वह वक्तव्य देना चाहता है तो ये छापी जातीं हैं। बेनजीर भुट्टो की हत्या हुई, एक आतंकवादी संगठन ने कहा कि हमने हत्या की है, तो उसका नाम तो हमें छापना ही पड़ेगा। वह किसी भी स्रोत से बताए, ई-मेल भेजकर या विज्ञप्ति के माध्यम से या अखबार के दफ्तर में फोन करके। हम अपने पाठक को सूचना से वंचित नहीं कर सकते।
हमारी प्राथमिक जिम्मेदारी सूचना देने की है, उसमें हम कहीं नक्सली या आतंकवादी के पक्ष में दिखें तो आप हमारी नैतिकता-अनैतिकता पर प्रश्न उठा सकते हैं। हमें जहां से भी सूचना प्राप्त होती है, हो सकता है कि वह अधूरी हो, कच्ची हो, जो हमें सूचना दे रहा है गलत भी हो , तो हम उनके मार्फत ही छापते हैं। जांच करने का काम हमारा नहीं है, और इसके लिए न सरकार ने कोई हथियार या अधिकार हमें दिए हैं। यह जिम्मेदारी हम ले भी नहीं सकते। हमारा काम सूचना को सामने ला देना है।
पत्रकार को कोई विशेषाधिकार तो है नहीं, न कोई मजिस्ट्रेट पॉवर है। गलत काम में लिप्त पत्रकार जेल जाते रहे हैं, पहली बार पत्रकार कोई जेल गया है, ऐसा तो है नहीं। जो भी कोई गलत काम करता है तो सरकार के पास पर्याप्त अधिकार और कानून हैं, जनसुरक्षा कानून की भी जरूरत नहीं है। ऑलरेडी आपके पास इतने सारे कानून हैं, राजद्रोह जैसा कानून है, जिसके तहत गलत काम करने वालों को अंदर कीजिए। मगर इतना भर ध्यान रखने की जरूरत है जिसे मैं बार-बार कह रहा हूं कि इसके चलते किसी निरीह और निर्दोष आदमी का गला सरकार-पुलिस के हाथ में नहीं आना चाहिए।
कलम की आजादी पर हमले होते रहे हैं, अगर कोई अतिरिक्त आजादी लेता है तो उसे सजाएं भी होती रही हैं। यह पहली बार थोड़ी है कि पत्रकार जेल गया है। अभी मिड डे के पत्रकारों को सजा हुई है एक मामले में। तो पत्रकारों को सजा होना, जेल जाना यह नई बात नहीं है, ये तो होता रहेगा। लेकिन कानून का दुरुपयोग न हो इस पर अगर सरकार रख ले तो उसे पत्रकारों का भी समर्थन मिलेगा। हम खुद भी नहीं चाहते कि हमारी बिरादरी के लोग बदनाम हों या गलत काम में शामिल हों।

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(वरिष्ठ राजनीतिज्ञ व छत्तीसगढ़ राज्य वित्त
आयोग के पूर्व अध्यक्ष वीरेन्द्र पाण्डेय के विचार)


"नक्सलियों को महिमामंडित नहीं करना चाहिए"

जनसुरक्षा अधिनियम और उसमें मीडिया से संसंधित कानूनों की जानकारी नहीं है, इसलिए मैं इस पर कुछ नहीं कहूंगा। हां इतना जरूर है कि मीडिया को हमेशा समाज की सच्चाई बगैर किसी भेदभाव व लगाव के जनता के सामने लानी चाहिए। जहां तक नक्सलियों के पत्र छापने का सवाल है तो मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि मीडिया इसे छाप सकता है, लेकिन उसे यह जरूर देखना चाहिए कि कहीं वह सामग्री समाज या राष्ट्रविरोधी तो नहीं और कहीं उसका समाज के मनोबल पर विपरीत असर तो नहीं पड़ रहा। यह काम तो हो सकता, लेकिन मीडिया की भी अपनी आचार संहिता होती है, मेरे हिसाब से उसका काम किसी भी चीज की जांच करने का नहीं है। वह सिर्फ पाठकों-दर्शकों तक सूचना पहुंचाने के लिए जिम्मेदार होता है। बाकी प्रशासन का काम है कि वह तथ्यों की जांच करें। जो लोग नक्सलियों के पास जाकर बातचीत करके समाचार लाते हैं, मैं इसे भी गलत नहीं मानता, क्योंकि लोकतंत्र में सभी को अपनी बात कहने का हक है। पत्रकार उनकी बात, विचार सामने लाते हैं, वे ही नक्सलियों के नरसंहार या और समाज विरोधी काम को भी जनता के सामने लाते हैं। इसलिए मैं नक्सलियों के संपर्क में सिर्फ समाचार के लिए रहने वाले पत्रकारों को उनके काम का हिस्सा मानता हूं। हालांकि मैं ये भी मानता हूं कि मीडिया को भी अपने सामाजिक दायित्व को समझना चाहिए और बेवजह नक्सलियों को महिमामंडित नहीं करना चाहिए। एक मीडिया वाले की नक्सलियों के साथ संलिप्तता को जो सवाल है, उसमें मैं यह कहना चाहूंगा कि एक की वजह से पूरी बिरादरी को गलत नहीं कहा जा सकता। जो लोग पत्रकारिता की नैतिकता के विरूध्द जाकर अपने निजी स्वार्थ या फायदे के लिए राष्ट्रविरोधी काम करने लगते हैं, उन्हें पत्रकार नहीं माना चाहिए। पत्रकार को सच्चाई जनता के सामने लानी चाहिए। उसे किसी लाभ के लिए पत्रकारिकता का लबादा नहीं ओढ़ना चाहिए।
एक व्यक्ति द्वारा किसी समाजविरोधी के साथ विध्वसंक कार्य करने का उसके समूह या बिारदरी पर असर नहीं पड़ता। इसे ऐसा भी समझा जा सकता है कि आतंकवादी गतिविधियों में 99 प्रतिशत मुस्लिम समाज के लोग शामिल पाए जाते हैं, लेकिन इसकी वजह से आप पूरे समाज को इस नजर से नहीं देख सकते हैं। कुछ गिनती के लोगों की हरकत के लिए किसी बिरादरी को जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए।

