दिसंबर में अबुझमाड़ में घुसेगी पुलिस


अब पुलिस वार करेगी नक्सलियो पर

( 22 अक्टूबर 2007 को हिन्दी दैनिक नेशनल लुक में प्रकाशित)


बबलू तिवारी-रायपुर।

अगर केंद्रीय गृह मंत्रालय से पूरा सहयोग मिला तो दिसंबर से छत्तीसगढ़ पुलिस रेड कारीडोर के केंद्र अबुझमाड़ में हमले करना शुरू कर देगी। पीएचक्यू ने इसके लिए अपनी ओर से पूरी तैयारी कर ली है। केंद्र से नागा बटालियन के बदले मिलने वाली नई बटालियन के यहां पहुंचते ही आपरेशन शुरू कर दिए जाएंगे। आपरेशन की जिम्मेदारी आईजी गिरधारी नायक को सौंपी गई है।
पीएचक्यू सूत्रों के मुताबिक अबुझमाड़ में घुसने की तैयारी मुख्यालय ने 6 माह पहले ही पूरी कर ली थी, लेकिन केंद्र से हेलीकाप्टर समय से ना मिल पाने तथा नागा बटालियन की पुन: पदस्थापना ना हो पाने की वजह से इसे टाल दिया गया था। अब चूंकि हेलीकाप्टर केंद्र द्वारा उपलब्ध करा दिया गया है तो पीएचक्यू अपनी तैयारी को अंतिम रूप देने में लग गया है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि पीएचक्यू आपरेशन के नेतृत्व के लिए सेना के अनुभवी अधिकारियों या नागा बटालियन के कुछ अफसरों को आपरेशन तक यहां पदस्थ करने की मांग केंद्र से कर रहा है।

एसटीएफ में 12 सौ से अधिक जवान 
राज्य के अलग-अलग नक्सल प्रभावित जिलों में इस समय स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के 12 सौ से अधिक जवान नक्सलियों से मोर्चा संभाल रहे हैं। इनमें से करीब 200 को स्पेशल आपरेशंस में भी शामिल किया जा रहा है। इन सभी जवानों को कांकेर जंगलवार स्कूल में टे्रनिंग दी गई है। बताते हैं कि ये जवान जंगल में मोर्चा संभालने में दक्ष हैं। हालांकि कम से कम 6 माह तक नक्सली क्षेत्र में काम कर चुके जवान को ही आपरेशन के लिए सिलेक्ट किया गया है।
चप्पे-चप्पे का नक्शा
पीएचक्यू ने पूरी योजना का ब्लू प्रिंट तैयार कर लिया है। अबुझमाड़ के दुर्गम इलाकों के हवाई मैप के सहारे फोर्स के अटैक की रणनीति बनाई गई है। सूत्रों का कहना है कि तीन महीने पहले टोही विमान द्वारा खींचे गए फोटो में करीब दर्जन भर नक्सली कैंप की पहचान की गई है। जहां सबसे पहले हमला किया जाएगा। आपरेशन टीम की मदद के लिए अबुझमाड़ इलाके के जानकार एसपीओ की एक टीम भी शामिल की गई है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि नक्शे से दुर्गम इलाकों में जाने वाले सभी मार्ग, रूकने के लिए सुरक्षित ठिकानों की पहचान कर ली गई है।
जिलों व राज्य की सीमाएं होंगी सील
सूत्रों का कहना है कि हमले के समय अबुझमाड़ से लगे प्रदेश के सभी जिलों व दूसरे राज्यों की सीमाओं को सील कर दिया जाएगा। इसके लिए पड़ोसी राज्यों की पुलिस से बात कर लिया गया है। बताते हैं कि नक्सलियों के ऊपर जब पुलिस ताबड़तोड़ हमला करना शुरू करती है तो वे समीपवर्ती राज्य की सीमा पार कर जाते हैं। इसके लिए डेढ़ माह पहले ही केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों व नक्सल प्रभावित राज्यों के पुलिस अधिकारियों के साथ पीएचक्यू में एक ज्वाइंट आपरेशन पर विचार-विमर्श किया गया था। जिसमें एक राज्य में होने वाले आपरेशन के दौरान दूसरों राज्यों द्वारा सीमाएं सील करने पर सहमति बनी थी।
जरूरी संसाधन तैयार
पीएचक्यू के रणनीतिकारों का कहना है कि जहां तक संभव होगा आपरेशन टीम को हेलिकाप्टर द्वारा ही टारगेट के आसपास ड्राप किया जाएगा। आपरेशन टीम नाइट वीजन डिवाइस, सेटेलाइट फोन, लैंड माइंस सर्च डिवाइस, बुलेटप्रूफ जैकेट आदि से लैस रहेगी। इसमें से ज्यादातर चीजें तो पुलिस के पास पहले से मौजूद हैं, लेकिन और मात्रा की खरीदी के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय से अनुमति मांगी गई है।

