" नेता-अफसर भी अंधविश्वास का साथ देते हैं "



( रायपुर,  9 फरवरी 2008, रात 10.30 बजे  ) 
अंधविश्वास दूर करने और लोगों को चमत्कारों की असलियत बताने में बरसों से लगे डा. दिनेश मिश्रा को लगता है कि टोनही प्रताड़ना के खिलाफ बने कानून को और अधिक सख्त बनाने की जरूरत है। दोषियों पर जुर्माने की रकम बढ़ाई जानी चाहिए और वह रकम पीड़ित महिला को दी जानी चाहिए। वे मानते हैं कि गांव गांव में जागरूकता फैलाने के इस सफर में उन्हें अभी मीलों चलना है लेकिन इस बात का संतोष है कि लोग उनसे जुड़ते जा रहे हैं और पहले से कहीं अधिक सूचनाएं उन तक पहुंच रही हैं। उन्हें इस बात का दुख है कि पढ़े लिखे लोगों में से भी बहुत से लोग अंधविश्वासी हैं। बहुत से नेता-अफसर भी सार्वजनिक तौर पर अंधविश्वास के साथ खड़े नजर आते हैं। कुछ वोट बैंक के कारण इनके खिलाफ बोलने से बचते हैं। अंधविश्वास से लड़ने के लिए शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं के विस्तार को डा. मिश्र महत्वपूर्ण मानते हैं। मुख्यमंत्री को वे हर जिले में एक एक मेडिकल कॉलेज खोलने का सुझाव भी दे चुके हैं। नेशनल लुक के लिए बबलू तिवारी ने उनसे अंधविश्वास और विज्ञान को लेकर ढेर सारे सवालों के साथ लंबी चर्चा की।

कैसे शुरू हुआ यह सफर...
बात शायद 1992 के आसपास की है। शहर के एक युवा डाक्टर ने अपनी नेत्र चिकित्सा की नई-नई क्लीनिक खोली थी। व्यवसाय के रूप में उसने डाक्टरी तो शुरू कर दी लेकिन उसके अंदर का मन उसे समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों के प्रति हरदम कुरेदते रहता था। मीडिया के माध्यम से इन कुरीतियों और अंधविश्वास की आड़ में स्वार्थी और अशिक्षित जनता द्वारा किए जा रहे मानवाधिकार हनन को लेकर उसका मन हमेशा कचोटते रहता था। इस बीच गांवों से आने वाले मरीज भी अपने-अपने इलाकों में धर्म, ज्योतिष, जादू-टोना की आड़ में होने वाले अत्याचारों से उसे परिचित कराते रहते थे। युवा डाक्टर में इसके लिए कुछ करने का दीया तो जल रहा था, लेकिन वह उसी के अंदर ही था। धीरे-धीरे करीब तीन साल बीत गए, लेकिन उसने अपने दीए को बुझने नहीं दिया। फिर 1995 के आसपास का वह समय आया जब उसने छत्तीसगढ़ में जादू-टोना और झाड़ फूंक के प्रति लोगों मे फैले अंधविश्वास को अपने दोस्तों-परिचितों के साथ एक संगठन के माध्यम से दूर करना शुरू किया। पिछले बारह साल से यह अभियान लगातार चल रहा है। इस बीच कई बैगाओं-ज्योतिषियों की पोल खुलने के बाद उसे 1 सप्ताह के भीतर अकाल मौत होने का डर भी दिखाया, लेकिन सालों-सालों बीत जाने के बाद भी आज तक वह दिन नहीं आया। अब जिस बैगा-तांत्रिक के सामने भूत-प्रेत थर-थर कांपते थे, वे अब इस युवा डाक्टर का नाम सुनकर कांपते हैं, और आने की खबर मिलने पर अपना बोरिया-बिस्तर लेकर गायब हो जाते हैं। शुरू में डाक्टर के दोस्तों, रिश्तेदारों ने इसे एक डाक्टर का पागलपन करार दिया। कइयों जगह से पत्र आए, जिसमें उन्हें अपनी डाक्टरी पर ध्यान देने का सुझाव दिया गया। लेकिन इससे वह विचलित नहीं हुआ और अपने साथियों के साथ इस अभियान में जुटे रहा। इसका खामियाजा भी डाक्टर अपने क्लीनिक की आमदनी में कमी और परिवार के दिए जाने वाले समय में कटौती के रूप में देना पड़ा। लेकिन उसने अपने मन के दीए को आजतक बुझने नहीं दिया। अब यही दीया पूरे समाज को रोशन कर रहा है। इस दीए के जीवन के लिए उनके संगठन ने कभी भी सरकारी तेल-बाती का सहारा भी नहीं लिया। अब इस युवा डाक्टर- डा. दिनेश मिश्र को छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि पूरे देश में एक निस्वार्थ समाजसेवी और वैज्ञानिक जागरूकता फैलाने वाले डाक्टर के रूप में देखता है।

0. आपके हिसाब से वैज्ञानिक जागरूकता को लेकर छत्तीसगढ़ की क्या स्थिति रही है?
00. वैज्ञानिक जागरूकता के प्रति यहां की स्थिति बहुत खराब है। यहां के लोग बहुत जल्दी किसी भी अफवाह पर विश्वास कर लेते हैं। समय-समय पर यह देखने को मिलते रहा है, जैसे गांवों में चुड़ैल की अफवाह की वजह से सैकड़ों गावों में घर के बाहर ओम नम: शिवाय लिखे हुए मिलता था। अभी एक बच्चे की मां वाली अफवाह में भी यही हुआ। मूर्ति के दूध पीने की घटना होती है तो पूरे प्रदेश में इसका असर देखने को मिलता है। यहां के लोग सीधे-साधे हैं, जागरूकता की कमी के कारण वे अफवाहों पर तुरंत भरोसा कर लेते हैं।

0. यहां ऐसी कौन-कौन सी धारणाएं चलन में हैं, जिन्हें विज्ञान नहीं मानता?
00. यहां सबसे ज्यादा मान्यता टोनही की है। हम लोगों को करीब 150 महिलाओं के नाम मालूम हैं, जिन्हें जादू-टोना करने के आरोप में टोनही करार देकर मौत के घाट उतार दिया गया। हम लोगों की इनमें से बहुत सारी महिलाओं के परिजनों, गांववालों तथा इन्हें मारने वालों से बात हुई है, जिसमें उन्होंने माना है कि महिालओं को अंधविश्वास के कारण मारा गया है। अभी मैं तर्रा गांव गया था। जहां गांव वालों ने फुलवंतिन बाई नाम की एक महिला को टोनही के नाम पर मार डाला था। हमारी गांववालों, जिस बच्चे की वजह से फुलवंतिन को टोनही करार दिया उससे (अब वह बड़ा हो गया है), उसके मां-बाप तथा सरंपच आदि से बात की। आज की स्थिति जिस परिवार की वजह महिला को टोनही करार देकर गांववालों ने मार डाला था, वह ठीक-ठाक और सुखी है, लेकिन फुलवंतिन का तो पूरा परिवार उजड़ गया। गांववाले अब मानते हैं कि उन्होंने अंधविश्वास की वजह से महिला को मार डाला था। कई सारी बीमारियों को लेकर भी यहां अंधविश्वास है, लोग मानते हैं कि इसके पीछे जादू-टोने का हाथ हाथ है। किसी ने नजर लगा दिया है। कई मामलों में जिसका हमें पता चल जाता है, हम मरीज को शहर लेकर आते हैं और इलाज कराते हैं।

0. इस मामले में आप शिक्षा की क्या भूमिका पाते हैं?
00. शिक्षा तो बहुत आवश्यक है, इसी से लोगों में वैज्ञानिक जागरूकता बढ़ेगी। अभी भी हम जब बहुत सारी जगहों पर जाते हैं तो लोग बताते हैं कि उनके यहां प्रायमरी और 8 वीं के बाद शिक्षा के लिए स्कूल नहीं हैं। बच्चों को साइकिल से 10-15 किमी दूर पढ़ने के लिए जाना पड़ता है। कुछ लोग लड़कों को तो भेज देते हैं, लेकिन लड़कियों को भेजने से परहेज करते हैं। ग्रामीण इलाकों में 10-20 किमी तक स्कूल नहीं, ऊपर से हमारे प्रदेश का कई हिस्सा नक्सलवाद से प्रभावित है, जिसके वजह से वहां के लोग अपने बच्चों की पढ़ाईको लेकर ज्यादा उत्सुकता नहीं दिखाते हैं। ज्यादातर लोग 5-8 वीं के बाद अपने बच्चों की शिक्षा रोक देते हैं और उन्हें रोजगार आदि में लगा देते हैं।

0. ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं को इन बुराइयों से निपटने में आप कितना सक्षम पाते हैं?
00. शिक्षा जैसी स्थिति ग्रामीण इलाकों की स्वास्थ्य सुविधाओं का भी है। दूर-दूर तक अस्पताल नहीं हैं, अगर हैं भी तो वहां डाक्टर-दवाईयां नहीं हैं। अस्पताल में इलाज का इंतजाम नहीं होता। शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा धीरे-धीरे सुधर रही हैं, लेकिन अभी इसे दुरूस्त होने में बहुत लंबा समय लगेगा। मैंने कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री से कहा भी था कि हर जिले में एक-एक मेडिकल कालेज खोला जाए। इससे शिक्षा और चिकित्सा की ढेर सारी समस्या खतम हो जाएगी। लोग शहरों में नौकरी करना चाहते हैं तो उन्हें इन कालेजों में ही नौकरी करने दो। इससे उन लोगों को भी फायदा होगा जो मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेश या दूसरे प्रांत जाते हैं। यहां जब पढ़ाई की अच्छी सुविधा हो जाएगी तो छात्र बाहर क्यों जाएंगे?

0. कुछ पढ़े-लिखे लोग भी अंध विश्वास करते हैं, इसका अनपढ़ लोगों पर कैसा असर पड़ता है ? कुछ घटनाएं बताएं जो आप को याद हों।
00. बहुत सारे पढ़े-लिखे लोग अंधविश्वास पर भरोसा करते हैं। ये वे लोग होते हैं, जो चमत्कारिक रूप से सफल होने या बहुत जल्द सफल होने का ख्याल रखते हैं। वे चाहते हैं कि कोई ताबीज मिल जाए या अंगूठी मिल जाए जो उन्हें जल्द से सफल बना दे। एक पूर्व केंद्रीयमंत्री हैं जिन्होंने सार्वजनिक मंच से माना था कि वे अंधविश्वास को मानते हैं। प्रदेश के एक दिग्गज नेता के बारे में भी कहा जाता रहा है कि उनकी जो सड़क दुर्घटना हुई थी वह जादू-टोने के कारण हुई थी। राजनेता भी अंधविश्वास को बाते और प्रश्रय देते हैं। लोगों को लगता है कि इतना बड़ा पढ़ा-लिखा आदमी जिसके पास सारी सुविधाएं हैं जब वह इसे मान रहा है तो हम क्यों नहीं। हमारे पास तो न कोई सुख-सुविधा का साधन हैं और न ही पढ़ाई और चिकित्सा का। लेकिन इन लोगों को यह भी देखना चाहिए कि जब ये बीमार होते हैं तो अपना इलाज बैगा-ज्योतिष से कराने के बदले एस्कार्ट, अपोलो आदि में क्यों कराते हैं। बड़े-बड़े अफसर भी अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं, छग के एक पुलिस अफसर को तो हम सभी लोग जानते हैं जिसने एक बाबा की शरण ले ली थी और उनका भक्त हो गया। यूपी के आईजी श्री पांडा का उदाहरण हैं यो लोग सब कुछ जानते हुए भी अंधविश्वास को आत्मसात करते हैं। जिसका दूसरों पर असर पड़ता।

0.यूपी के आईजी से मिलते जुलते मामलों को मानसिक बीमारी के नजरिए से भी क्या देखा जा सकता है, किन राजनेताओं को आप अंधविश्वास के खिलाफ खड़ा हुआ पाते हैं?
00. यूपी के आईजी वाले मामले में तो डाक्टरों ने कहा ही था कि उन्हें बाईकूलर सिंड्रोम नामक मानसिक बीमारी हो गई है। इसमें आदमी कुछ समय के लिए अपने को कुछ दूसरा ही समझने लगता है। गावों में भूत-प्रेत लोगों के आने वाले मामले में भी यही रहता है। लेकिन भूत-प्रेत में लोगों को मार पड़ती है पर जब वहीं कोई इसे भगवान का नाम दे देता है तो उसके पास लोगों का तांता लग जाता है। उसकी पूजा होने लगती है। इसे हम अभी आई भूल-भूलैया और लगे रहो मुन्नाबाई जैसी फिल्मों से अच्छी तरह समझ सकते हैं। जिसमें इस बीमारी के बारे में अच्छे से समझाया गया है।

0. टोनही की धारणा के बारे में कुछ बताएं ?
00. इसके मूल में तो अशिक्षा है। पहले जब लोगों को बीमारियों के बारे में जानकारी नही होती थी और कोई बीमार हो जाता था तो इसके पीछे वे जादू-टोने को कारण मानते थे। इसमें सबसे सरल शिकार वे महिलाएं होती हैं, जो विधवा हो, जिनके बच्चें या पति मर गए हों, शारीरिक रूप से कमजोर रहती हैं, जिनकी हरकतें संदिग्ध होती हैं और सबसे बड़ी बात जो गरीब होती थीं। इन्हें लोग टोनही का नाम दे देते थे और किसी के बीमार होने पर उन्हें ही दोषी माना जाता है। जिसके लिए उनकी सार्वजनिक रूप से पिटाई के साथ मार दिया भी दिया जाता था। यह कुप्रथा सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं है बल्कि उड़ीसा, असम, बिहार, राजस्थान, हरियाणा आदि जगहों पर भी यह व्याप्त हैं। वहां इसे डायन के रूप में जाना जाता है। कई जगह तो ऐसी घटना में उन्हें गड़ासे से काट दिया जाता है। कभी-कभी यह भी देखा गया है कि अगर ऐसी महिला ने किसी को खाने को दे दिया, या किसी को छू लिया भले वह महिला किसी संक्रमण का शिकार हो जिसकेो वजह से उसके संपर्क में आने वाला बीमार हो गया हो । उसके बाद अगर वह बीमार पड़ गया तो लोग उस महिला को ही टोनही करार दे देते हैं। इसमें यह भी है कि अभी तक की एक घटना में भी किसी संपन्न घर की महिला पर यह आरोप नहीं लगया गया है और न ही किसी पुरूष को। क्योंकि संपन्न घर की महिला के परिवार वाले इसका प्रतिरोध करते हैं और पुरूष विरोध करता ही है। हम जहां भी जाते हैं लोगों को यही बताते हैं कि अगर महिला में ऐसी कोई शक्ति होती तो वह गरीब क्यों रहती? वह अपने को बचा क्यों नहीं पाई? वह लोगों से मुकाबला कर सकती थी। शारीरिक रूप से ठीक हो सकती थी। लोगों के पास इसका जवाब नहीं होता। ऐसी महिलाएं ही प्रताड़ित की जाती हैं, जिनकी मदद करने वाला कोई नहीं होता। हमें आज तक एक भी संपन्न महिला ऐसी नहीं मिली जिस पर टोनही होने का आरोप लगा हो।

0. टोनही कानून बनाने में आपके संगठन की क्या भूमिका रही ?
00. हमने इसके लिए अपने स्तर पर पूरा प्रयास किया। मानवाधिकार आयोग से मिले, राज्य मानवाधिकार आयोग में भी इसके लिए मांग की। मुख्यमंत्री से मिले, विधायकों को पत्र लिखा कि इस मामले को उठाया जाए। धीरे-धीरे यह कानून तो बन गया। लेकिन अभी भी गावों में इस कानून के प्रति जागरूकता नहीं हुई है। हम लोग हरेली आदि अवसरों पर गावों में जाकर इसका प्रचार-प्रसार करते रहते हैं। हम गांववालों को बताते हैं कि जिस चीज से आप डर रहे हो वह सारा सामान तो आपके आसपास मौजूद है। गांव गंदगी फैली हुई है, लोगों में शारीरिक साफ-सफाई का अभाव है। जिसकी वजह से मलेरिया, दस्त आदि बीमारी हो रही है। कोी महिला आपको थोड़ी ना बीमार कर रही है। कोई बैगा आप को बोल देगा कि इसके लिए कोई महिला जिम्मेदार तो आप उसके खिलाफ खड़े हो जाते हो। बैगा को बीमारी के इलाज के लिए बुलाना ही नहीं चाहिए। कई बार देखा गया है कि घर में बैगा झाड़-फूंक के दौरान कह देता है कि बाहर जो महिला घूम रही है उसी ने टोना किया है। होता यह है कि गांवों में घर में शौचालय का इंतजाम होता नहीं है, महिलाओं को बाहर जान पड़ता है। उसी समय बैगा की बात मानकर लोग महिला ढूंढ़ना शुरू कर देते हैं। नित्यक्रिया के लिए बाहर गई महिला अगर उन्हें मिल जाती है तो वे उसी को टोनही मान लेते हैं। हमने कई मामलों के पीछे ऐसा कारण पाया है। हम लोग हरेली समय गावों, श्मशान घाट, तालाबों पर जाकर वहां झाड़-फूंक कर रहे लोगों को यही समझाते हैं।

0. टोनही के अंधविश्वास की वजह से क्या नुकसान समाज-देश को होता है ?
00. देखिए आप जब किसी को टोनही के नाम पर मार डालते हो या उसे सार्वजनिक रूप से मारते-पीटते हो तो यह उसके मानवाधिकार का हनन होता है। कई बार ऐसी महिलाओं का गांव से बहिष्कार हो जाता है। लोग उनसे कोई संबंध नहीं रखते हैं, बात नहीं करते हैं। यह चीज बिल्कुल गलत है। इससे देश को समाज को नकसान निसंदेह रूप से होता है।

0. इन प्रकरणों में कुछ स्वार्थी लोगों द्वारा अपने फायदा के लिए किसी महिला टोनही घोषित करने की घटनाएं भी क्या देखने को मिलती हैं? आप लोगों ऐसी महिलाओं के पुनर्वास के लिए भी कुछ करते हैं?
00. कहीं-कहीं किसी स्वार्थी व्यक्ति का हाथ होने का मामला पाया जाता है, लेकिन इसकी संख्या न के ही बराबर होती हैं। क्योंकि ज्यादातर मामलों में समूह द्वारा महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है। पुनर्वास के लिए हम सरकार से ऐसी महिलाओं की पहचान करके उन्हें राहत दिलाने का काम करते रहते हैं। ऐसी महिलाओं को रहने के लिए राज्य सरकार से आवास भी उपलब्ध कराने के लिए हम लगातार मांग करते रहते हैं। हम लोग सरकार से यह भी मांग कर रहे हैं कि ऐसी घटनाओं की शिकार महिलाओं के पुनर्वास के लिए एक नीति बनाई जाए। हम लोग चूंकि आज तक सरकार से पैसा लेकर कोई काम नहीं किया है। हमारा संगठन आपस में जुटाए गए धन से ही प्रचार प्रसार का काम करता है। हमने एकाध बार ऐसा कोई प्रोजेक्ट बनाने की कोशिश भी करनी चाही तो पता चला कि प्रोजेक्ट को पास कराने के लिए इतना प्रसेंट कमीशन देना होगा। फिर हमने इससे अपना हाथ खींच लिय॥ क्योंकि हम अपने उद्देश्य से भटकना नहीं चाहते थे।

0. टोनही और अंधविश्वास की कुछ बड़ी और वीभत्स घटनाएं ?
00. एक घटना लचकेरा की थी, जिसमें तीन महिलाओं को गांववालों ने पहले करेंट लगाया। फिर उन्हें नंगा करके जुलूस निकाला था। राजनांदगांव के तारनटोला में फुलवती को रात में घर से निकालकर पीटा गया। इस बीच वह किसी तरह भागने में सफल हो गई तो उसे दोबारा पकड़कर लाया गया और पीटा गया। फिर उसे तालाब में फेंक दिया। महिला तैरकर बाहर आ गई। फिर उसे बांधकर मारा गया। जिसमें वह मर गई। गांववाले उसकी लाश को नाले के पास लाकर जला दिया। इस प्रकरण में पूरा गांव जेल चले गया था। कवर्धा में फूलवंतिन वाले मामले में रात में गांववाले उसके घर पहुंचे और भौजी-भौजी की आवाज लगाई। उसका पति 3-4 साल पहले मर गया था, दो बच्चे थे उसके। जब उसने दरवाजा खोल दिया तो उन्होंने एक बच्चे का नाम लेकर कहा कि उसे तुमने बीमार किया, उसे ठीक करो। जब उसने इससे अज्ञानता जताई तो उसे पीटना शुरू कर दिया गया। वह भाग न सके इसके लिए उसके कपड़े उतारकर जला दिया गया। पिटाई से जब वह बेहोश हो गई तो उसे रस्सी में बांधकर दो किमी तक साइकिल के पीछे खींचा गया। जिसके बाद उसकी मौत हो गई। फिर उसे एक कुएं में पत्थर बांधकर डाल दिया गया। जिसमें पत्थर के अलग हो जाने के बाद उसकी लाश ऊपर आ गई। इस बीच रातभर उसके दोनों बच्चे गांव में अकेले घूमते रहे। अभी हम लोग बीच में वहां गए थे तो पता चला कि बच्चे अपने मामा के गांव चले गए हैं।

0. नए कानून को कितना कारगर पाते हैं, इसमें आपके हिसाब से क्या चीजें और होनी चाहिए?
00. हम लोग मांग करते रहे हैं कि इसमें जो जुर्माने की राशि है उसे और बढ़ाया जाए। वह इतना हो कि उससे उस महिला का पुनर्वास हो सके। इस राशि को सरकारी खाते में जमा करने की बजाए पीड़ित को दिया जाना चाहिए। ऐसी घटनाएं होने पर वहां के सरपंच आदि जनता के नुमाइंदों को जिम्मेदार माना चाहिए और उन्हें भी सजा होनी चाहिए। घटना के बाद पुलिस को कड़ाई से दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। कई बार पुलिस के ढीले-ढाले रवैए से भी एएसी घटनाओं को बढ़ावा मिलता। पुलिस को ऐसी सूचना मिलने पर पीड़िता की तुरंत मदद के लिए सामने आना चाहिए। जबकि होता यह है कि प्रशासन जब तक किसी की मौत न हो जाए और जब तक बड़ी प्रताड़ना नही होती, वह सक्रिय नहीं होता। ऐसा करके ऐसी घटनाओं की संख्या में कमी लाई जा सकती है।

0. इस अंधविश्वास के खिलाफ आप लोग किस तरह से प्रचार-प्रसार करते हैं?
00. हम लोग ऐसी घटनाओं के बाद गांव में जाकर वैज्ञानिक जागरूकता बढ़ाने का काम तो करते ही हैं, साथ ही गांव-गांव जाकर लोगों की बैठक लेते हैं। हम लोगों से पूछते हैं कि वहां कौन-कौन सा अंधविश्वास फैला है। हम लोगों को बताते हैं कि जब आपकी साइकिल, टीवी, ट्रैक्टर खराब होती है तो आप क्या करते हैं, आप उसे मिस्त्री के पास ले जाकर बनवाते हैं। लेकिन जब आप खुद बीमार होते हैं तो बैगा से झाड़-फूंक कराने लगते हैं। हम लोग स्कूलों, एनएसएस के कैंपों में जाकर वैज्ञानिक जागरूकता बढ़ाते हैं। कई बार जब हमें पता चलता है कि कोई बैगा लोगों को वेवकूफ बना रहा तो हम वहां जाकर उसका फंडाफोड़ करते हैं। उनसे पूछते हैं कि बताओ तुम्हारे साथ अगले 20 मिनट में क्या होने वाला है। वह बोलता है कि कुछ नही, उसे हम बताते हैं कि आप जेल जाने वाले हैं। बैगाओं द्वारा किए जाने वाले कई जादू हम उसे करके दिखाते हैं। कई बैगा जब हमें हड्डी निकालने या अन्य चीजें निकालने का दावा करते हैं, तो हम उन्हें कहते हैं कि हमारे साथ नक्सली इलाकों में चलो और यब बताओ कि कहां-कहां लैंड माइंस लगे हुए हैं। फिर क्या बैगा भाग खड़े होते हैं। गांवों में इकट्ठा लोगों को बताते हैं कि जब बाबा को अपने भविष्य के बारे में नहीं पता है तो यह आपके दुख कैसे दूर कर सकता है। पीलिया के फर्जी उपचार करने वालों का भी फंडाफोड़ करते हैं। समाचार पत्रों में लेख आधि के माध्यम से लोगों के बीच सही बात पहुंचाने की कोशिश करते रहते हैं। गांव में लोगों को इससे संबंधित पर्चे पुस्तकें भी बांटते हैं। जहां-जहां जाते हैं वहां मीटिंग के बाद निशुल्क नेत्र चेकअप का शिविर भी लगाते हैं, कई बार होता है कि मीटिंग 1 घंटे ही चलती है, लेकिन शिविर 4-5 घंटे तक लगाना पड़ता है। क्योंकि लोग बड़ी संख्या मेें आए हुए रहते हैं। हम लोगों को अपने से जोड़ने के लिए सभी को अपना नंबर-पता देकर किसी भी केस में सूचना देने का अनुरोध करते हैं। अब 12 साल बाद हमारे पास सूचनाएं आने लगी हैं।

0.कुछ और रोचक घटनाएं ?
00. राजानांदगांव की एक घटना हैं वहां पुराने चीरघर में कहा जाता कि यहां भूत रहते हैं। लोगों में काफी भय व्याप्त हो गया था। हम लोग वहां गए और रात में चीरघर में घुसे। वहां शराब, सिगरेट, नमकीन के पैकेट पड़े हुए थे। हमने लोगों से पूछा कि क्या यहां का भूत सराब, सिगरेट पीता है, फिर लोगों के समझ में आया कि उन्हें कोई वेवकूफ बना रहा था। बाद में उस चीरघर को तुड़वा दिया गया। बस्तर में पिछले साल हल्ला हो गया कि रात में एक प्रकाश पूंज घूमता है और जो उसे देख लेता है बेहोश हो जाता है। हम लोगों ने वहां कई रात इसकी खोज की तो पता चला कि एक आदमी कुत्ते के शरीर में टार्च बांधकर छोड़ देता है। बाद में लोगों ने उस कुत्ते को मार दिया।

0. इसके पीछे क्या कोई वैज्ञानिक आधार पाते हैं?
00. यह सभी अंधविश्वास की वजह से लोग करते हैं। जहां तक लोगों में भूत-भगवान के आने की बात है तो वह मानसिक बीमारी हो सकती है। ज्योतिष को बी मैं गलत मानता हूं। आपको याद होगा कि जब अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बने थे तो किसी राजनेता ने उन्हें शपथग्रहण के लिए मुहूर्त निकालने का सुझाव दिया था। तब उन्होंने कहा था कि सूरज चमक रहा है। पृथ्वी घूम रही है, दिन-रात हो रहे हैं। तब तक मुझे किसी मुहुर्त की जरूरत नहीं है। मेरे लिए हर घड़ी, हर दिन शुभ है। जवाहरलाल नेहरू जी भी अंधविश्वासों के घोर विरोधी थे।

0. आपके अंदर इसके प्रति रूचि कैसे जागी ?
00. मुझे शुरू से यह सबी चीजें कचोटती थी। मन में सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति कुछ करने की इच्छा रहती थी। शुरू में अपने डाक्टर तथा और क्षेत्रों के दोस्तों से इसके लिए बात की। सभी ने साथ देने के तैयार हो गए और काम शुरू हो गया। शुरू में हम रायपुर के आसपास ही काम कर पाते थे। धीरे-धीरे संपर्क बढ़े तो हम पूरे छत्तीसगढ़ में जाने लगे हैं। हमारी संस्था में इस समय अलग-अलग फील्ड के करीब 50 लोग हैं। हमने कबी भी किसी तरह का सरकारी अनुदान नहीं लिया। इसके लिए शुरू में ही तय कर लिया गया ता। क्योंकि लोगों का कहना था कि लोग ऐसी संस्था कमाई के लिए बनाते हैं।

0. डाक्टरी के पेशे को कैसे समय देते हैं, कभी किसी को चैलेंज किया है?
00. समय तो उतना ही होता है, लेकिन मैं उसे किसी तरह मैनेज करता हूं। कुछ नुकसान तो जरूर होता है, लेकिन लोक हित में यह न के बराबर है। हम लोगों ने एमपी चुनाव के समय ज्योतिषियों को चैलेंज किया था कि बताएं कौन चुनाव जीतेगा। उसमें बहुत सारे ज्योतिषियों के पत्र आए, लेकिन कोई भी सही भविष्यवाणी नहीं कर सका।

1 Comment:

Unknown said...

आपके अंदर इसके प्रति रूचि कैसे जागी ?
00. मुझे शुरू से यह सबी चीजें कचोटती थी। मन में सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति कुछ करने की इच्छा रहती थी। शुरू में अपने डाक्टर तथा और क्षेत्रों के दोस्तों से इसके लिए बात की। सभी ने साथ देने के तैयार हो गए और काम शुरू हो गया। शुरू में हम रायपुर के आसपास ही काम कर पाते थे। धीरे-धीरे संपर्क बढ़े तो हम पूरे छत्तीसगढ़ में जाने लगे हैं। हमारी संस्था में इस समय अलग-अलग फील्ड के करीब 50 लोग हैं। हमने कबी भी किसी तरह का सरकारी अनुदान नहीं लिया। इसके लिए शुरू में ही तय कर लिया गया ता। क्योंकि लोगों का कहना था कि लोग ऐसी संस्था कमाई के लिए बनाते हैं।


यहाँ दिनेश सच्चाई को छूपा जाते हैं । सच्चाई यही है कि अंधश्रद्धा निर्मूलन निवारण समिति का गठन रायपुर के तत्कालीन कलेक्टर, देवराज विरदी और पुलिस अधीक्षक श्री सरबजीत सिंह के सपोर्ट से जिला साक्षरता समिति, रायपुर के माध्यम से शुरू की गई । तब उसके परियोजना निदेशक जय प्रकाश मानस थे, यानी कि जे.पी.रथ । उन्होंने ही इस परियोजना को अपने कलेक्टर से लागू करायी थी । नागपुर के विशेषज्ञों से यहाँ के साक्षरता के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिलाया था । यानी कि जे.पी.रथ ही फाउंडर अध्यक्ष थे । उन्होंने दिनेश जी को जोड़ा था । इसमें उनके जैसे कई लोग थे । वे स्वयं नागपुर के लोगों से प्रशिक्षित हुए थे उस समय । उससे पहले कभी न दिनेश ने न किसी ने रायपुर में कोई ऐसा अभियान नहीं चलाया था । इस सारे अभियान का खर्चा साक्षरता समिति के द्वारा वहन होता था । यही सच्चाई है ।

डॉ. दिनेश का यह न कहना श्रेय लेना है । और सच यही है कि जब रथ का स्थानांतरण हो गया तो वे कई साथियों को खारीज करते हुए और कुछ नये लोगों को जोड़कर कागजों में विज्ञप्ति देकर स्वयंभू अध्यक्ष बन गये । आप यह बात श्री रथ से भी पता कर सकते हैं । डा. चन्द्रशेखर व्यास, गिरीश पंकज, राजेन्द्र सोनी, हरि ठाकुर के बेटे, रसिक अवधिया आदि सभी से ज्ञात कर सकते हैं जो गवाह है ।

इन लोंगो को सदैव डॉ. दिनेश एवाय़ड करते हैं । वे नाम के भूखे हैं । जबकि फाऊंडर तो वे ही है जिनका मैने जिक्र किया है ।

साक्षात्कार को सुधारें । गलत इतिहास न बनायें ।

मैं आपको राजेन्द्र सोनी जी का और गिरीश पंकज का नम्बर देता हूँ -
98261-45842

94252-12720

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