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(शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता फैजल रिजवी)

"नक्सलवाद अपने मार्ग से भटक गया है"

जनसुरक्षा जैसे काक्वनून विशेष परिस्थितियों के लिए बनाए जाते हैं। जब सरकार को यह लगता है कि मौजूदा कानून, आईपीसी, सीआरपीसी आदि के जरिए विघटनकारी या राष्ट्र विरोधियों को नहीं संभाला जा सकता है, कानून की बारीकी के लिए या राष्ट्रविरोधी कार्य करने वालों से कड़ाई से निपटने के लिए सरकारें ऐसा कानून बनाती हैं। जहां तक छग जनसुरक्षा कानून और मीडिया के संबंध का सवाल है, मेरी जानकारी में इसमें मीडिया के लिए अभी अलग से कोई प्रावधान नहीं किया गया है। पत्र छापने के संबंध में मेरी जानकारी के अनुसार नक्सलवाद अभी प्रतिबंधित नहीं हुआ है। यह एक विचार धारा के रूप में -जाना जाता है, जो आतंकवादी संगठन होते हैं, उससे इसे अभी कंपेयर नहीं किया जा रहा है। नक्सलियों के फेवर में जो चीज आएंगी या प्रचार में या छवि बनानेमें सहायक होगीं, उनके कार्यों को अच्छा बताने की कोशिश करनी वाली सामाग्री को तो एक नजर में उनके द्वारा भेजा हुआ माना जा सकता है। रही बात इनके स्रोत पता करने की तो अभी तो पुलिस ऐसा उपाय कर रही है, टेलीफोन आदि माध्यमों से वह इनका पतासाजी करती रहती है। मेरे हिसाब से अब देश-प्रदेश में जो हालात बने है उसको देखते हुए सरकार को चाहिए कि बाजार, स्टेशनों, चौराहों आदि सार्वजनिक स्थानों में क्लोज सर्किट टीवी लगनी ही चाहिए, सरकार को जागकर अब यह करना चाहिए, नक्सलवाद पहले विचारधारा व सोच थी, लेकिन अब यह भटक गया है, मगर अब आम इंसानों पर हमले होने के बाद यह बदल गया है, अब इसके प्रति लोगों की सोच बदलनी चाहिए। अब इसे समाज सुधारक के रूप में नहीं देखा जा सकता। जहां तक नक्सलियों के बीच पत्रकारों के जाने का सवाल हो तो पत्रकार को इसमें दूत के रूप में देखा जाना चाहिए, वह यह प्रयास करता है कि नक्सलियों की बात या विचार को सामने लाए, ताकि इसका शांति के लिए उपयोग हो, पत्रकार यह समाज हित में करता है, हालांकि पत्रकार को किसी तरह से नक्सलवाद को बढ़ावा देने से बचना चाहिए। उसे सिर्फ नक्सलियों की बातें सामने लानी चाहिए। उसके पक्ष में उसे खड़ा नहीं होना चाहिए। सूत्रों के नाम बताने के संबंध में जो कानून है, उसमें प्रावधान है कि पुलिस अपने मुखबिर, वकील अपने क्लाइंट, पति-पत्नी के बीच की बातचीत किसी को भी न बताने के लिए व्यवस्था है, उसे यह अधिकार प्रदान किया गया है। लेकिन पत्रकार के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, उसे सूत्र का नाम कानूनी रूप से बताना होगा, अगर सरकार या अदालत चाहे। मीडिया स्वतंत्र हैं, मेरा व्यक्तिगत विचार है कि अगर नक्सल सामाग्री राष्ट्रविरोधी है तो इसे नहीं छापना चाहिए। यह देखना चाहिए कि कहीं उसका जनहित, शांति या समाज के मनोबल पर विपरीत असर न पड़े। रही बात स्वतंत्र पत्रकार की तो कोई भी व्यक्ति अगर गलत काम या राष्ट्रविरोधी काम करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी ही चाहिए। फिर वह चाहे पत्रकार, नेता, वकील, अधिकारी कोई भी हो।