नक्सलियो के ट्रेनिंग कैंपों पर पुलिस का हमला

( 17 मार्च 2008 को हिन्दी सांध्य दैनिक 'छत्तीसगढ़' में प्रकाशित)
 

रायपुर। छत्तीसगढ़ पुलिस ने नक्सलियों के बेस कैंपों पर हमला शुरू कर दिया है। दस दिन पहले दंतेवाडा-बीजापुर के जंगलों में सालभर चलने वाले ट्रेनिंग कैंपों पर ग्रे-हाउंड-एसटीएफ-सीआरपीएफ की टीम ने हमला किया था। उस समय टीम को आंशिक सफलता भी मिली थी। अभी पुलिस की तीन संयुक्त टीमें अबुझमाड़ में घुसी हुई हैं। बताते हैं कि दो संयुक्त टीम बीजापुर-दंतेवाड़ा के जंगलों में भी रवाना हुई हैं। बस्तर आईजीपी आरके विज ने ऐसे अभियान चलते रहने की जानकारी दी है। पुलिस मुख्यालय व बस्तर में नक्सल आपरेशन की कमान संभाल रहे अफसरों के मुताबिक इस समय तीन से अधिक संयुक्त टीमें अबुझमाड़ में घुसी हुईं हैं। प्रत्येक टीम में तीन सौ से अधिक फाइटर जवान हैं। हालांकि यहां नक्सलियों को उंचाई का फायदा मिल रहा है। पुलिस ने अभी आसान और कम पहाड़ी वाले इलाकों में स्थित नक्सली ठिकानों पर अपने आपरेशन को सीमित रखा है। बताते हैं कि पिछले दो तीन से चल रहे इस अभियान में पुलिस को काफी सफलता मिली है। इस बीच अबुझमाड़ से लगने वाले जिलों व रायों की सीमाओं की सील कर दिया गया है। सूत्रों का कहना है कि संभव है कि टीमें वापस लौटने की बजाय सीधे महाराष्ट्र सीमा तक निकल जाएं। पुलिस की दो वाइंट टीम दंतेवाड़ा-बीजापुर के जंगलों में भी घुसी हैं। बताते हैं कि यहां अबुझमाड़ से भी यादा ट्रेनिंग कैंप नक्सली सालभर चलाते हैं। इस इलाके में नक्सलियों का आधार काफी मजबूत माना जाता हैं। इंटेलीजेंस के मुताबिक यहां अभी महाराष्ट्र, आंध्रा, बिहार, झारखंड व छग के करीब 2000 लोगों को नक्सली ट्रेनिंग दे रहे हैं। करीब सालभर पहले टोही विमान से ली गई तस्वीरों में यहां दर्जनभर से अधिक कैंपों की पहचान की गई थी। टोही विमान से लिए गए चित्रों के जरिए पुलिस ने एक्सपर्ट की मदद से पूरे इलाके का नक्शा तैयार कराया है। जिसमें इन इलाकों की पहाड़ियों की उंचाई, नदियों और तालाबों की चौड़ाई जैसे बारीक आंकड़े तक पुलिस के पास है। पुलिस आपरेशन में इन नक्शों की भी मदद ले रही है। प्रत्येक टीम सेटेलाइट फोन और नाइट वीजन डिवाइस से लैस बताई गई है।

ताबड़तोड़ नक्सली हमले के लिए जिम्मेदार कौन?


पांचवें नंबर से पहले नंबर पर क्यों आया छत्तीसगढ़? 

( 17 दिसंबर 2007 को हिन्दी दैनिक नेशनल लुक में प्रकाशित)

बबलू तिवारी/रायपुर
पांच साल पहले तक छत्तीसगढ़ नक्सलियों के निशाने पर पांचवें नंबर था, लेकिन पिछले चार साल से यह पहले नंबर पर है। नक्सलियों ने अपने रेड कारपेट का केंद्र अबुझमाड़ को बना लिया लिया है। ये सभी तथ्य इस बात की ओर इशारा करते हैं कि क्या राज्य सरकार ने बगैर कोई तैयारी किए ही नक्सलियों को ललकार दिया है। जिसका परिणाम गरीब आदिवासियों और पुलिसकर्मियों की ताबड़तोड़ नक्सलियों द्वारा की जा रही हत्या के रूप में सामने आ रही है। राजधानी में बैठे राजनेता और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जब-जब भी नक्सलियों का जड़ से खात्मा करने का बयान देते हैं, उसके दो-तीन के भीतर नक्सली बेगुनाहों और सुरक्षाकर्मियों को मौत के घाट उतारकर जवाब दे देते हैं। सरकार और पुलिस मुख्यालय सिर्फ भाषणबाजी में लगा हुआ है और नक्सली रोज खून की होली खेल रहे हैं। कल दंतेवाड़ा जेल में हुई घटना के बाद राज्य सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा। नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब नक्सली राजधानी रायपुर पर भी हमला करने में नहीं हिचकेंगे। विपक्ष को भी इस समय राजनीति छोड़कर पुलिसकर्मियों और जनता के लिए नासूर हो चुकी इस समस्या के निदान के लिए राज्य सरकार का साथ देना चाहिए।
नक्सलियों ने इस समय छत्तीसगढ़ को मुख्य केंद्र बना रखा है। जबकि कुछ साल पहले तक आंध्र प्रदेश उनके पहले निशाने पर था। सूत्रों के मुताबिक इस साल अक्टूबर तक नक्सलियों ने अपने प्रभाव वाले 13 राज्यों में 1285 नक्सली वारदातों को अंजाम दिया है, जिनमें 500 वारदातें उन्होंने छत्तीसगढ़ में अंजाम दिया। केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में बताया गया है कि इस साल अक्टूबर तक नक्सलियों ने 13 राज्यों में 188 सुरक्षाकर्मियों तथा 383 नागरिकों की हत्या की है, इसमें भी छत्तीसगढ़ में मारे गए सुरक्षाकर्मियों और नागरिकों की संख्या सर्वाधिक है। राज्य शासन को इस बात पर विचार करना चाहिए कि वो कौन से कारण हैं जिसकी वजह से छत्तीसगढ़ पहले नंबर पर आ गया है।

हर कदम पर घोर लापरवाही
कल की घटना के लिए जांच शुरू कर दी गई है, जिसकी गाज कुछ पुलिसकर्मियों पर गिरना सुनिश्चित है, लेकिन राज्य सरकार सिर्फ इन पुलिसकर्मियों को दंडित करके अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। राज्य में नक्सली समस्या शुरू होने के बाद से यह पहला अवसर है,जब नक्सलियों ने किसी जेल से अपने 105 साथियों सहित 298 कैदियों को छुड़ाया है। घटना के बाद जेल के सुरक्षा व्यवस्था के लिए की जाने वाले एहतियात की पोल खुल गई है। जिस समय नक्सली नेता सुजीत ने इस घटना को अंजाम दिया, उस समय जेल के अंदर मात्र चार सुरक्षाकर्मी, वो भी बगैर हथियार के तैनात थे। जेल की सुरक्षा के लिए इस समय 35 सुरक्षाकर्मियों की एक प्लाटून तैनात की गई है। जिसमें से मात्र 29 सुरक्षाकर्मी इस समय डयूटी पर हैं। जेल अधिकारियों ने बताया कि रात में नक्सली हमले की आशंका ज्यादा रहती है, इसलिए रात में ही ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात किए जाते हैं। दंतेवाड़ा उप जेल में इस समय दिन की पाली में चार और रात की पाली में दो दर्जन पुलिसकर्मी तैनात किए जा रहे थे। दिन की पाली में सुरक्षाकर्मी बगैर हथियार के ही सुरक्षा व्यवस्था संभालते थे, जबकि रात की पाली में सभी के पास हथियार रहते थे। उप जेल दंतेवाड़ा हेडक्वाटर से करीब दो किमी दूरी पर है। जेल परिसर के पास ही नेता प्रतिपक्ष और सलवा जुड़ूम अभियान की अगुवाई कर रहे महेंद्र कर्मा का पैतृक निवास भी है। इस लिहाज से भी इस इलाके की सुरक्षा व्यवस्था कड़ी रहनी चाहिए थी। सुरक्षा इंतजामों को देखकर लगता है कि जिला प्रशासन और जेल प्रशासन दोनों ने ही सुरक्षा व्यवस्था को लेकर घोर लापरवाही बरती है। जेल में क्षमता से दो गुने से अधिक कैदियों को रखा गया था। यह भी जेल अधिकारियों की लापरवाही को बताता है।
सैकड़ों पुलिसकर्मियों की मेहनत पर फिरा पानी
जिन 105 नक्सलियों को कल नक्सली छुड़ा कर ले गए उन्हें पकड़ने के लिए सैकड़ों पुलिसकर्मियों ने कुर्बानी दी थी। इसमें कई हार्डकोर नक्सली भी हैं, जिन्हें गिरफ्तार करने के लिए पुलिस के जवानों ने सालोंसाल जंगल की खाक छानी थी। कई पुलिसकर्मी इस दौरान शहीद भी हुए। लेकिन कल जेल प्रशासन की लापरवाही के कारण उनकी बरसों की मेहनत पर पानी फिर गया। बताते हैं कि फरार हुए 105 में से 25 हार्डकोर नक्सली हैं, जिन्होंने सैकड़ों लोगों की जान ली है। इनके भाग निकलने से नक्सल विरोधी अभियान को गहरा धक्का लगा है। इसका खामियाजा प्रशासन को जल्द ही भुगतना पड़ सकता है। सूत्रों का कहना है कि नक्सलियों के साथ भागे अन्य कैदी भी नक्सली कैंप पहुंच सकते हैं। उनके नक्सली बनने की भी आशंका जताई गई है।

आंध्र प्रदेश से सीखे सरकार
आज जिन परिस्थितयों का सामना छत्तीसगढ़ कर रहा है कुछ ऐसी ही हालत पांच साल पहले आंध्र प्रदेश की थी। आंध्र प्रदेश नक्सलियों के पहले नंबर था। लेकिन आंध्र प्रदेश ने इससे निपटने के लिए जो कार्ययोजना बनाई, उसी का परिणाम है कि आज आंध्र प्रदेश में 70 फीसदी नक्सली समस्या खत्म हो गई है। नक्सलियों पर इसका इतना आतंक चढ़ा कि वे आंध्र प्रदेश छोड़कर दूसरे राज्यों में भाग गए। बताते हैं कि आंध्र प्रदेश की योजना नक्सलियों से निपटने में काफी कारगर है। वहां पुलिस फोर्स से दो-दो साल की समयावधि के लिए जवानों को नक्सल आपरेशन पर भेजा जाता है। उन्हें इस दौरान सामान्य से दोगुना वेतन, उनके परिवार की की देखभाल के लिए सुरक्षित जोन, पुलिसकर्मियों का भारी भरकम बीमा करवाया जाता है। इसके साथ ही नक्सलियों के एनकाउंटर पर आकर्षक इनाम भी घोषित है, जो उन्हें एनकाउंटर के बाद मौके पर सीनियर अधिकारी पहुंच कर प्रदान करता है। इंटेलीजेंस के लिए भी राज्य सरकार भारी भरकम राशि खर्च करती है। एसपी स्तर के अधिकारी को सूचना एकत्र करने के लिए 5 लाख तक की राशि प्रत्येक माह दी जाती। वहीं एसडीओपी स्तर के अधिकारी को यह 2 लाख रुपए के करीब है। नक्सल क्षेत्र में तैनात पुलिसकर्मियों को 15 दिन के आपरेशन के बाद 15 दिन छुट्टी दी जाती है। दो साल के बाद उन्हें दोबारा सामान्य वेतन पर दूसरे इलाकों में पदस्थ कर दिया जाता है। आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा नक्सल अभियान पर किए जा रहे खर्च और पुलिसकर्मियों की सुविधा से छत्तीसगढ़ के अभियान की बराबरी नहीं की जा सकती है। हालांकि इसी का परिणाम है कि आंध्र प्रदेश में 70 प्रतिशत नक्सल समस्य खत्म हो गई है।
सुरक्षाकर्मियों के लिए पनिश और नक्सलियों का मिशन
छग सरकार द्वारा नक्सलियों से मोर्चा ले रहे पुलिस व सुरक्षाकर्मियों को अभी प्रदान की जा रही सुविधा नाकाफी है। आज भी नक्सल क्षेत्र में पुलिसकर्मियों को पनिश करने के लिए तैनात किया जाता है। कई नेता और पुलिस अधिकारी सुरक्षाकर्मियों को नक्सली क्षेत्र में भेजने की धमकी देते रहते हैं। वहींनक्सलियों के लिए यह मिशन हैं। राज्य शासन को इस बेसिक फर्क को समझना होगा। पुलिसकर्मियों को जो सुविधा नक्सलियों से जुझने के लिए मिलनी चाहिए वह न के बराबर है। उनके सुरक्षा इंतजाम का भी कोई मजबूत बंदोबस्त नहीं है। नक्सली जब चाहते हैं सुरक्षाकर्मियों को मौत के घाट उतार देते हैं। नक्सली क्षेत्र में तैनात पुलिसकर्मियों का मनोबल भी टूट गया है। ज्यादातर पुलिसकर्मी और अफसर सिर्फ समय काटने में लगे रहते हैं, क्योंकि कार्रवाई के लिए जो सुविधाएं और बैकअप चाहिए वह राज्य सरकार उपलब्ध नहीं करा पा रही। धुर नक्सली क्षेत्र में सैकड़ों थानों में नाममात्र के पुलिसकर्मी बगैर हथियार के तैनात किए गए हैं। जो नक्सलियों के लिए साफ्ट टारगेट हैं। राज्य पुलिस का इंटेलीजेंस नेटवर्क भी इन इलाकों में फेल है। इंटेलीजेंस अफसर अपना पल्ला यह कहकर झाड़ लेते हैं कि उनेक पास पर्याप्त बजट नहीं है। नक्सलियों की एक खबर भी पुलिस को पहले नहीं मिल पाती, जबकि पुलिस की हर हरकत की खबर नक्सलियों को पहले से रहती है। यही हालत सलवा जुड़ूम के कार्यकर्ताओँ और नेताओं की हैं। वे अपनी जान पर खेलकर नक्सलियों से लोहा ले रहे हैं। लेकिन राज्य शासन उन्हें भी सुरक्षा उपलब्ध नहीं करा पा रही है। राज्य सरकार को अभियान की रूपरेखा में बदलाव करना चाहिए। नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब राज्य के सभी 18 जिले नक्सल प्रभावित हो जाएंगे।
सुरक्षा इंतजाम पर उंगली उठाई थी जोगी ने  
पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने शुरू से ही राज्य सरकार के इस अभियान का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य सरकार बगैर पुख्ता प्रबंध के ही अभियान शुरू कर दिया है। इसमें सलवा जुड़ूम के माध्यम से आदिवासियों को जोड़ने पर भी उन्होंने उंगली उठाई थी। उनका कहना था कि ऐसा अभियान तभी चलाना चाहिए जब सरकार आदिवासियों और पुलिस को प्रदान की जाने वाले इंतजाम पूरे कर ले। अन्यथा इसका गंभीर परिणाम बस्तर के निरीह आदिवासियों को भुगतना पड़ेगा। उन्होंने खुला अभियान चलाने से पहले राज्य शासन को पूरी तैयारी करने की नसीहत भी दी थी। लेकिन तब राज्य सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। श्री जोगी की बात अब सच साबित होने लगी है। नक्सली अब और खूंखार हो गए हैं। उनके हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। नक्सल क्षेत्र तथा पुलिस हेडक्वाटर में नक्सल अभियान का जिम्मा उठा रहे अफसर भी ऐसी ही बात करने लगे हैं। उनका कहना है कि राज्य सरकार इस अभियान में सीधा पार्टी बन गई है। जिसकी वजह से नक्सली अपना वजूद दिखाने के लिए लगातार हमले कर रहे हैं, जबकि राज्य सरकार के पास उनसे निपटने के लिए नूल संसाधन ही नहीं हैं। धूर नक्सली जिलों में ही पुलिस फोर्स की भारी कमी हैं। उन्हें अभियान के हिसाब से सुविधा भी नहीं प्रदान की जा रही है। जिससे सुरक्षाकर्मियों का भी मनोबल गिर गया है।

आनलाइन जिंदगी में ताक-झांक



( 7 जनवरी 2007 को दैनिक हरिभूमि में प्रकाशित)

इक्कीसवीं सदी में पांव रखते-रखते जमाना पूरी तरह हाईटेक हो गया। दुनिया छोटी और जिंदगी आनलाइन हो गई। संचार क्रांति ने पूरी दुनिया को एक सूत्र में तो पिरो दिया लेकिन आनलाइन जिंदगी में ताक-झांक ने सभी की नींदें उड़ा दी हैं। मोबाइल हैंकिंग, क्रेडिट, डेबिट कार्ड के क्लोन बनाकर बैंक खातों के रकम भी पार हो रहे हैं। इंटरनेट और मोबाइल पर सिमट आई दुनिया की पड़ताल कर रहे हैं बबलू तिवारी

आनलाइन जिंदगी में ताक-झांक
पहले दुनिया इंटरनेट के जरिए सिमटी तो बाद में मोबाइल क्रांति ने रही-सही कसर पूरी कर दी। अब जब लोग आनलाइन होकर अपने बहुत से काम मिनटों में निपटाने लगे हैं, तब एक बड़ा खतरा भी पांव पसारने लगा है। वह है लोगों की जिंदगी में इन्हीं आनलाइन तकनीकों के माध्यम से तांक-झांक का। मामला ताक-झांक तक ही सीमित रहे तो भी खैर मानिए। तकनीक के अपराधी तो अब आपकी पर्सनल जानकारी चुराकर न केवल उसका धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं, बल्कि इसके जरिए आप को लाखों-करोड़ों का चूना भी लगा सकते हैं। इंटरनेट के जरिए आनलाइन सर्विसेस में सेंध लगाने के साथ अब मोबाइल फोन की भी हैकिंग होने लगी है। न जाने कब आपके इंटरनेट बैकिंग खाते से लाखों-करोड़ों रुपए इधर से इधर हो जाएं। और न जाने कब आप के मोबाइल नंबर तथा क्रेडिट व डेबिट कार्ड का क्लोन बनाकर कोई दूसरा इस्तेमाल कर ले। आनलाइन अपराध में सबसे बड़ी बात यह होती है कि आपको जानकारी होने तक अपराध हो चुका होता है। यहीं नही अपराधी दुनिया भर में कहीं भी बैठकर अपराध को अंजाम देता है। इससे भुक्तभोगी के पास सिवाय हाथ मलने के कुछ नही बचता है। तब पता चलता है कि दुनिया जितनी छोटी है उतनी बड़ी भी।

कौन हैं तांक-झांक करने वाले?
दुनिया का कोई भी व्यक्ति तांक-झांक करने वाला हो सकता है। इन्हें खोजना इतना मुश्किल है जैसे बड़े गंदे तालाब में छोटी मछली ढूढने जैसा। ये लोग भौगोलिक सीमा नही मानते हैं। इनकी कोई पहचान नहीं होती। तकनीकी जानकारों ने इन्हें दो नाम दिए हैं, पहला हैकर्स दूसरा क्रेकर्स। हैकर्स को थोड़ा कम खतरनाक माना जाता है। क्योंकि ये मजे के लिए जानकारियां चुराते और इस्तेमाल करते हैं। लेकिन क्रेकर्स शुध्द रुप से अपराधी होते हैं। या ऐसा भी कह सकते हैं जिन हैकर्स द्वारा किसी वेबसाइट को हैक कर उसकी गुप्त जानकारियों चुराकर उनका इस्तेमाल कर आर्थिक-शारीरिक-मानसिक नुकसान पहुंचाया जाता है उन्हें क्रेकर्स की श्रेणी में रखा गया है। आजकल क्रेकर्स आपस में समूह बनाकर काम करते हैं। इनके सदस्य कई देशों में फैले होते हैं। तथा ये सुनियोजित व संगठित होकर साइबर अपराध को अंजाम देते हैं। इन्हें साइबर अपराधी भी कहा जाता है।

स्थिति भयंकर हो सकती है
अगर जल्द ही हैकर्स पर लगाम नही लगती है तो इन हैकर्स के आतंकवादियों के साथ मिलकर काम करने से दुनिया मुसीबत में फंस सकती है। मान लीजिए किसी हैकर्स ने ही थ्रो या किसी अन्य बड़े एअरपोर्ट के टे्रफिक कंट्रोल सेंटर के कंप्यूटरों में सेंध लगा ले या एअरपोर्ट के रडार के डिस्पले बोर्ड को निष्क्रिय कर दे। या फिर अमेरिका या अन्य देशों के कंप्यूटर नियत्रिंत परमाणु बमों के स्टार्टर पैनल में सेंध लगाकर राष्ट्रपति या रिलीजिंग अथारिटी का पासवर्ड चुरा ले तब क्या स्थिति होगी। यही नहीं दुनिया भर की बिजली सप्लाई, टेलीफोन आपरेटिंग प्रणाली व कंप्यूटर नियत्रिंत पानी सप्लाई व्यवस्था के कंप्यूटर प्रणाली में घुसपैठ करने पर क्या होगा।

साइबर अपराध के प्रकार
0. वेबसाइटों को हैक कर उनकी जरूरी जानकारियों को नष्ट कर साइटों पर अपना संदेश लिख देना
0. सेवा प्रदान करने वाली साइटों को नष्ट कर देना या सूचनाएं चुराकर उनका अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना या फिर उसपर कंट्रोल करके कुछ भी कार्य कर लेना
0. क्रेडिट व डेबिट कार्ड के डिटेल्स चुराकर उसका आनलाइन शापिंग में इस्तेमाल करना
0. इंटरनेट बैकिंग का पासवर्ड चुराकर खाते से पैसे निकाल लेना
0. क्रेडिट, डेबिट व मोबाइल फोन का सोर्स कोड चुराकर क्लोन बनाकर उसका इस्तेमाल करना

कोई भी बन सकता है हैकर्स
हैकर्स बनने की प्रक्रिया इतनी आसान है कि कोई भी कंप्यूटर व इंटरनेट का जानकार इसे कर सकता है। इसके लिए इंटरनेट पर हजारों वेबसाइट उपलब्ध हैं। जिसमें हैकिंग के तरीके के अलावा करीब तीस हजार साइटों के कोड उपलब्ध हैं। इन साइटों से ही आप कई सारे फ्री हैकिंग साफ्टवेयर व एप्लीकेशन डाउनलोड कर सकते हैं। हैकर्स के कई यूनियन भी हैं। जिनके आप सदस्य बनकर हैकिंग के नए-नए साफ्टवेयर पा सकते हैं। साथ ही कई साइटों पर भुगतान के बाद ऐसे साफ्टवेयर उपलब्ध कराए जाते हैं। चीन के लायन नाम के हैकर्स द्वारा बनाई गई हैकर्स यूनियन आफ चाइना को काफी लोकप्रियता मिली है। चीन के खिलाफ काम करने वाली सरकारों की हजारों वेबसाइटों को इस यूनियन ने नष्ट कर दिया। जिसमें व्हाइट हाउस, अमेरिकी दूतावास साइट सहित अमेरिकी सरकार की कई विभागों की साइट, जापान सरकार की कई साइट शामिल हैं।

सजा कम या नहीं के बराबर

साइबर क्राइम में अगर चीन, अमेरिका व बिट्रेन को छोड़ दे तो बाकी देशों में अपराधी के गिरफ्त में आने के बाद भी या तो उसे नाम मात्र की सजा होती है या फिर वह मामूली जुर्माना देकर छूट जाता है। चीन में सबसे ज्यादा कड़ी सजा का प्रावधान हैं। यहां साइबर अपराधियों को मौत तक की सजा दी जाती है। जबकि अमेरिका व बिट्रेन में इसके प्रकार के हिसाब से सजा का प्रावधान है।

पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन
हैकर्स व के्रकर्स दुनिया के किसी भी हिस्से में बैठकर अपराध को अंजाम देते हैं। अलग-अलग देश में बैठकर कर ये एक गिरोह में काम करते हैं। इसका एक उदाहरण भारत में निजी क्षेत्र की आईसीआईसीआई बैंक के साथ सन 2005 में सामने आया। पहले तो स्वीडन के किसी क्रेकर्स ने बैंक के पर्सनल डाटा बैंक में घुसकर ग्राहकों के ईमेल आईडी चुराया। फिर बिट्रेन से इन ईमेल आईडी पर मैसेज भेजा गया कि इंटरनेट बैकिंग के कामकाज को बैंक अपग्रेड कर रहा है। अत: अपने इंटरनेट बैकिंग के खाते में एक बार लागइन करें। मालूम हो कि यह ईमेल आईसीआईसीआई बैंक के कस्टमरकेयर के आईडी से किया गया। लागइन करने के लिए ईमेल में ही एक डायरेक्ट लिंक दिया गया था। लेकिन इस पर लागइन करने पर आईसीआईसीआई बैंक के होमपेज का हूबहू नकली पेज खुलता था। इसपर खाते में लागइन करने के लिए सेम फीचर दिया हुआ था। जांचकर्ताओं ने जब इस पेज की जांच की तो यह जर्मनी में बनाई गई आईसीआईसीआई बैंक के नाम से एक जाली वेबसाइट थी। इस साइट में एक बार अपना आईडी व पासवर्ड डालने के बाद वेबसाइट अपने आप बंद हो जाती थी। तथा कुछ मिनटों के अंदर ही फ्रांस से कोई क्रेकर्स उस आईडी व पासवर्ड की मदद से बैंक की वेबसाइट में लागइन करके खाते में रखी रकम को अमेरिका के किसी बैंक में आनलाइन ट्रांसफर कर लेता था। इस प्रकरण के सामने आने के बाद बैंक को काफी प्रचार-प्रसार करना पड़ा। दूसरी घटना बिट्रेन की है यहां एक के्रडिट कार्ड कंपनी के डाटाबेस से कई ग्राहकों के सोर्स कोड चुराकर उसके क्लोन बनाए गए। फिर उस क्लोन क्रेडिट कार्ड को लेकर एक व्यक्ति इंडिया आता है, तथा विभिन्न बैंकों के लगे एटीएम मशीन से बारी-बारी से पैसे निकालकर यहां से चलता बनता है। मालूम हो कि सभी क्रेडिट कार्ड वीजा, मास्टरकार्ड या इन्हीं की तरह अन्य आनलाइन पेमेंट साफ्टवेटर के डाटाबेस पर रन करते हैं।

एंटी वायरस साफ्टवेयर रखें
इन घटनाओं से पूरा बचाव तो मुमकिन नही है फिर भी एंटी वायरस के उपलब्ध हजारों साफ्टवेयर में से जरूरी साफ्टवेयर अपने कंप्यूटर व मोबाइल में जरूर इंस्टाल करके रखें। ये काफी हद तक हैकर्स के हमले से आपके कंप्यूटर व डाटा को सुरक्षित रख सकते हैं। बगैर पहचान वाली ईमेल व मैसेज न खोलें। ज्यादा आवश्यकता होने पर कंप्यूटर सिक्योरिटी स्पेशलिस्ट की एडवाइज लें तथा उसके सुझाव के अनुसार साफ्टवेयर इंस्टाल करें। कंप्यूटर में उतनी ही जानकारी रखे जितनी जरूरी हों।

हैकर्स की बड़ी वारदातें
0. लव बग वाइरस ने दुनियाभर के लाखों कंप्यूटर प्रणाली व उसमें रखे आकड़ों को नष्ट कर दिया था। इसकी चपेट में अत्यधिक सुरक्षित कहे जानें वाले पेंटागन, सीआईए व ब्रिट्रिश पार्लियामेंट की कंप्यूटर प्रणाली भी आगई थी। इस वायरस की चपेट में आने से करीब 10 बिलियन डालर का नुकसान हुआ था। हालांकि बाद में इस वाइरस को बनाकर फैलाने वाला हैकर्स फीजीउस्मान नामक युवक पकड़ में आ गया था।
0. किम यांग चुंग (लव यू) नामक दक्षिण कोरिया के हैकर्स ने कोरिया के दो टीवी प्रसारण केंद्रों के कंप्यूटर प्रणाली में सेंध लगाकर उसका प्रसारण रोक दिया था।
0. चीन में दो भाइयों ने एक बैंक की कंप्यूटर प्रणाली में सेंध लगाकर 30 हजार डालर पार कर दिए। जिन्हें बाद में पकड़ लिया गया और चीन की सरकार ने उन्हें मौत की सजा दे दी।
0. ऑनलाइन आर्थिक लेन-देन का डाटा व आपरेटिंग सिस्टम उपलब्ध कराने वाली मास्टरकार्ड के डाटा बैंक से सैकड़ों लोगों के डिटेल चुरा लिए गए। जिसमें माइक्रोसाफ्ट के चेयरमेन बिल गेटस के क्रेडिट कार्ड का डिटेल भी शामिल था।
0. लिनक्स,बोब,एमएस डोस 3.3 जैसे प्रसिध्द साफ्टवेयर के सोर्स कोड चुरा लिए गए।
0. सन 2000 में हैकर्स ने बिल गेटस मेलिंडा फाउंडेशन के दानदाताओं के साथ बिल गेटस के पर्सनल कंप्यूटर से पिछले पांच साल के डिटेल में सेंध लगा दिया।
0. एसबीआई बैंक के इंटरनेट बैकिंग के डाटाबेस में सेंध लगाकर कामकाज प्रभावित किया
0. केविन मिटनिक नामक हैकर्स ने अमेरिका की एक टेलीफोन कंपनी का साफ्टवेयर चुरा लिया। इसके बाद उसने क्रेडिट कार्ड कंपनी के डाटाबेस में घुसकर 2 हजार कार्डों का डिटेल चुरा लिया।
0. बैंगलोर के एक हैकर्स ने लंदन के एक व्यक्ति के इंटरनेट बैकिंग खाते में सेंध लगाकर दो करोड़ रुपए पार कर दिए।
0. लिटिलफिच नामक हैकर्स ने सीआईए के कंप्यूटर प्रणाली में सेंध लगाई।

मेरी कुछ खास स्टोरीज



(  29 अप्रैल 2006  को दैनिक हरिभूमि में प्रकाशित )



( 19 नवंबर 2006 को दैनिक हरिभूमि में प्रकाशित )



( 16 अप्रैल  2006 को दैनिक हरिभूमि में प्रकाशित )



( दैनिक हरिभूमि में प्रकाशित )



( 29 मार्च  2006 को दैनिक हरिभूमि में प्रकाशित )



( 13 जनवरी  2007 को दैनिक हरिभूमि में प्रकाशित )



( 20 जनवरी   2007 को दैनिक हरिभूमि में प्रकाशित )



( 04 अप्रैल  2006 को दैनिक हरिभूमि में प्रकाशित )



( 9  मार्च  2006 को दैनिक हरिभूमि में प्रकाशित )



( 13 जनवरी  2006 को दैनिक  देशबन्धु  में प्रकाशित )

"रात का रिपोर्टर"

हरिभूमि समाचार पत्र के रायपुर संस्करण में काम करने के दौरान प्रबंध संपादक आदरणीय हिमांशु जी के निर्देश पर देर रात की खबरों और शहर की सुरक्षा व्यवस्था की तस्वीर सामने लाने के लिए "रात का रिपोर्टर" नाम से एक श्रृंखला शुरू की गई थी, जिसकी जिम्मेदारी हिमांशु जी ने मुझे सौंपी थी। उस दौरान देर रात की गई कुछ चुनिंदा रिपोर्टिंग की पेपर कटिंग यहां प्रस्तुत है-



( 05मई 2006 को प्रकाशित )


( 08 मई 2006 को प्रकाशित )

( 3 अप्रैल 2006 )

( 06 अप्रैल 2006 )


* THE NIGHT REPORTER * THE NIGHT NEWS * NIGHT JOURNALIST * NIGHT CORRESPONDANT *

हिन्दी ब्लॉग टिप्सः तीन कॉलम वाली टेम्पलेट