स्वागतम्

पल में कुछ होता नहीं, पल में कुछ मिलता नहीं,

सब कहने की बात है,

जीना भी दस्तूर है, मंजिल कितनी दूर है,

कितनी अजीब ये बात है,

मेरी अपनी हिम्मत है, मेरे अपने सहारे हैं,

मेरी अपनी दुनिया है, मेरे अपने नजारे हैं,

मेरा अपना फलक है, मेरे अपने सितारे हैं,

मेरे अपने तूफां हैं, मेरे अपने किनारे हैं,

मैं अपने रब का बंदा हूं,

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मंजिल तक वो क्या पहुंचाए,

जिसने देखी राह ना चलके।

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तमाम रिश्तों को मैं घर छोड़ आया था,

फिर उसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला।

घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे,

बहुत तलाश किया कोई आदमी ना मिला।

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उसे यह फ़िक्र है हरदम तर्ज़-ए-ज़फ़ा (अन्याय) क्या है,
हमें यह शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है,

दहर (दुनिया) से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख (आसमान) से क्यों ग़िला करें,

सारा जहां अदु (दुश्मन) सही, आओ मुक़ाबला करें,

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ये मेरे ख्वाबों की दुनिया नहीं सही लेकिन,

अब आ गया हूं तो दो दिन कयाम करता चलूं।

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चैन इक पल नहीं और कोई हल नहीं।
कौन मोड़े मोहार कोई सांवल नहीं।
क्या बसर की बिसात आज है कल नहीं।
छोड़ मेरी खता तू तो पागल नहीं।

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दिल में तूफानों की टोली और नसों में इन्कलाब

होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको न आज

दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंजिल में है।

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