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(वरिष्ठ अधिवक्ता एस.के.फरहान)

"एक्ट बनने के बाद मीडिया भी संभला है"

जनसुरक्षा अधिनियम 2005 जो बना है, उसमें मीडिया के लिए अलग से तो कोई प्रावधान किया नहीं गया है। लेकिन जहां तक छापने न छापने का सवाल है, तो आप ऐसी चीज प्रकाशित नहीं कर सकते हैं, जिससे नक्सलियों की नीति को बढ़ावा मिलता है या फिर उनके प्रचार तंत्र का हिस्सा बनते हैं, कुल मिलाकर अगर कोई भी मीडिया अपनी खबरों के माध्यम से उनके साथ खड़ा हुआ लगता है तो यह जनसुरक्षा अधिनियम के दायरे में आएगा।
अगर नक्सली संगठन सरकार द्वारा प्रतिबंधित हैं तो मीडिया नक्सली प्रवक्ता का पत्र भी कानूनन नहीं छाप सकती। क्योंकि अगर आप उनका पत्र छाप रहे हैं तो यह उनके साथ सहयोग करने की श्रेणी में आएगा। मेरे हिसाब से संपादक के लिए यह तय करना कठिन होता होगा कि नक्सली प्रवक्ता के नाम से आया पत्र असली है कि नहीं, कोई अन्य व्यक्ति भी नक्सली प्रवक्ता के नाम से पत्र लिखकर मीडिया के पास तक पहुंचा सकता है। हालांकि मीडिया के पास भी अपने स्रोत होते होंगे और संपादक पत्र के कंटेंट के हिसाब से भी इसका अनुमान लगा लेता होगा।
शासन अगर चाहे तो नक्सलियों के पत्र जिस जरिए से आते हैं, उसे आसानी से पकड़ सकता है। क्योंकि नक्सली जिस तरह से आम नागरिकों की हत्या कर रहे हैं, उसे देखते हुए सभी पुलिस का सहयोग करने के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं। जहां तक पत्रकारों का नक्सलियों से मिलने का और उनकी खबरें लाने का सवाल है तो जनसुरक्षा अधिनियम के तहत यह अपराध है। ये तो शासन और पुलिस की मेहरबानी है कि वह ऐसा नहीं कर रही है।
हालांकि इसके पीछे कारण भी है कि पुलिस किसी पत्रकार के लिखे हुए के आधार पर न्यायालय के सामने यह साबित नहीं कर सकती कि वह नक्सलियों से सही में मिला था। लेकिन अगर पुलिस चाहे तो छपे आधार पर भी कार्रवाई कर सकती है। क्योंकि वह आरोप लगा सकती है कि पत्रकार नक्सलियों से मिलने गया था तो उसने नक्सलियों को धन या संसाधन भी पहुंचाया।
आपने देखा होगा कि जब यह एक्ट बन रहा था तो मीडिया ने इसका विरोध किया था, फिर भी जब यह एक्ट पास हो गया तब से मीडिया में बहुत बदलाव भी आए हैं, अब पत्रकार संभलकर काम करता है। रही बात नैतिकता की, तो पत्रकार का कर्तव्य है कि वह सभी चीजों को सही नजरिए देखे, उसे गलत का साथ नहीं देना चाहिए। और अभी तक यह साबित नहीं हुआ है कि नक्सलियों का उद्देश्य समाज हित में है। और पत्रकार कोई नक्सलियों का गुणगान भी नहीं करता है, तब तो उनके समाचार को सामने लाया ही जा सकता है।
जो पत्रकार पकड़ाया है उसे पुलिस ने पत्रकार होने के कारण नहीं गिरफ्तार किया है। उनका पहले यह पेशा रहा होगा। उनके पास ऐसी अवैधानिक चीजें पकड़ी गईं हैं, जिनका नक्सलियों से संबंध है। इस वजह से पकड़ा गया है। उन्हें पत्रकार होने के कारण नहीं पकड़ा गया है।

हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट